पेड़ों की कटाई : डराती है बर्बादी की आशंका पेड़ों की कटाई
फरवरी 2020 में सर्वोच्च अदालत के मुख्य न्यायाधीश एस.ए बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने एक जनहित याचिका को निपटाते हुए कहा था- ‘जिस तेजी से पेड़ों की कटाई हो रही है, उससे जब तक लोग इसका परिणाम समझ सकेंगे तब तक सब कुछ खत्म हो जाएगा। इसलिए हरियाली को संरक्षित करना जरूरी है।
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पेड़ों की कटाई न हो, इसका वैकल्पिक रास्ता तलाशने की भी जरूरत है। संभव है कि वह खर्चीला सौदा हो, लेकिन अगर पेड़ों की उपयोगिता समझी जाए तो बेहतर होगा।’
वैज्ञानिकों के मुताबिक गड़बड़ होते ऋतु चक्र, बढ़ती बीमारियों, कमजोर होती जमीन और प्रदूषित होते पर्यावरण की बड़ी वजह पेड़ों की अंधाधुंध कटाई है। हैरान करने वाली बात यह है कि जहां एक तरफ वृक्षारोपण पर जोर दिया जा रहा है वहीं दूसरी तरफ पेड़-पौधों की अंधाधुंध कटाई भी जारी है। राजधानी दिल्ली को ही लें। यहां पेड़ों की कटाई पर उच्च न्यायालय के रोक के बावजूद पर्यावरण विनाश का यह कृत्य रुक नहीं रहा है। दिल्ली उच्च न्यायालय में दाखिल हलफनामे में वन विभाग ने कहा कि सन 2019-21 के बीच 77, 420 पेड़ काटने की अनुमति दी गई। वन विभाग के वकील ने खुलासा करते हुए कहा कि अवैघ रूप से काटे जा रहे पेड़ों की संख्या जोड़ दिया जाए तो पेड़ों की कटाई का यह आंकड़ा दोगुना से चार गुना तक बढ़ सकता है। याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि दिल्ली प्रदेश 77 हजार पेड़ों का नुकसान नहीं झेल सकता है।
गौरतलब है कोर्ट ने 6 अप्रैल 2021 को दिल्ली में पेड़ों को काटने पर अंतरिम रोक लगा दी थी और पारिस्थितिकी संतुलन के लिए पेड़ों को काटना बेहद नुकसानदायक बताया था। गौरतलब है पिछले चार सालों में भारत में 95 लाख से ज्यादा पेड़ काटे गए, जिससे होने वाले नुकसान का अनुमान लगाकर ही सिहरन दौड़ जाती है। भारत में जिस रफ्तार से पेड़ों की कटाई पिछले बीस सालों में हुई है उससे पर्यावरण की समस्या ही नहीं बढ़ी है बल्कि भूमि क्षरण, नदियों में गाद का बढ़ना, जमीन की उर्वरा शक्ति में कमी, नई-नई बीमारियों का पैदा होना, ऋतु चक्र में बदलाव व असंतुलन, वन क्षेत्र का कम होना, जैव विविधा की बढ़ती समस्या और हरीतिमा की कमी जैसी तमाम समस्याएं पैदा हुई हैं।
अमेरिका की मैरीलैंड यूनिवर्सिटी के 10 लाख से अधिक सैटेलाइट तस्वीरों के अध्ययन से पता चला है कि भारत में पिछले दो दशकों में पेड़ों से घिरी 1.93 मेगा हेक्टेयर जमीन का जितना नुकसान हुआ, उनमें 76.7 फीसद पूर्वोत्तर के राज्यों में हुआ है। पूर्वोत्तर के राज्यों में जो हरीतिमा-क्षेत्र कम हुआ है, उसमें पेड़-पौधों की कटाई के साथ जंगल के विनाश में आग की घटनाएं भी शामिल हैं। जंगलों की अंधाधुंध कटाई की रफ्तार कितनी तेज है इसे संयुक्त राट्र संघ की चिंताओं से भी समझा जा सकता है।
संयुक्त राट्र संघ के अनुसार 1990 के बाद से 420 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र के (एक अरब एकड़) जंगल नष्ट हो गए। गौरतलब है 2014 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने 2020 तक वनों की कटाई रोकने या आधा करने और 2030 तक इसे खत्म करने के लिए एक समझौते की घोणा की थी। इसके बाद 2017 में इसने 2030 तक वनाच्छादित भूमि को 3 प्रतिशत बढ़ाने का एक और लक्ष्य निर्धारित किया था, लेकिन इससे वनों की अंधाधुंध कटाई पर कोई असर देखने को नहीं मिला। एक आंकड़े के अनुसार, हर दशक (हेक्टेयर) के हिसाब से जंगल का औसत क्षेत्र नष्ट हो रहा है। 1990 से 2000 के मध्य जहां 7.8 मिलियन क्षेत्र के जंगल नट हुए वहीं 2000-2010 के दशक में 5.2 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र के जंगल नट हुए। इसी तरह 2010 से 2020 के दशक के दौरान 4.7 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र के जंगल नष्ट हुए। यानी जंगल के साथ वन-जीवन भी नट हुए। वृक्ष इंसान के लिए ही जरूरी नहीं हैं बल्कि सारी कायनात के लिए जरूरी हैं। वृक्ष के बगैर जीवन, सुख-सुविधाएं, संसाधनों की बेहतर उपलब्धता, उद्योग-धंधे, व्यापार, शिक्षा, स्वास्थ्य, सबको भोजन की उपलब्धता और स्वच्छ पर्यावरण को बनाए रखने में इनकी भूमिका सबसे ज्यादा है। गौरतलब है वैदिक धर्म ग्रंथों में वृक्षारोपण को सबसे पुण्य वाले कार्यों में शामिल किया गया है और कहा गया है, जो वृक्ष लगाते हैं उनके घर में लक्ष्मी का निवास होता है। कह सकते हैं कि सभी की समृद्धि के मूल में वृक्षों की सेवा है।
वृक्षारोपण से पर्यावरण का सबसे ज्यादा भला होता है। विकास के नाम पर पेड़ों की कटाई को कैसे रोका जाए, एक बड़ी चुनौती है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या विकास की धारा को आगे बढ़ाते हुए पेड़ों की कटाई का कोई विकल्प हो सकता है? वैज्ञानिक इस खोज में लगे हैं कि पेड़ों से बनने वाली वस्तुओं को किस दूसरी चीज से बनाया जा सकता है। गौरतलब है कुछ देशों में कागज की जगह अखबार कपड़े पर छापे जाते हैं। इसी तरह फर्नीचर, घर और उद्योग-धंधों में लकड़ी की जगह लोहे या अन्य धातुओं से कई तरह की चीजें बनाई जाने लगी हैं। आशा की जानी चाहिए कि भविष्य में लकड़ी के विकल्प तलाश लिये जाएंगे और पेड़-पौधों की कटाई बंद हो जाएगी।
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