सामरिक : चीन की रणनीतिक चालें

Last Updated 22 May 2022 12:27:43 AM IST

चीन ने एक बार फिर वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पास अपनी हलचल बढ़ा दी है।


सामरिक : चीन की रणनीतिक चालें

अरुणाचल प्रदेश से लगती अंतरराष्ट्रीय सीमा पर बुनियादी ढांचों का निर्माण कर रहा है। कई जगहों पर सीमावर्ती सैनिक गांव भी बसा लिए हैं ताकि उनका इस्तेमाल युद्ध के समय अपने लक्ष्यों को पूरा करने में कर सके। चीन की इन गतिविधियों पर भारतीय सेना गंभीरता से नजर रख रही है। भारतीय सेना की पूर्वी कमान के जनरल आफिसर कमांडिंग इन चीफ लेफ्टिनेंट जनरल आरपी कालिता ने 16 मई को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए कहा कि भारत भी सीमा पर किसी भी तरह के हालातों से निपटने को तैयार है।
भारत पर दबाव बनाने के उद्देश्य से चीनी सेना ने पूर्वी लद्दाख में एलएसी के पास पैंगोंग त्सो झील के अपने वाले हिस्से में पुल बना लिया है। इससे चीनी सेना किसी भी यौद्धिक स्थिति में भारतीय सीमा के निकट शीघ्रता से पहुंच जाएगी। अभी तक इस हिस्से में पहुंचने में चीनी सेना को 200 किमी. का रास्ता तय करना पड़ता है। पुल बन जाने से यह दूरी 40 से 50 किमी. ही रह जाएगी। विदित हो कि पैंगोंग त्सो लेक की लंबाई 135 किमी. है। स्थलीय सीमा से घिरी इस झील का कुछ हिस्सा लद्दा और बाकी हिस्सा तिब्बत में है। झील के उत्तरी तट पर फिंगर आठ से 20 किमी. पूर्व में ब्रिज का निर्माण किया जा रहा है। ब्रिज साइट रु तोग काउंटी में खुर्नक जिले के ठीक पूर्व में है जहां पीएलए के सीमावर्ती ठिकाने हैं। चीनी पुल 400 मीटर लंबा बन चुका है। तकरीबन 8 मीटर चौड़ा है।
विदित हो कि अगस्त, 2020 में चीनी सेना पैंगोंग त्सो झील के फिंगर-4 तक आ गई थी। करीब डेढ़ साल के तनाव के बाद चीनी सेना पीछे हटी लेकिन अब उसने अपनी तरफ पुल बनाना शुरू कर दिया है। भारत ने स्पष्ट किया है कि यह निर्माण झील के उस हिस्से में किया जा रहा है जो एलएसी के पार बीते 60 सालों से चीन के अवैध कब्जे में है लेकिन भारत ने इस अवैध कब्जे को कभी स्वीकार नहीं किया है। चीन ने पूर्वी लद्दाख के सामने एलएसी के पास तकरीबन आठ सामरिक लोकेशनों पर 80 से 84 की संख्या में अस्थायी शिविर बना लिए हैं।  गत वर्ष अप्रैल-मई माह में भारत-चीन के बीच हुए सैन्य टकराव के बाद चीन ने अनेक सैन्य शिविरों का निर्माण किया है। चीन की सेना पीएलए ने उत्तर में काराकोरम के नजदीक वहाब जिल्गा से लेकर पीयू, हॉट स्प्रिंग्स, चांग लॉ, ताशिगॉंन्ग, मांजा और चुरुप तक अपने सैनिकों के लिए अनेक शेल्टर्स बना लिए हैं। स्पष्ट है कि सीमा के नजदीक से अपनी फौज हटाने का उसका कोई इरादा नहीं है।

लद्दाख में अब भारतीय सेना के जवानों का सामना ठंड से कांपते चीनी सैनिकों की बजाय उसकी रोबोट आर्मी और अनमैन्ड व्हीकल्स से होगा क्योंकि चीन ने लद्दाख से लगती सीमा पर इनकी तैनाती कर दी है। विदित हो कि चीनी सैनिकों को ठंडे इलाकों में लड़ाई का अनुभव नहीं है जिससे उन्हें भारतीय सैनिकों के हाथों मुंह की खानी पड़ती है।
चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने तिब्बत में ऑटोमैटिक रूप से चलने वाले 88 शॉर्प क्लॉ व्हीकल्स को तैनात कर दिया है। इनमें से 38 को लद्दाख सीमा पर लगाया गया है। इन गाड़ियों को चीन की हथियार निर्माता कंपनी नोरीनको ने तैयार किया है। इन वाहनों का इस्तेमाल शत्रु की निगरानी के हथियार व सैन्य साजो-सामान की आपूर्ति के लिए किया जाता है।
चीन ने तिब्बत में स्वचालित म्यूल-200 अनमैन्ड व्हीकल्स भी तैनात कर दिए हैं। ये वाहन पहाड़ी इलाकों में शत्रु की निगरानी करने के साथ-साथ 50 किमी. की दूरी तक आक्रमण करने में भी सक्षम हैं।   इनकी मदद से एक बार में 200 किग्रा. से ज्यादा वजन का गोला-बारूद और हथियारों को ले जाया जा सकता है। वायरलेस से भी कंट्रोल्ड होने वाली ये गाड़ियां रोबोट की तरह युद्ध लड़ने में सक्षम हैं। तिब्बत के इलाके में 200 लिंक्स ऑल टेरेन व्हीकल्स मौजूद हैं, जिनमें से तकरीबन 150 लद्दाख सीमा क्षेत्र में हैं। इनकी सहायता से एक बार में 15 लोगों को ट्रांसफर किया जा सकता है। ये वाहन भारी वजन वाले हथियारों और एयर डिफेंस संबंधी हथियारों के लिए प्लेटफार्म के तौर पर भी काम आ सकते हैं। इन वाहनों की सहायता से चीन अपनी सेना के जवानों को अति शीघ्र भारतीय सीमा पर किसी भी समय पर उतार सकता है।

डॉ. लक्ष्मी शंकर यादव


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