आत्महत्या : परिवार का अवलंबन रहे अडिग

Last Updated 06 Jun 2022 12:35:36 AM IST

आत्महत्या का विचार करना सरल है। आत्महत्या करना सरल नहीं। गांधी जी का यह कथन बिल्कुल सही है, क्योंकि आत्महत्या के बारे में सोचना बेहद आसान है, लेकिन जब कोई भी व्यक्ति आत्महत्या करने के लिए जाता है तो उसकी हिम्मत टूट जाती है।


आत्महत्या : परिवार का अवलंबन रहे अडिग

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक रिपोर्ट के मुताबिक पूरी दुनिया में हर साल करीब आठ लाख लोग खुदकुशी करते हैं। हर 40 सेकेंड में एक व्यक्ति आत्महत्या के कारण अपनी जान गंवाता है।
पूरी दुनिया में होने वाले इन खुदकुशी की वजह से न सिर्फ  एक परिवार बल्कि एक समुदाय और पूरा देश प्रभावित होता है। खुदकुशी करने वाले लोगों की संख्या पूरी दुनिया में युद्ध और नरसंहार में मारे गए लोगों से भी कहीं ज्यादा है। हाल के महीनों में अपनी जीवनलीला समाप्त करने वालों की खबरें कुछ ज्यादा ही सामने आ रही है। कोई बेरोजगारी के चलते तो कोई प्यार में असफलता के कारण तो कोई अवैध संबंधों के चलते तो कोई परीक्षा में आशानुरूप प्रदर्शन न कर पाने के कारण अपना जीवन खत्म कर रहा है। सवाल यही कि क्या किसी भी दबाव या विफलता के कारण क्षण भर में अपनी जान खत्म कर देना समझदारी है? क्षणिक आवेश में आकर ऐसा हाहाकारी कदम उठाना कायरों का चरित्र होता है। प्रतिकूल परिस्थितियों से डटकर मुकाबला करना ही मर्दानगी और मजबूत संकल्पशक्ति को परिलक्षित करता है।
आत्महत्या का निर्णय आसान नहीं होता लेकिन समाज में कई कारण हैं, जो आत्महत्या की हद तक पहुंचा देते हैं। इसलिए इसकी व्याख्या समाज के संदर्भ में होनी चाहिए। वैश्विक रूप से आत्महत्या मृत्यु का दसवां सबसे बड़ा कारण है। प्रति वर्ष करीब दस लाख लोग आत्महत्या कर रहे हैं यानी वार्षिक मृत्यु दर में लगभग 10 प्रतिशत इसका योगदान है। एक रिपोर्ट के अनुसार 1960 से 2020 तक आत्महत्या की दर 70 प्रतिशत बढ़ गई है। भारत में 2016 में 131008 लोगों ने आत्महत्या किया। यह संख्या 2020 में बढ़कर 153052 हो गई यानी हर दिन 419 लोग आत्महत्या करते हैं। देश में सर्वाधिक आत्महत्या की घटनाएं महाराष्ट्र (19909) में होती हैं। स्वयं मृत्यु का वरण करने वालों में अशिक्षित  12.6 प्रतिशत, प्राथमिक शिक्षा वाले 15.8 प्रतिशत, माध्यमिक शिक्षा वाले 19.5 प्रतिशत, मैट्रिक और इंटर वाले 23.4 प्रतिशत तथा सेकेन्ड्री से आगे की शिक्षा वाले करीब 25 प्रतिशत से अधिक थे। इनमें स्नातक से अधिक शिक्षा वाले 4 प्रतिशत हैं। पूरी दुनिया में 30 प्रतिशत आत्महत्याएं कीटनाशकों से होती हैं।

आत्महत्या के 10 से 40 प्रतिशत प्रयास असफल होते हैं। चीन और भारत में सर्वाधिक आत्महत्याएं होती हैं। प्राचीन एथेंस में जो व्यक्ति राज्य की अनुमति के बिना आत्महत्या करता है, उसे दफन होने का अधिकार नहीं मिलता। 19वीं शताब्दी में ग्रेट ब्रिटेन में आत्महत्या के प्रयास को ‘हत्या के प्रयास’ के तुल्य माना जाता था और इसकी सजा फांसी थी। यूरोप में इसे पागलपन से प्रेरित कृत्य करार दिया गया। हालांकि अधिकतर पश्चिमी देशों में आत्महत्या अब अपराध नहीं रह गई है। लेकिन भारत में आत्महत्या गैरकानूनी है। जर्मनी में सक्रिय इच्छा मृत्यु गैरकानूनी है, और आत्महत्या के दौरान उपस्थित व्यक्ति पर आपातकाल में सहयाता करने में विफल रहने पर मुकदमा चलाया जाता है। यों तो आत्महत्या के लिए अनेक कारक जिम्मेवार हैं, लेकिन मुख्य रूप से बदलते जीवन-शैली, व्यावसायिक असफलता, अकेलेपन का अहसास, मानसिक तनाव, नशाखोरी, वित्तीय दिवालापन, असह्य वेदना एवं संवेदनात्मक ठेस आदि प्रमुख कारण हैं।
पिछले कुछ वर्षो में परीक्षा एवं प्रेम में असफलता की स्थिति में किशोर वय के छात्र-छात्राओं के आत्महत्या के मामले बढ़े हैं। आत्महत्या दुखद होती है, लेकिन हर मामले में कुछ न कुछ रहस्य छिपा होता है। इसके पीछे एक सामान्य वजह मन में निराशा की गहरी भावनाओं का घर कर जाना है। कई बार ऐसा लगता है कि जिंदगी और हालात से पैदा हुई चुनौतियों का सामना नहीं कर पाएंगे या समस्याओं का समाधान नहीं तलाश पाएंगे। ऐसे में घबरा कर आत्महत्या को ही एकमात्र समाधान समझ लेते हैं, जबकि समस्या वाकई अस्थायी होती है। जिंदगी कितनी खूबसूरत है, इस बात को उन लोगों से मिलकर समझा जा सकता है, जिन्होंने आत्महत्या की कोशिश की थी और बच गए। आत्महत्या जैसी अप्राकृतिक घटनाओं को टालने के लिए सरकार, समाज एवं परिवार को आगे आना होगा। सरकार को अपनी नीति, निर्णय एवं रोजगार सृजन के अवसरों में पारदर्शिता दिखानी होगी। समाज में युवा एवं किशोरों पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव जनित प्रचलनों पर अंकुश लगाने की जरूरत है। परिवार के बीच टूटते रिश्ते और संवादहीनता पर ध्यान देना होगा ताकि परिवार का छोटा-बड़ा कोई सदस्य अपने को तन्हा न समझे। कितनी भी विकट परिस्थिति आए संवाद हर हाल में होना चाहिए। बात करने, सुख-दुख बांटने से कई बार चीजें सहज हो जाती हैं। अकेलापन हर समस्या की जड़ है। इसे अपने पर कभी हावी न होने दें। हर सदस्य के भीतर परिवार पर अवलंबन का भरोसा अडिग रहे।

डॉ. भीम सिंह भवेश


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