चार धाम यात्रा : हादसे की पुनरावृत्ति की आशंका
दो हजार तेरह में उत्तराखंड में एक प्राकृतिक आपदा आई थी, जिसने प्रकृति के साथ खिलवाड़ को लेकर इंसान को बहुत बड़ी सजा दी थी।
चार धाम यात्रा : हादसे की पुनरावृत्ति की आशंका |
वह त्रासदी जिन पर बीती, वे उस मंजर को कभी नहीं भुला पाएंगे। उम्मीद थी कि लोग उस त्रासदी से सबक लेते हुए अब सतर्क होंगे और प्रकृति के प्रति अपनी आस्था भी बरकरार रखेंगे। लेकिन, दुख की बात यह है कि एक बार फिर से वही सब शुरू हो चुका है, जिसका रास्ता हमें सिर्फ विनाश की ओर ही ले जाता है। आस्था के लिए की जा रही पवित्र तीर्थयात्रा भी लोगों की गलतियों से कलंकित हो रही है।
कोरोना महामारी के करीब दो साल बाद शुरू हुई चार धाम यात्रा में इस बार भारी संख्या में श्रद्धालु आ रहे हैं। अभी तक लाखों यात्रियों ने इस बार की चार धाम यात्रा के लिए रजिस्ट्रेशन करवा रखा है। देशभर से तीर्थ यात्री चारधाम पहुंच रहे हैं, लेकिन अभी तक यात्रियों की भीड़ को नियंत्रित करने की ठोस व्यवस्था तैयार नहीं की गई है, जिससे वहां अव्यवस्था फैलनी शुरू हो चुकी है। भारी संख्या में लोगों के आने-जाने की वजह से केदारनाथ घाटी में कचरे का अंबार लग गया है। केदारनाथ घाटी में रु कने वाले लोगों ने घाटी में इतना कचरा छोड़ा है कि वहां अब कूड़े के छोटे-छोटे पहाड़ दिखने लगे हैं। कहना न होगा कि ऐसी स्थिति में यहां महामारी फैलने का भी खतरा उठ खड़ा हुआ है।
चार धाम यात्रा के दौरान हजारों श्रद्धालु हर दिन दशर्न-पूजन के लिए पहुंचते हैं। प्रदेश की अर्थव्यवस्था के हिसाब से तीर्थयात्रियों की संख्या बढ़ना बहुत ही अच्छा संकेत है। लेकिन वहीं उसके दुष्प्रभावों की चिंता करना भी उतना ही जरूरी है, और उन दुष्प्रभावों के समाधान पर भी काम करने की आवश्यकता है। केदारनाथ जाने वाले संवेदनशील रास्ते पर जिस तरह से प्लास्टिक का कचरा जमा हो चुका है, वह हमारी पारिस्थितिकी के लिए बहुत ही खतरनाक साबित हो सकता है। इससे कटाव होगा और जिसकी वजह से भूस्खलन हो सकता है। हमें 2013 की त्रासदी को ध्यान में रखना होगा और सावधान रहना चाहिए। सिर्फ सरकारों के लिए ही नहीं, बल्कि हर इंसान के लिए।
देवभूमि की इस पवित्र यात्रा की पवित्रता बनाए रखना, सबकी जिम्मेदारी है, और तीर्थयात्रियों को भी इस पर गौर करने की जरूरत है। वे देव दर्शन के लिए पहुंचते हैं, और साफ-सफाई पर ध्यान नहीं देंगे तो उनकी यात्रा का मकसद ही बेमानी होगा। इस बार चार धाम यात्रा में जिस तरह से कचरा नजर आ रहा है, वह इस पवित्र स्थान की पवित्रता नष्ट कर रहा है। खासकर प्लास्टिक बैग और रैपर्स की भरमार ने पहाड़ों की सुंदरता को ही नहीं बिगाड़ा है, बल्कि यह इसके पर्यावरण को भी चौपट कर रहा है। बाबा केदारनाथ के रास्ते में प्लास्टिक का जो कचरा नजर आ रहा है, वह पर्यावरणविद् को हिला रहा है कि आखिर, हम यह क्या कर रहे हैं। क्या हम इतनी जल्दी जून, 2013 की वह त्रासदी भूल चुके हैं? इतनी संवेदनशील जगह पर इतना कूड़ा-कचरा फेंके जाने की वजह से स्थानीय वनस्पतियों को तो नुकसान पहुंच ही रहा है, भूस्खलन जैसी घटनाओं की आशंका भी बढ़ती जा रही है। औषधीय पौधे भी विलुप्त हो रहे हैं।
बता दें, केदारनाथ आपदा से पहले पैदल मार्ग की सफाई का जिम्मा जिला पंचायत के पास था, मगर आपदा के बाद सुलभ इंटरनेशनल को यह जिम्मेदारी सौंपी गई। आज तक सफाई व्यवस्था में कोई क्रांतिकारी सुधार नहीं हुआ है। केदारनाथ में यात्रियों की बढ़ी संख्या तीर्थाटन और स्थानीय आर्थिकी के लिहाज से निश्चित रूप से अच्छा संकेत है। बावजूद इसके गंभीर सवाल यह है कि 2013 की आपदा से क्या वास्तव में हम सबक ले पाए। जरा याद कीजिए, केदारनाथ त्रासदी के बाद सरकार ने दावा किया था कि केदारनाथ में यात्रियों की संख्या नियंत्रित की जाएगी। यात्रियों के ठहरने के इंतजाम के हिसाब से ही यात्री वहां भेजे जाएंगे। इससे यात्रियों को भी दिक्कत नहीं होगी और वे आसानी से दशर्न भी कर सकेंगे। साथ ही, किसी भी आपात स्थिति से निबटने के मद्देनजर तुरंत प्रभावी कदम भी उठाए जा सकेंगे। मगर यात्रियों की संख्या नियंत्रित करने की दिशा में कोई पहल होती नहीं दिख रही।
गौरतलब है कि 2013 की केदारनाथ त्रासदी को प्रकृति से खिलवाड़ का नतीजा तो बताया गया था लेकिन सरकार ने उस भयावह हादसे से कोई सबक लेने की आवश्यकता महसूस नहीं की और प्रकृति से खिलवाड़ का वह सिलसिला निरंतर चलता रहा। इसलिए 2013 जैसे हादसे की पुनरावृत्ति की आशंका से हम कभी मुक्त नहीं हो पाए। यह सही है कि प्रकृति पर हमारा कोई जोर नहीं है परंतु हमें यह तो मानना ही होगा कि प्रकृति को चुनौती देने की मानसिकता का परित्याग तो हम कर ही सकते हैं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि चार धाम यात्रा उत्तराखंड की प्रतिष्ठा और अर्थव्यवस्था से भी जुड़ी है। यात्रा की व्यवस्थाएं ऐसी होनी चाहिए जिससे देश दुनिया में उत्तराखंड की शानदार छवि उभरे।
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