बतंगड़ बेतुक : हमारी इन भावनाओं को समझिए

Last Updated 05 Jun 2022 12:33:56 AM IST

झल्लन आया तो प्रतिनिधि पत्रकारिता का एक टुच्चा-सा अखबार भी उठा लाया।


बतंगड़ बेतुक : हमारी इन भावनाओं को समझिए

प्रथम पृष्ठ पर एक उस युवा नेता की तस्वीर छपी हुई थी जो प्राय: छपास में रहने लगा था और अपने महान देश की महान राजनीति की धाराविहीन मुख्यधारा में बहने लगा था। उसके चेहरे पर विजयोल्लसित मुस्कान चिपकी हुई थी, पर हां इस बार उसकी टोपी बदली हुई थी। झल्लन ने अखबार हमारी आंखों के सामने फिराया, गंभीरता से थोड़ा मुस्कुराया और बोला, ‘ददाजू, ये हमारे भारत का भविष्य हैं, इन्हें प्रणाम कीजिए और भारत के उज्ज्वल भविष्य के लिए इनका आशीर्वाद लीजिए और भविष्य में अपना पूरा समर्थन सिर्फ इन्हीं को दीजिए।’
हमने कहा, ‘तू बौरा गया है झल्लन जो सुबह-सुबह हमें ऐसे व्यक्ति की तस्वीर दिखा रहा है जो न जाने कहां-कहां कूदा-फांदा है और अब नयी कूद लगाने जा रहा है।’ झल्लन बोला, ‘हे राम, हे राम ! ददाजू, गुजरात का कुछ तो मान रखिए, जहां से हमारे ये युवा नेता नये मैदान में उतरे हैं, ये वही गुजरात है जो गांधी बाबा की जन्म-कर्मभूमि रहा है और जहां से हमारे माननीय वर्तमान प्रधानमंत्री उभरे हैं। इसलिए हमारी भावनाओं का नहीं पर गुजरात की भावनाओं को ध्यान में धरिए और अपनी बातों से गुजरात विरोधी सवाल मत करिए। और क्या आपने कभी इस पर ध्यान दिया है कि गुजरात की कांगेस का कार्यकारी अध्यक्ष पद छोड़कर इस युवा नेता ने कितना महान कार्य किया है, कितना बड़ा त्याग किया है। ये बेचारी कांग्रेस को छोड़कर शक्तिशाली भाजपा में यूं ही नहीं आये हैं, साथ में अपनी दूध की धुली भावनाओं को भी लाये हैं।’ हमने कहा, ‘हमें नहीं पता कौन सी भावनाएं अखबार में उछाल मार रही हैं, तू किन भावनाओं की बात कर रहा है जिन्हें लेकर तेरी भावनाएं उफान पर आ रही हैं?’

झल्लन बोला, ‘ददाजू, आप देश की भावनाओं का खयाल ही नहीं करते, देशप्रेमी भावनाएं कहां-कहां भटक रही हैं इसका हिसाब ही नहीं रखते। हमारे भीतर जो भावनाएं घुमड़ रही हैं वे हमारे युवा नेता की भावनाओं के साथ मिलकर उमड़ रही हैं। हमारे युवा नेता ने ट्वीट किया है कि वह राष्ट्रहित, प्रदेशहित, जनहित एवं समाजहित की भावनाओं के साथ नये अध्याय की शुरुआत कर रहे हैं, बस हम उनकी इन्हीं पवित्र भावनाओं की बात कर रहे हैं।’ हमने कहा, ‘जब तेरा यह युवा नेता कांग्रेस में आया था तब क्या उसकी ये भावनाएं घुंइयां बो रही थीं या अफीम खाकर कहीं सो रही थीं?’ झल्लन बोला, ‘देखिए ददाजू, हम आपका लगातार सम्मान कर रहे हैं और आप हैं कि हमारे युवा नेता की पवित्र भावनाओं का अपमान कर रहे हैं। भावनाओं का क्या है, भावनाएं ही तो हैं, जब मन नहीं करता है तो सो जाती हैं और जब मन करता है तो उठकर खड़ी हो जाती हैं। जो भावनाएं जिस समय उठकर खड़ी हो जायें, भीतर से बाहर निकल आयें बस उन्हीं को टंच भावना मानना चाहिए और उन्हीं के बारे में समझना-जानना चाहिए।’

हमने कहा, ‘चल ठीक है, पर ये बता ये राष्ट्रहित, प्रदेशहित, जनहित और समाजहित की भावनाएं होती क्या हैं जो नये दल में आते ही जग जाती हैं, पुराने दल में रहते आंख मूंदकर सो जाती हैं?’ झल्लन बोला, ‘हम तो बातों में भूल ही गये ददाजू, हमने बहुत समझने की कोशिश की पर समझ ही नहीं पाये थे सो अपनी भावनाओं में बहकर इन पवित्र राष्ट्रीय भावनाओं के बारे में जानने के लिए ही आपके पास आये थे। अब आप हमसे सवाल मत कीजिए, बस इन पवित्र भावनाओं के बारे में हमें थोड़ा ज्ञान दीजिए।’हमने कहा, ‘भावनाओं का तूफान तेरे अंदर जाग रहा है, इनका झंडा अपने दिमाग के डंडे पर तू टांग रहा है, और यह भावनाएं क्या होती हैं इसका जवाब हमसे मांग रहा है?’ झल्लन बोला, ‘देखिए ददाजू, हम आपको थोड़ा सा विद्वान मानते आ रहे हैं इसीलिए अपनी तुच्छ जिज्ञासाएं लेकर आपके पास आ-जा रहे हैं। आप समझाएंगे तो हम थोड़ा बहुत समझ जाएंगे अन्यथा हम टीवी चैनल पर बैठे राजनीति के किसी महाधिवक्ता के पास चले जाएंगे।’ हमने कहा, ‘देख झल्लन, जैसे कोई औरत घर से बाहर निकलने पर ओठों पर लिपस्टिक लगा लेती है, अपना सौंदर्यबोध थोड़ा जगा लेती है, इसी तरह हमारे नेताओं की जमात एक दल से दूसरे दल में जाते हुए अपनी जुबान पर इन भावनाओं को चिपका लेती है। राष्ट्रहित, प्रदेशहित, जनहित और समाजहित की भावनाएं दरअसल पुंचलियां होती हैं जिनका अपना कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं होता पर जो अपने ग्राहकों की तुष्टि के लिए उनकी इच्छानुसार जागती-सोती हैं।

अब कोई कहे कि वह राष्ट्रहित, प्रदेशहित, जनहित और समाजहित के लिए डकैती डाल रहा है, अपने भीतर एक निर्लज बहरूपिये को पाल रहा है तो कोई भी मेरा-तेरा जैसा व्यक्ति आखिर इनकी भावनाओं का क्या तोड़ लेगा, ज्यादा हुआ तो अपना सर किसी दिवार पर फोड़ लेगा।’ झल्लन बोला, ‘ददाजू, आपकी इन भावनाओं से हमारा दिमाग ऐंठने लगा है, हमारे भीतर डर पैठने लगा है, हमारी भावनाओं का दिल बैठने लगा है। भावनाओं में बहकर भी हम क्या पाएंगे, चलिए उठिए कहीं बैठकर चिलम लगाएंगे।’

विभांशु दिव्याल


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