काशी : पग-पग तीर्थ, रोम-रोम में शिव

Last Updated 18 May 2022 12:29:31 AM IST

धर्म और विद्या की नगरी काशी का गौरव अपनी प्राचीनता तथा पवित्रता के लिए विश्वविख्यात है।


काशी : पग-पग तीर्थ, रोम-रोम में शिव

काशी का उल्लेख वैदिक संहिताओं, ब्राह्मण ग्रंथों तथा उपनिषदों में भी मिलता है। महर्षि पाणिनि और पतंञ्जलि के ग्रंथों में भी काशी का सजीव वर्णन मिलता है। स्कन्द पुराण काशी खंड के दसवें अध्याय में 64 महत्त्वपूर्ण शिवलिंगों का उल्लेख है। पुराणों में तो काशी की परिभाषा ही पग-पग पर तीर्थ के रूप में की गई है।

चीनी यात्री ह्वेनसांग ने काशी में 100 फीट से भी अधिक ऊंचे 100 मंदिरों का उल्लेख किया है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में श्री काशी विनाथ मंदिर का प्रमुख स्थान है, माना जाता है कि भगवान शिव ने इस ज्योतिर्लिंग को स्वयं के निवास के रूप में प्रकाशपुंज किया है। काशी विश्वनाथ मंदिर का दशर्न करने वाले भक्त कई जन्मों के पाप से मुक्त हो जाते हैं।
सततता भारतीय सनातन संस्कृति की प्रमुख विशेषता है। कठिन से कठिन दौर में भी सनातन आस्था पुन: नई ऊर्जा से उठ खड़ी हुई।

यही वजह है कि सनातन संस्कृति से हजारों वर्ष बाद अस्तित्व में आई विश्व की अधिकांश संस्कृतियों का आज अस्तित्व समाप्त हो गया है, लेकिन सनातन संस्कृति आमूल चूल परिवर्तनों के साथ शात है, और विद्यमान है। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर एक पवित्र ज्योतिर्लिंग ही नहीं अपितु सनातन आस्था का मजबूत स्तम्भ है। पिछले करीब एक हजार वर्ष में श्री काशी विश्वनाथ मंदिर का समूल नाश करने की चार बार कोशिश की गई। काशी विश्वनाथ मंदिर पर प्रथम आक्रमण मुहम्मद गोरी के सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक ने सन 1194 में किया था।

इस हमले के 100 साल बाद कुछ व्यापारियों और जन सहयोग से मंदिर पुन:निर्मिंत हो सनातन आस्था का ध्वजवाहक बन गया। काशी विश्वनाथ मंदिर पर दूसरा हमला जौनपुर के सुलतान महमूद शाह ने सन 1447 में किया, इस हमले में मंदिर पूरी तरह ध्वस्त हो गया था। इतिहास ने करवट ली और सन 1585 में राजा टोडरमल ने काशी विश्वनाथ मंदिर का पुन: निर्माण करवाया। काशी विश्वनाथ मंदिर पर मुगल राजाओं की आंखों में शूल बन कर चुभता रहा। सन 1642 में मुगल बादशाह शाहजहां ने काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त करने का आदेश दिया, लेकिन भक्तों के भारी प्रतिरोध के फलस्वरूप मंदिर तो नहीं तोड़ा जा सका लेकिन खीझ मिटाने के लिए काशी के 63 अन्य छोटे-बड़े मंदिरों को तोड़ दिया गया।

श्री काशी विश्वनाथ मंदिर पर अंतिम हमले का आदेश 18 अप्रैल, 1669 को सबसे क्रूर मुगल शासक औरंगजेब ने दिया था। यह आदेश आज भी कोलकाता की एशियाटिक लाइब्रेरी में सुरक्षित है। औरंगजेब के आदेश पर सितम्बर, 1669 में काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ा गया और उसी समय ज्ञानवापी मंदिर का निर्माण भी हुआ। इस विध्वंस के करीब 111 वर्ष पश्चात सन 1780 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होलकर ने काशी विश्वनाथ मंदिर के वर्तमान स्वरूप का निर्माण कराया।

महाराणा रणजीत सिंह ने मंदिर के शिखर को स्वर्ण मंडित करवाया और औसनगंज के राजा तिविक्रम नारायण ने मंदिर के गर्भगृह के लिए चांदी के दरवाजे दान दिए थे। काशी सतत है, मां गंगा की भांति पावन है, भगवान शिव की भांति काशी ने भी हर विपत्ति में स्वयं हलाहल पिया, पर भक्तों को सदैव अमृत ही प्रदान किया। काशी विश्वनाथ मंदिर और मां गंगा के बीच अवरोधों को दूर करने का कार्य काशी के सांसद और देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के कृतसंकल्प के परिणामस्वरूप संभव हो सका। सवा पांच लाख वर्ग फीट जमीन अधिग्रहीत कर काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का निर्माण दिसम्बर, 2021 में संपन्न हुआ। 250 वर्ष बाद काशी विनाथ मंदिर का जीर्णोधार भी संपन्न हुआ। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर निर्माण के लिए सरकार द्वारा अधिग्रहीत किए गए घरों को हटाने में 43 प्राचीन मंदिरों का भी पता चला।

काशी में कण-कण में शिव हैं, आक्रमणकारियों के लाख यत्नों के पश्चात भी विनाथ मंदिर परिसर से सनातन गौरव के प्रमाण मिलने बंद नहीं हुए। ज्ञानवापी परिसर के पिछले हिस्से में मां श्रृंगार गौरी का मंदिर है, जहां सन 1992 तक नियमित दशर्न- पूजन होता रहा लेकिन अब सिर्फ  चैत्र नवरात्रि में सिर्फ  एक दिन मां श्रृंगार गौरी के दशर्न-पूजन की अनुमति है। अभी ज्ञानवापी परिसर के सर्वेक्षण का कार्य पूरा हुआ है, 18 अगस्त, 2021 को पांच महिलाओं ने वाराणसी के सिविल कोर्ट में याचिका दायर कर मां  श्रृंगार गौरी के नियमित दशर्न-पूजन की अनुमति की मांग की। साथ ही, परिसर में स्थित अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाओं की सुरक्षा के लिए सर्वेक्षण कार्य कराकर स्थिति स्पष्ट करने की मांग भी की थी। सर्वेक्षण के दौरान ज्ञानवापी कूप में 12 फीट 8 इंच व्यास वाला शिवलिंग सामने आया, जिसकी सुरक्षा का तत्काल आदेश भी वाराणसी जिला न्यायालय ने पारित कर दिया है।

सत्य यह है कि हमारी आस्था के सामने सभी आक्रान्ताओं के गलत इरादे लगातार हमेशा धराशायी होते रहे हैं। एक वर्ग आज भी ज्ञानवापी से जुड़े सच को स्वीकार नहीं करना चाह रहा है, कुछ लोग प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 का हवाला देकर इस सच्चाई को दबाना चाह रहे हैं। सभी कानून हमारे लिए शिरोधार्य हैं, पिछले एक हजार साल में सनातन आस्था मुगलों, अंग्रेजों के शासन को सहते हुए भी अपने संयम के बल पर प्रगति कर रही है, और निरंतर करती रहेगी।

राजेश्वर सिंह


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