सामरिक : पैंगोंग पर पेच

Last Updated 25 May 2022 12:50:42 AM IST

तैशीगोंग एक गांव है जो 1962 तक लद्दाख में आता था। भारत की सेना यहां तक गश्त करने जाया करती थी।


सामरिक : पैंगोंग पर पेच

 इस समय यह चीन अधिग्रहित तिब्बत में है और भारत की सीमा से करीब 55 किलोमीटर दूर है। जाहिर है चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा का उल्लंघन करते हुए लगातार भारत के इलाकों पर कब्जा करता जा रहा है। लेह से पैंगोंग झील पूर्वी दिशा में तकरीबन 120 किलोमीटर दूर है। यह झील सामरिक, ऐतिहासिक और राष्ट्रीय सम्मान की दृष्टि से भारत के लिए अति महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। भारत के लेह का बहुत सामरिक महत्व है।
इसके पूर्व में अक्साई चिन तथा तिब्बत और उत्तर में चीन का शिनिजयांग प्रांत है। 1962 तक भारतीय सेना पैंगोंग झील में फिंगर 8 तक गश्त किया करती थी। भारत चीन युद्ध के बाद सेना की गश्त इस इलाके में अनियमित हो गई और यहीं से सुरक्षा का बड़ा संकट खड़ा हो गया। इस समय भारत का प्रभाव फिंगर 3 तक है और यहां धनसिंह थापा चौकी स्थापित है जहां से सेना फिंगर 4 तक जाती है। यहां 25 से 30 सैनिक ही बैठते हैं और ऐसा चीन से दबाव के कारण होता है। पैंगोंग के दक्षिण में बॉटल नेक एरिया है, इस पर भी चीन ने अधिकार जमा लिया है। यह इलाका बाइकर्स के लिए स्वर्ग माना जाता है, लेकिन यहां किसी को जाने की अनुमति नहीं है। भारत पाकिस्तान के बीच वाघा सीमा जहां पर्यटकों की पसंदीदा जगह मानी जाती है, भारत चीन सीमा रेखा पर ऐसे कई सुंदर प्राकृतिक स्थान हैं, लेकिन वहां जाने की अनुमति मिलना मुश्किल होता है या जाने ही नहीं दिया जाता है, यह सब चीन के दबाव का नतीजा है। बॉटल नेक एरिया एक वैली है जो पैट्रोल प्वाइंट 16 के पास है।

