विश्लेषण : इन देशों का रवैया चिंताजनक

Last Updated 14 Jun 2022 12:21:10 AM IST

भाजपा नेताओं द्वारा इस्लाम से संबंधित टिप्पणी पर कई इस्लामिक देशों में हो रही प्रतिक्रियाएं किसी दृष्टि से सामान्य घटना नहीं है।


विश्लेषण : इन देशों का रवैया चिंताजनक

 कतर, कुवैत और ईरान ने भारतीय राजदूतों को सम्मन कर लिखित नाराजगी जताई। यही नहीं सऊदी अरब, कुवैत और बहरीन के स्टोर से भारतीय चीजें हटाए जाने की अपील सोशल मीडिया पर आने लगी और ऐसा होते देखा भी गया। ओमान के ग्रैंड मुफ्ती ने सभी मुस्लिम राष्ट्रों से इस मुद्दे पर एकजुट होने को कहा। पाकिस्तान और इस्लामिक देशों के संगठन ओआईसी ने इस पर बयान जारी कर दिया।
पूरा विवाद एक टीवी बहस से संबंधित है, जिसमें ज्ञानवापी में शिवलिंग की आकृति को फव्वारा बताने के विरुद्ध भाजपा की एक प्रवक्ता ने प्रश्नवाचक लहजे में कुछ टिप्पणी की थी। एक नेता ने उसको री ट्वीट कर दिया। यह इतना बड़ा विवाद बन जाएगा इसकी कल्पना किसी ने नहीं की थी। टीवी डिबेट में आजकल तनाव बढ़ने पर ऐसी कई टिप्पणियां आती हैं, जिनको मुद्दा बना दिया जाए तो हर दिन देश में तनाव और हिंसा हो सकता है तथा इसकी प्रतिध्वनि विदेशों में भी सुनाई पड़ेगी। ऐसे कम ही अवसर आए होंगे जब किसी देश में ऐसे मामले पर दूसरे देश के राजदूत को तलब किया होगा, जिसमें द्विपक्षीय या फिर अंतरराष्ट्रीय मसले नहीं हो। किसी देश में टेलीविजन डिबेट या भाषण में की गई किसी नेता की टिप्पणी दूसरे देश के लिए मुद्दा कैसे हो सकता है? भाजपा ने अपने जिन नेताओं के विरु द्ध कार्रवाई की है उन्होंने इन देशों पर कोई टिप्पणी नहीं की थी। इसलिए यह विषय हमें कई पहलुओं पर गंभीरता से सोचने को बाध्य करता है। देशों का रवैया देखिए, कतर की सरकार ने दोहा स्थित भारतीय राजदूत को बुलाकर मोहम्मद पैगम्बर साहब के बारे में की गई कथित टिप्पणियों का मुद्दा उठाया।

