सामरिक : चीन की चौतरफा घेराबंदी

Last Updated 29 May 2022 12:17:56 AM IST

पैसिफिक रीजन में सहयोगी देशों के साथ आर्थिक संबंध मजबूत बनाने की दृष्टि से अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने हिंद-प्रशांत आर्थिक समूह (आईपीईएफ) के गठन का ऐलान किया है।


सामरिक : चीन की चौतरफा घेराबंदी

समूह इंडो-पैसिफिक रीजन में कारोबारी नीतियों, सप्लाई चेन (आपूर्ति श्रृंखला), कार्बन उत्सर्जन में कमी, टैक्स, डिजिटल धोखाधड़ी और इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे विषयों पर काम करेगा। समूह में भारत सहित 13 देश शामिल हैं। इसमें भारत, जापान और अमेरिका के अलावा ऑस्ट्रेलिया, ब्रुनेई, ताइवान, न्यूजीलैंड, इंडोनेिया, फिलीपींस, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया, थाईलैंड और वियतनाम को शामिल किया गया है। आईपीईएफ को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के विस्तारवाद पर अमेरिकी नियंत्रण के प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है। क्वॉड और ऑकस की तरह चीन ने बाइडन की इस पहल की आलोचना की है। विदेशमंत्री वांग यी ने कहा कि नई कारोबारी पहल से इस क्षेत्र में शक्ति प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी। उनका देश क्षेत्र में विभाजन और टकराव पैदा करने वाली किसी भी पहल का विरोध करता है।
दरअसल, चीन-अमेरिका इकोनॉमिक वारफेयर में चीन की आक्रामकता लगातार बढ़ती जा रही है। अमेरिका इस वारफेयर में खुद को पिछड़ा महसूस कर रहा है। आईपीईएफ के जरिए अमेरिका इस स्पेस को भरना चाहता है। द्वितीय, हिंद-प्रशांत क्षेत्र वैश्विक अर्थव्यवस्था की मुख्य धुरी है। यहां स्थित 38 देशों में दुनिया की 65 फीसद या 4.3 अरब आबादी निवास करती है। दुनिया का 50 प्रतिशत समुद्री व्यापार इसी मार्ग से होता है। चीन की विस्तारवादी नीतियों के कारण मौजूदा समय में यह क्षेत्र वैश्विक शक्तियों के मध्य शक्ति संघर्ष का कारण बना हुआ है। चीनी मंसूबों पर नकेल डालने के लिए इस तरह की पहल जरूरी थी। तृतीय, पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शासनकाल में अमेरिका के ट्रांस पैसेफिक पार्टनरशिप (टीपीपी) से बाहर निकल जाने के बाद एशिया में अमेरिकी साख को बट्टा लगा है। आईपीईएफ की तरह टीपीपी का भी अहम मकसद प्रशांत क्षेत्र में स्थित राष्ट्रों के बीच निकटता बढ़ाने तथा चीनी मंसूबों का नियंत्रित करना था। पांच वर्षो तक चली मैराथन बैठकों के बाद अंतत: फरवरी 2016 में अमेरिका की अगुआई में टीपीपी को अंजाम दिया गया। यह विश्व का सबसे बड़ा व्यापार समझौता था।

लेकिन 2017 में अमेरिकी सत्ता में आए रिपब्लिकन ट्रंप ने पद भार संभालने के पहले ही दिन टीपीपी समझौते से अमेरिका के निकलने की घोषणा कर दी। बाद में जापान के नेतृत्व में यह कंप्रिहेंसिव एंड प्रोग्रेसिव एग्रीमेंट ऑन ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप (सीपीटीपीपी) के रूप में तब्दील हो गया। बाइडन के सत्ता में आने के बाद अमेरिका फिर से एशियाई देशों से तालमेल बढ़ाने की कोशिशों में जुटा हुआ था। आईपीईएफ बाइडन की इन्हीं कोशिशों का परिणाम है। चतुर्थ, चीन टीपीपी का प्रभावशाली सदस्य है। वह सीपीटीपीपी में भी मेंबर बनना चाहता है। चीन 14 सदस्यों वाले रीजनल कंप्रिहेंसिव इकनॉमिक पार्टनरशिप (आरसीइपी) का भी हिस्सा है। अमेरिका इसका सदस्य नहीं है, जबकि भारत इससे बाहर निकल चुका है। ऐसे में बाइडन की इस कोशिश को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की मनमानियों पर नियंत्रण के प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है।
भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी बाइडन की पहल का स्वागत करते हुए इस समूह को खुले, मुक्त एवं समावेशी हिंद-प्रशांत की प्रतिबद्धता के लिए वैश्विक ग्रोथ का इंजन बताया है। बाइडन आईपीईएफ को लेकर खासे उत्साहित हैं। वे इसे पूर्वी और दक्षिण पूर्व एशिया के देशों के साथ जुड़ने का एक नया जरिया मान रहे हैं। उनके नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर जेक सुलीवन ने इसे 21 वीं सदी की आर्थिक व्यवस्था बताया है, लेकिन सवाल अमेरिकी विसनीयता का है। क्या गांरटी है कि सत्ता पर्वितन के बाद आने वाला नेतृत्व ट्रंप की तर्ज पर समझौते से बाहर नहीं निकलेगा। ताइवान को शामिल नहीं किया जाना भी इसकी साख पर सवाल उठा रहा है। फिर, अभी इसका संगठनात्मक स्वरूप और प्रावधानों को लेकर सदस्य देशों के बीच सहमति बनना बाकी है। ऐसे में अभी से यह कहा जाना कि यह समझौता 21वीं सदी की वैविक जरूरतों को पूरा करने में पूरी तरह सफल होगा जल्दबाजी ही होगा।

डॉ. एन.के. सोमानी


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment