सरोकार : छोड़ो कल की बातें कल की बात पुरानी
गुजरात की क्षमा बिंदु ने अपनी सनसनीखेज घोषणा से देश में सोलोगैमी की नई बहस छेड़ दी है। भारत जैसे देश में एकल विवाह यानी सोलोगेमी बिल्कुल नई अवधारणा है।
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सोलोगेमी, एक ऐसी शादी जिसमें खुद के साथ ही शादी की जाती है। बीते कुछ सालों में पश्चिमी देशों में यह चलन तेजी से बढ़ा है। लेकिन अब भारत भी एक ऐसी ही शादी का गवाह बनेगा। क्षमा बिंदू 11 जून को गुजरात के वड़ोदरा शहर के एक मंदिर में पूरे हिंदू रीति-रिवाज के साथ शादी करेंगी। लाल शादी का जोड़ा पहनेंगी, मेंहदी लगाएंगी और सिंदूर से अपनी मांग भरेंगी। और तो और अग्नि को साक्षी मानकर शादी के सात फेरे भी लेंगी। शादी के पहले की सारी रस्में भी की जाएंगी। हल्दी, संगीत और मेंहदी की रस्म होगी। शादी के पहले की रस्में अगर जरूरी हैं, तो शादी के बाद हनीमून पर भी जाने का रिवाज है और क्षमा हनीमून पर गोवा जाएंगी। हालांकि ये बातें सुनने में अटपटी लगती हैं। इसके पीछे सस्ती लोकप्रियता बटोरना या भारत जैसे समाज को एक नया दृष्टिकोण देना भी हो सकता है।
सोलोगेमी में आस्था रखने वालों का मानना है कि खुद से शादी करने के बाद उनका पूरा जीवन खुद से प्यार करने में व्यतीत होगा। खुद से शादी करना, अपने आप से एक वादा है। वादा जिसमें आप हमेशा अपने लिए मौजूद रहें। ऐसा वादा जिसमें आप अपने लिए ऐसी जिंदगी और लाइफस्टाइल चुनें जो आपको आगे बढ़ने और ग्रो करने में मदद करे, ताकि आप जीवंत, खूबसूरत और संतुष्ट-खुश जीवन गुजार सकें लेकिन क्या भारत जैसे विशुद्ध पारंपरिक देश में जहां शादी एक सात्विक अनुष्ठान है ऐसी परिकल्पनाओं को कोई प्रश्रय मिलेगा। क्योंकि ऐसी घोषणाओं के टूटने का पूरा इतिहास रहा है।
एक बेहद आश्चर्यजनक मामले में 33 वर्षीय एक ब्राजीलियाई मॉडल ने अपनी शादी के कुछ समय बाद ही खुद को तलाक भी दे दिया था। खुद से शादी करने की खबर पहली बार लगभग 20 साल पहले सुनने में आई थी, जब कैरी ब्रैडशॉ (अमेरिकन सिरीज सेक्स एंड द सिटी का मशहूर किरदार) ने इसका जिक्र किया था। लेकिन यह शो कॉमेडी ड्रामा था। आंकड़े बताते हैं कि सालों में इस तरह की सैकड़ों शादियां हुई हैं, लेकिन वो निभ नहीं पाई। इधर विशेषज्ञों की मानें तो इस तरह का फैसला मानसिक फितूर से ज्यादा कुछ भी नहीं। ऐसी अजीबोगरीब धारणा की भारत में कोई जगह नहीं। यहां शादियां दो अंजान जोड़ों को पवित्र बंधन में बांध कर उन्हें नव सृजन का आधार देती हैं। किसी दूसरे के बगैर विवाह की सोच ही शादी जैसी अवधारणा को ध्वस्त करती है। संतति के विस्तार के लिए जोड़ों का होना आवश्यक है। ऐसे में एकल विवाह की निराधार अवधारणा अस्वीकार्य है। खुद से प्यार दिखाने के लिए आडंबर की आवश्यकता नहीं। भले ही कुछ लोग क्षमा के निर्णय को दूसरों के लिए मिसाल बता रहे हैं पर ज्यादातर लोग इसकी र्भत्सना कर रहे हैं। इसे पारिवारिक जिम्मेदारियों से भागने वाला निर्णय करार दे रहे हैं। हमारी संस्कृति, प्रणय संबंधों को पूजती है। समय के साथ बदलते परिवेश के साथ इस अवधारणा की मिथकियता टूट रही है। जब समाज में वर्जनाएं टूटने लगती हैं, तो स्त्रियों की अस्मिता पर सवाल भी उठने लगते हैं। उन्हें तमाम कुप्रवृतियों और विद्रूपताओं की जननी माना जाने लगता है। समानता, सबलता और स्वतंत्रता की उनकी अलख कहीं काजल की कोठरी में न समा जाए इसका ध्यान रखना होगा।
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