रूस-यूक्रेन युद्ध : सामने आया शांति का महत्त्व

Last Updated 15 Mar 2022 03:29:58 AM IST

हाल के वर्षो में वि के अनेक विद्वानों व विचारकों ने सभी देशों में व वि स्तर पर अमन-शांति के प्रयासों व आंदोलनों को सशक्त करने का आह्वान किया है।


रूस-यूक्रेन युद्ध : सामने आया शांति का महत्त्व

यूक्रेन के संकट के अचानक उग्र रूप धारण करने व इसमें हुई भयंकर तबाही से यह जरूरत और रेखांकित हुई है। संयुक्त राज्य अमेरिका ने पहले नाटों के रूस के पड़ोस में प्रसार की जिद से बहुत तनाव पैदा कर दिया व फिर रूस ने यूक्रेन पर हमला कर इस स्थिति को और संकटमय कर दिया। अंत में इन दोनों महाशक्तियों की गलतियों की भारी कीमत यूक्रेन के जनसाधारण को चुकानी पड़ी।
इस युद्ध के बारे में वि का जनमत यह स्पष्टत: बन रहा है कि इसे शीघ्र से शीघ्र रुकना चाहिए। इसके साथ यह कहना जरूरी है कि यदि वि के स्तर पर मजबूत अमन-शांति का आंदोलन होता तो ऐसे तनाव को तेजी से युद्ध की ओर बढ़ने से पहले रोका जा सकता था। युद्ध की आशंका को कम करना वि के लिए हमेशा से एक बहुत सार्थक उद्देश्य रहा है, पर कुछ विशेष कारणों से हाल के समय में इसकी जरूरत पहले से कहीं अधिक बढ़ गई है। पहली वजह तो यह है कि महाविनाशक हथियारों की उपलब्धि से युद्ध अब असहनीय हद तक विनाशक हो गया है। परमाणु हथियार नौ देशों के पास हैं, व कुछ अन्य देशों में अमेरिका के हथियार तैनात या भंडारित रखे हैं।

कुछ देशों के पास चोरी-छिपे रासायनिक व जैविक हथियार होने की आशंका है। सामान्य हथियार भी पहले से कहीं अधिक विध्वंसक हो चुके हैं। स्टाकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीच्यूट (सिपरी) की वाषिर्क रिपोर्ट में वि सुरक्षा स्थिति की प्रमाणिक जानकारी की जाती है। सिपरी की वर्ष 2018 की रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले एक दशक में वि की सुरक्षा स्थिति उल्लेखनीय रूप से पहले से और विकट हो गई। वि सैन्य खर्च व हथियार व्यापार एक ऊंचे स्तर पर स्थिर है। वर्ष 2017 में 1739 अरब डॉलर का सैन्य खर्च हुआ। वि के नौ देशों के पास 14665 परमाणु हथियारों का भंडार है। इनमें से 3750 इन्हें संचालित करने वाले दल-बल के साथ तैनात हैं। इनमें से भी 2000 परमाणु हथियारों की तैनाती की तैयारी ऐसी है कि इसका उपयोग अति शीघ्र हो सकता है। परमाणु शस्त्रों के उत्पादन को बढ़ाने, उनकी विध्वंसक क्षमता को बढ़ाने व उनसे हमले के अधिक अति आधुनिक तौर-तरीके विकसित करने की तैयारी विभिन्न देश विशेषकर संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस व चीन कर रहे हैं। दूसरी महत्त्वपूर्ण वजह यह है कि दुनिया में जलवायु बदलाव जैसी कई अति गंभीर पर्यावरणीय समस्याएं इस समय मौजूद हैं जो धरती की जीवनदायिनी क्षमता को ही खतरे में डालती हैं। इसके लिए नजदीकी अंतरराष्ट्रीय सहयोग व अमन-शांति के माहौल की जरूरत है।

पड़ोसी देशों में विशेषकर बढ़ते सहयोग की निरंतरता से जरूरत है। युद्ध के माहौल में ऐसा सहयोग उपलब नहीं हो सकता है। युद्ध या युद्ध के माहौल में बढ़ते अंतरराष्ट्रीय सहयोग को निरंतरता से प्राप्त करना संभव नहीं है। तीसरी बड़ी वजह यह है कि युद्ध मानव जीवन के लिए बहुत विनाशकारी होने के साथ एक बड़ा प्रदूषक भी है। ग्रीनहाऊस गैसों का एक बड़ा स्रोत युद्ध व युद्ध की तैयारी है व बहुत सा अन्य प्रदूषण हथियारों के निर्माण व तैनाती आदि से जुड़ा है। जहां एक ओर युद्ध व युद्ध की आशंका को कम करना पहले से बहुत जरूरी हो गया है। वहां यह दुखद सच्चाई भी हमारे सामने है कि हाल के दशकों में अनेक देश युद्ध से बुरी तरह तबाह हो चुके हैं। ईरान व इराक के युद्ध में वर्ष 1980-1990 के दाक में 5 लाख मौतें हुई। उसके बाद इराक पर अमेरिका व उसके सहयोगी देशों व नाटो के दो हमलों में व लगाए गए प्रतिबंधों से लाखों लोगों की मौत हुई। वर्षो से चल रहे युद्धों में अफगानिस्तान, सीरिया, यमन आदि देशों में भयंकर तबाही हुई। बांग्लादेश की आजादी में हुए संघर्ष में लाखों लोगों को पाकिस्तानी सेना व उसके सहयोगियों ने मार दिया व बड़ी संख्या में बलात्कार किए। नाईजीरिया व सूडान व इथिओपिया के गृहयुद्धों में लाखों लोग मारे गए।
इन विकट स्थितियों में यह वि स्तर पर बहुत जरूरी हो गया है कि युद्ध की संभावना को रोकने के लिए व अमन-शांति बनाए रखने के लिए प्रयासों को मजबूत किया जाए, इनमें निरंतरता बनी रहे व इन्हें एक बड़े जन-अभियान का रूप दिया जाए। इसकी जरूरत पहले भी थी, पर अमन-शांति के बड़े जन-अभियान की जितनी जरूरत आज है उतनी पहले कभी नहीं थी। इस अभियान को मजबूत करने के लिए शांति अभियान को महिला आंदोलन, न्याय, समता व लोकतंत्र के आंदोलनों व अभियानों से नजदीकी संबां बनाने चाहिए।
अमन के संदेश को मजबूत करने में महिलाओं की बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। पाठ्यक्रमों में अनेक स्तर पर अमन-शांति के संदेश को महत्त्व दिया जा सकता है। यदि पूरी निष्पक्षता से लोगों के सामने सच्चाई रखी जाए तो वि जनमत का गलतियों को सुधारने के लिए दबाव बढ़ेगा। एक बड़ी चुनौती यह है कि यूक्रेन युद्ध शीघ्र समाप्त हो, पर इससे भी बड़ी चुनौती यह है कि भविष्य में आक्रमणों व युद्धों की संभावना को न्यूनतम किया जाए।

भारत डोगरा


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