कतर के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा कि विदेश मंत्री सुल्तान विन साद अरमुरैखी ने नोटिस सौंपा। इसमें कहा गया कि भारत में सत्ताधारी पार्टी के नेता की तरफ से दिए गए इस तरह के बयान को पूरी तरह खारिज करती है। इस तरह की टिप्पणियों से पूरी दुनिया में धार्मिंक नफरत बढ़ेगा। यह टिप्पणी भारत समेत पूरी दुनिया में सभ्यता के विकास में जो योगदान इस्लाम ने दिया है उसे कमतर करती है। ध्यान रखिए इसमें साफ कहा गया है की कतर सरकार को उम्मीद है कि भारत सरकार इस बारे में सार्वजनिक तौर पर माफी मांगी। जब इसमें सरकार सही है नहीं तो फिर माफी मांगने का सवाल कहां से पैदा होता है? हालांकि कतर ने भाजपा द्वारा अपने नेताओं के खिलाफ कार्रवाई का स्वागत किया। भारत के प्रतिनिधि के रूप में राजदूतों ने यह स्पष्ट किया कि भारत विविधताओं का देश है। यहां सभी मजहबों के लिए सम्मान है और जिन लोगों ने ऐसा किया उनके खिलाफ कार्रवाई हो रही है। किसी भी मजहब या उनके पैगंबरों के सम्मान के विरु द्ध कोई टिप्पणी समाज में स्वीकार नहीं हो सकती। क्या डिबेट में कही गई किसी पंक्ति को वाकई इस श्रेणी का माना जा सकता है? अगर है भी तो क्या भारत के साथ पुराने संबंध रखने वाले इन देशों को पता नहीं कि यहां संविधान में सभी पंथों, मजहबों को अपनी परंपरा के अनुसार मान्य सीमाओं में प्रचार करने का अधिकार है?
बावजूद अगर उन्होंने इस तरह का असाधारण कदम उठाया तो इसके कारण साफ हैं। गैर मुस्लिम भारतीयों को अपने धर्म के पालन में वहां अनेक कठिनाइयां आती है, लेकिन हमारी सरकार ने कभी वहां के राजदूतों को बुलाकर अपनी आपत्ति और नाराजगी नहीं जताई। दुनिया के ज्यादातर गैर मुस्लिम देशों ने ही शायद ही कभी ऐसा किया होगा। अगर देश किसी दूसरे देश में की गई टिप्पणियों को द्विपक्षीय संबंधों का मुद्दा बनाकर इस तरह उठाने लगे तो फिर दुनिया में अराजकता ही पैदा होगी। न यह किसी अंतरराष्ट्रीय कानून में आता है और न ही अंतरराष्ट्रीय राजनय में इसके बारे में मापदंड तय किए गए हैं। भारत बहरीन, कतर, ईरान, इराक, लीबिया नहीं है, जहां मजहबों पर खुली बहस नहीं हो सकती। जरा सोचिए, हिंदू धर्म और हमारे पूज्य देवी-देवताओं के बारे में स्वयं भारत एवं दुनिया के अलग-अलग देशों में कई बार नकारात्मक टिप्पणियां की गई हैं। ऐसे अनेक रेखाचित्र और कार्टून बनाए गए जो हमारी भावनाओं के विरुद्ध रहे हैं। मुझे याद नहीं कि कभी भारत सरकार ने इसके लिए उस देश से कभी इस तरह औपचारिक नाराजगी प्रकट की हो। इस आधार पर व्यवहार हो तो दुनियां के अनेक विश्वविद्यालयों में मान्य पुस्तकें हैं, जहां हिंदू धर्म के बारे में दी गई जानकारियां सामान्य अपमान की सीमा को पार करती है। तो भारत सरकार को इन सारे देशों से नाराजगी प्रकट कर इन्हें पुस्तकों को हटाने तथा माफी मांगने के लिए कहना चाहिए।
दुनिया में ईसाई देशों की संख्या सबसे ज्यादा है। अगर ईसा मसीह या बाद के उनके दूसरे संतों पर कोई टिप्पणी हो जाए और सारे देश उस देश के राजदूत को बुलाकर नाराजगी प्रकट करने लगे तो क्या होगा? स्वयं मुस्लिम देशों के अंदर कई बार ऐसे बयान आते हैं। जाहिर है , यह प्रसंग भारत के साथ पूरे विश्व के लिए चिंता का विषय होना चाहिए। ठीक है कि हमारे भारतीय भारी संख्या में खाड़ी देशों में हैं। उनके साथ हमारे बहुपक्षीय संबंध हैं। किंतु संबंधों के पालन का दायित्व दोनों ओर से होता है। जरा सोचिए, इन देशों का रवैया कैसा है? उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू कतर में थे और उनकी यात्रा पर इसका असर पड़ सकता था। ईरान की तेल बिक्री पर प्रतिबंध खत्म करने के लिए भारत कोशिश कर रहा है पर उसने इसकी तनिक प्रवाह नहीं की। कुवैत तो भारत के करीबी देशों में माना जाता है।
तात्कालिक रूप से भारत ने जो भी किया उस पर अभी टिप्पणी की आवश्यकता नहीं, लेकिन दूरगामी दृष्टि से इन देशों के व्यवहार को पूरी सच्चाई के साथ स्वीकार कर द्विपक्षीय-अंतरराष्ट्रीय संबंधों के मामले में नये सिरे से नीति रणनीति बनाने की आवश्यकता उत्पन्न हुई है। भारत ऐसा देश है, जहां किसी आधार पर विदेशों में सवाल उठा नहीं कि एक वर्ग हथियार बनाकर अपनी ही सरकार पर टूट पड़ता है। सारे संबंधों की कसौटी इस्लाम मजहब है। उस पर उनके नजरिए से अगर आपके देश में सब कुछ सामान्य है तभी आपके संबंधों का महत्त्व है अन्यथा नहीं। इस कटु सच्चाई को दुनिया के सभी गैर इस्लामी देश स्वीकार करें तभी यह समझ में आएगा कि भविष्य की अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में इस पहलू का निर्धारण कैसे हो।

अवधेश कुमार


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