इन इलाकों में सुरक्षा चिंताओं को लेकर आईबी ने एक रिपोर्ट भी गृह मंत्रालय को सौंपी थी। इस समय पैंगोंग के आसपास चीन द्वारा नये पुल के निर्माण की खबरें आई है। यह दोनों पुल चीन की सेना की स्थिति को बहुत मजबूत कर सकते है। खासकर पैंगोंग झील पर चीन लगातार आगे बढ़ता जा रहा है और इसका पता फिंगर की स्थिति से चलता है। पैंगोंग से सटी पर्वतमालाओं के बीच एक फिंगर से दूसरे की दूरी सामान्यतया 2 से 3 किलोमीटर होती है। रणनीतिक तौर पर भी इस झील का काफी महत्त्व है, क्योंकि ये झील चुशूल घाटी के रास्ते में आती है। चीन इस रास्ते का इस्तेमाल भारत पर हमले के लिए कर सकता है। पूर्वी लद्दाख की पैंगोंग त्सो झील शीत काल में जम जाती है। 134 किलोमीटर लंबी और 5 किलोमीटर चौड़ी हिमालय की इस झील में ग्रीष्म काल में भारत और चीन के नौका गश्ती दल अक्सर आमने-सामने होते हैं और अधिकांश झड़पें इसी समय होने की आशंका बढ़ जाती है। पैंगोंग त्सो झील के दूसरी और चीन का सीपेक हाईवे का काम तेजी से आगे बढ़ रहा है जो उसे पाकिस्तान से जोड़ता है। भारत के लिए यह इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है कि यदि चीन का आधिपत्य फिंगर 8 से बढ़कर फिंगर 3 तक हो गया तो भारत की सप्लाई लाईन पूरी तरह से कट जाएगी। चीन आसानी से दौलत बेग ओल्डी, मार्समिक पास, गलवान नाला, छांग छेन्मो, रेस्लांग लॉ से डेमजोंग, दक्षिण चुशूल न्योमा पर कब्जा करने के लिए मजबूत स्थिति में होगा और वहां से लेह बहुत पास होगा।
यह समूचा क्षेत्र भारत के लिए कितना अहम है इसका पता इसी से चलता है कि श्योक तथा काराकोरम दर्रे के बीच दौलत बेग ओल्डी सोलह हजार फीट से अधिक की ऊंचाई पर स्थित एक पठार है। यहां दुनिया की सबसे ऊँची हवाई पट्टी भी है जो चीन और पाकिस्तान पर नजर रखने के लिए सामरिक रूप से भारत को बढ़त देती है। 1962 के युद्ध के दौरान भारतीय सेना ने चुशूल घाटी के दक्षिण-पूर्वी छोर के पहाड़ी दर्रे रेजांग दर्रा में चीनी सेना को रौंद दिया था। इसके कई सालों बाद 2017 में पैंगोंग झील के किनारे कुछ भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच झड़प हुई थी।
भारत के ऐतिहासिक सिल्क रोड के केंद्र में कभी लेह हुआ करता था और चीन पर उसकी नजर बनी हुई है। भारत इस इलाके में आधारभूत संरचना का निर्माण इस समय तेजी से कर रहा है और यह चीन को चुनौतीपूर्ण नजर आता है, जिसके कारण वह सीमा पर तनाव बढ़ाए हुए है। इस समय दारबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी रोड पर तेजी से काम कर रहा है। यह सड़क वास्तविक नियंत्रण रेखा के समांतर है और इसकी ऊंचाई तेरह हजार से सोलह हजार फुट है। यह सड़क लेह को काराकोरम दर्रे से जोड़ती है तथा चीन के शिन्जियांग प्रांत से लद्दाख को अलग करती है। पैंगोंग पर आगे बढ़कर चीन गलवान घाटी को नियंत्रण में लेना चाहता है।  गलवान घाटी लद्दाख और अक्साई चिन के बीच भारत-चीन सीमा के नजदीक स्थित है। यहां पर वास्तविक नियंत्रण रेखा अक्साई चिन को भारत से अलग करती है। दरअसल, प्राकृतिक और भौगोलिक जटिलता की वजह से दोनों देशों के बीच कई स्थान ऐसे हैं, जहां सीमांकन हो ही नहीं पाया है। यही हकीकत है भारत और चीन को अलग करने वाली वास्तविक नियंत्रण रेखा की। भारत चीन के साथ तकरीबन साढ़े तीन हजार किमी लंबी सीमा रेखा साझा करता है। चीन इस रेखा को दो हजार किमी की बताता है और भारत के कई इलाकों पर अवैधानिक दावा जताता है।
2017 में पैंगोंग में भारतीय सेना और चीनी सेना आमने-सामने हुई थी और इसके बाद दोनों देशों की सेनाओं के बीच कई स्तर की बातचीत हो चुकी है जो बेनतीजा रही है। चीन जहां इन क्षेत्रों में नये निर्माण करते जा रहा है वहीं भारत के नये निर्माण पर वह कड़ा विरोध जताता रहा है। चीन ने पैंगोंग झील के पार एक दूसरे पुल का निर्माण कथित रूप से शुरू कर दिया है जो भारी बख्तरबंद वाहनों को आवाजाही के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। आजादी के बाद से ही भारत का चीन और पाकिस्तान से सीमा विवाद को लेकर अलग-अलग रुख रहा है। भारत ने पाकिस्तान को लेकर अक्सर जैसी आक्रामकता दिखाई है वैसी आक्रामकता चीन को लेकर नहीं देखी गई है। यही कारण है कि चीन सामरिक रूप से भारत पर निर्णायक बढ़त लेने में कामयाब रहा है। बहरहाल, वास्तविक नियंत्रण रेखा का लगातार उल्लंघन करने से रोकने के लिए चीन के खिलाफ भारत को सख्ती से पेश आने की जरूरत है।

डॉ. ब्रह्मदीप अलूने


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