बॉक्सिंग : निकहत के गोल्डन पंच ने जगाई उम्मीदें

Last Updated 25 May 2022 12:44:10 AM IST

निकहत जरीन तमाम मुश्किलों को पार करते हुए इस्तांबुल (तुर्की) में हुई विश्व बॉक्सिंग चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक हासिल करने में सफल हो गई।


बॉक्सिंग : निकहत के गोल्डन पंच ने जगाई उम्मीदें

उन्होंने फ्लाईवेट वर्ग में थाईलैंड की मुक्केबाज जुटामास जितपोंग  को हराकर यह स्वर्ण पदक हासिल किया। वह यह स्वर्ण जीतने वाली पांचवीं भारतीय महिला मुक्केबाज हैं। उनसे पहले एमसी  मैरीकॉम (छह स्वर्ण), सरिता देवी, आरएल जेनी और केसी लेखा हैं। मैरीकॉम ने आखिरी बार 2018 में स्वर्ण पदक जीता था, उसके बाद वह यह सम्मान पाने वाली निकहत पहली भारतीय हैं।
निकहत ने स्वर्ण पदक जीतने के बाद कहा कि अब उनकी निगाह 2024 के पेरिस ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने पर है। वह अभी इस साल होने वाले कॉमनवेल्थ गेम्स में और फिर एशियाई खेलों में इसी 52 किग्रावर्ग में चुनौती पेश करेंगी। वैसे एशियाई खेल स्थगित हो गए हैं और उनकी नई तारीखों की अभी घोषणा नहीं हुई है। असल में ओलंपिक खेलों में निकहत में जिस भार वर्ग में स्वर्ण पदक जीता है, वह नहीं होगा। इसके लिए उन्हें या तो 50 किग्राया 54 किग्रावर्ग में भाग लेना होगा। वह यदि 50 किग्रावर्ग में भाग लेती हैं तो उनका एक बार फिर अपनी आदर्श मैरीकॉम से टकराव हो सकता है। उन्होंने कहा कि पेरिस ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतना मेरा सपना है और उसके रास्ते में जो भी चुनौती आएगी, उसे मैं पार करूंगी। अभी पिछले साल हुए टोक्यो ओलंपिक में भी उनका मैरीकॉम से टकराव हो चुका है।

भारतीय बॉक्सिंग फेडरेशन ने ओलंपिक क्वालिफिकेशन में मैरीकॉम को भेजने का तय किया था, लेकिन निकहत ने खेल मंत्री से इसके लिए ट्रायल कराने को कहा था। ट्रायल होने पर निकहत अनुभव की कमी की वजह से आसानी से हार गई थी। इस दौरान मैरीकॉम ने जीत के बाद निकहत से हाथ तक नहीं मिलाया था। यह निकहत के लिए निश्चय ही दिल तोड़ने वाला था। निकहत के लिए इस झटके से उबरना आसान नहीं था। वह इसके बाद अपने घर चलीं गई और उसी दौरान कोविड की वजह से लॉकडाउन भी लग गया था। उन्होंने घरवालों के साथ रहकर अपने को इस झटके से उबारा। निकहत की मां जो शुरू में उसके बॉक्सिंग को अपनाने की पक्षधर नहीं थीं, क्योंकि उन्हें लगता था कि उसके मुक्केबाज बन जाने पर उससे शादी कौन करेगा। उसी मां ने ट्रायल में हार से लगे झटके से उबारने में अपनी बेटी की मदद की। वह भारतीय बॉक्सिंग टीम के प्रशिक्षण शिविर में लौटकर एक बार फिर तैयारियों  में जुट गई। अब वह अपने एक सपने को पूरा करने में सफल हो गई हैं। यह सही है कि उन्होंने जिस तेजी से इस सपने को पूरा करने की सोची थी, उसे पूरा होने में काफी समय लग गया, क्योंकि वह महान मुक्केबाज मैरीकॉम के वर्ग में हैं। निकहत ने मात्र 14 साल मी उम्र में विश्व यूथ बॉक्सिंग चैंपियनशिप में खिताब जीत लिया था और इसके 11 साल बाद वह विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण जीत पाई हैं, लेकिन लगता है कि उनके कॅरियर ने अब उड़ान पकड़ ली है। निकहत जरीन की राह वैसे भी आसान नहीं रही है। निजामाबाद में फुटबाल और क्रिकेट खेले पिता मोहम्मद जमील के घर में जन्म लेने वाली निकहत ने पहले एथलेटिक्स को अपनाया। इसकी वजह उनके पिता चाहते थे कि उनकी चार लड़कियों में से कोई एक खेलों को अपनाए और इस कारण ही निकहत स्प्रिंटर बन गई। उनकी दो बड़ी बहनें डाक्टर हैं और छोटी बहन बैडमिंटन खिलाड़ी है।
उन्होंने स्प्रिंट दौड़ में राज्य स्तर पर दोनों स्पर्धाओं को जीत भी लिया, लेकिन तभी उनके अंकल ने निकहत को बॉक्सिंग अपनाने की सलाह दी और वह बॉक्सर बन गई, लेकिन उनकी सोसायटी में लड़कियों का बॉक्सर बनना सभी के लिए पचाना आसान नहीं था। कुछ रिश्तेदारों ने तो यह तक कहा कि वह यदि इस खेल को अपनाएगी तो उससे शादी कौन करेगा? वह दौर था, जब मुस्लिम समाज के लोग लड़कियों को खेलों में भेजना पसंद नहीं करते थे, क्योंकि उन्हें लगता था कि इनमें छोटे कपड़े पहनने पड़ते हैं, जो सही नहीं है। लेकिन पिता ने समाज की आशंकाओं और दकियानूसी सोच की तरफ ध्यान ही नहीं दिया। वह निकहत का पूरी तरह समर्थन करते रहे। जमील कहते हैं, ‘वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड जीतना एक ऐसी कामयाबी है, जो मुस्लिम ही नहीं देश की हर लड़की को कामयाबी हासिल करने क लिए प्रेरित करेगी। लड़का हो या लड़की सभी को अपनी राह खुद बनानी पड़ती है और निकहत ने भी ऐसा ही किया है।’
टोक्यो ओलंपिक में भारतीय महिला मुक्केबाजों से मैरीकॉम की अगुआई में शानदार प्रदर्शन की उम्मीद की जा रही थी, लेकिन महिला मुक्केबाजों ने देशवासियों को निराश कर दिया था। सिर्फ लवलीन बोरगेहन ही कांस्य पदक जीत सकीं थीं, मगर अब लगता है कि निकहत जरीन देशवासियों के सोने के तमगे की उम्मीदों को जरूर पूरा कर देंगी। अभी उनके पास ओलंपिक में किस भार वर्ग में भाग लें, फैसला लेने के लिए समय है, क्योंकि अभी तो क्वालिफिकेशन कैलेंडर की भी घोषणा नहीं की गई है। वह कॉमनवेल्थ गेम्स में भाग लेने के बाद इस बारे में फैसला कर सकती हैं।

मनोज चतुर्वेदी


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