रूस-यूक्रेन युद्ध : रूस का रासायनिक अस्त्र
रूस ने यूक्रेन पर जैविक और रासायनिक हमले की व्यापक तैयारी का आरोप हुए दावा किया है कि यूक्रेन की कम से कम तीस प्रयोगशालाओं में अमेरिका की सहायता से रोगजनक सूक्ष्म जीव तैयार किए जा रहे हैं, जिन्हें हथियार की तरह उपयोग कर रूस को बड़ा नुकसान पहुंचाया जा सकता है।
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रूस ने इसे लेकर आगामी दिनों में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की एक आपात बैठक भी बुलाई है।
दरअसल, अविभाजित सोवियत संघ में बड़े पैमाने पर जैविक हथियार बनाने के कार्यक्रम चलाए गए थे और इसके लिए कुछ महत्त्वपूर्ण केंद्र यूक्रेन में भी स्थापित थे। यूक्रेन में पब्लिक हेल्थ के लिए काम करने वाली ऐसी कई प्रयोगशालाएं हैं, जहां दुनिया की गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए शोध किया जाता है, और इसमें अमेरिका एक प्रमुख सहयोगी है। यूक्रेन जैविक और रासायनिक हथियारों के निर्माण के रूस के आरोप को दुष्प्रचार बता रहा है, वहीं रूस ने अपने दावे को सही ठहराने वाले मजबूत दस्तावेज होने की बात कही है। इन सबके बीच चीन ने भी अमेरिका पर आरोप लगाया है कि वह जैव-सैन्य योजनाओं का संचालन करने की व्यापक योजनाओं पर काम कर रहा है।
यूक्रेन की सरकार के मुताबिक देश में ऐसे लैब मौजूद हैं, जहां वैज्ञानिकों ने वैध ढंग से लोगों को कोविड-19 जैसी बीमारियों से बचाने के लिए काम किया है। लेकिन ऐसे समय जब यूक्रेन में युद्ध छिड़ा हुआ है तब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने यूक्रेन से कहा है कि अपनी लैब में मौजूद किसी तरह के खतरनाक पेथोजेन नष्ट करे। रूस यूक्रेन संघर्ष के बीच आशंका बढ़ गई है कि रूस यूक्रेन की खतरनाक प्रयोगशालों को नष्ट करने के बहाने रासायनिक हथियारों का उपयोग कर सकता है। रूस की सेनाएं यूक्रेन को घेर चुकी हैं, और वह निर्णायक सफलता हासिल करने के लिए ऐसा कदम उठा सकती है। रूस के पास व्यापक रासायनिक और जैविक हथियार हैं, और इससे इंकार भी नहीं किया जा सकता।
रूस का जैविक हथियारों को उत्पन्न करने का इतिहास 100 साल पुराना है, और उसने इसका उपयोग द्वितीय विश्व युद्ध में जर्मन सेना को रोकने के लिए उसके खिलाफ भी किया था। 1928 में जैविक युद्ध के लिए सोवियत संघ की तैयारियों पर सैन्य और नौसेना मामलों के लिए उच्च स्तर पर एक महत्त्वपूर्ण रिपोर्ट तैयार की। इसने जोर देकर कहा कि जीवाणु विकल्प को युद्ध में सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया जा सकता है, और सोवियत सैन्य जीवाणु विज्ञान के संगठन के लिए एक योजना का प्रस्ताव दिया था। 1967 में एक विशेष सोवियत चिकित्सा दल द्वारा भारत से लाया गया था जिसे वायरस को मिटाने में मदद करने के लिए भारत भेजा गया था। रूस द्वारा रोगजनक का निर्माण और भंडार 1970 और 1980 के दशक में बड़ी मात्रा में किया गया था। 1980 के दशक में सोवियत कृषि मंत्रालय ने सफलतापूर्वक पैर और मुंह की बीमारी और गायों के खिलाफ रिंडरपेस्ट, सूअरों के लिए अफ्रीकी स्वाइन बुखार और चिकन को मारने के लिए साइटाकोसिस के रूप जीवाणु विकसित किए। इन एजेंटों को सैकड़ों मील की दूरी पर हवाई जहाज से जुड़े टैंकों से दुश्मन के खेतों पर छिड़कने के लिए तैयार किया गया था। माना जाता है कि रूस ने 1990 के दशक में सद्दाम हुसैन को चेचक उपलब्ध कराया था जिसका उपयोग दुश्मनों पर कर सकें।
रूस के राष्ट्रपति पुतिन अन्य राष्ट्राध्यक्षों से इसलिए भी अलग हैं क्योंकि वे केजीबी के अधिकारी रहे हैं। माना जाता है कि गुप्तचर अपने राष्ट्र हित के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। पुतिन पर अपने कार्यकाल के दौरान प्रतिद्वंद्वियों पर जैविक और रासायनिक हथियारों का उपयोग करने के आरोप लगते रहे हैं। 2018 में सीरिया की राजधानी दमिश्क के पास डूमा शहर में कथित रासायनिक हमले में 40 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी जिसमें कुछ बच्चे सांस लेने के लिए जूझते हुए नजर आ रहे थे। इस घटना ने सभी को सकते में डाल दिया। इस हमले के लिए सीरिया में बशर अल-असद सरकार को जिम्मेदार मानते हुए अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस ने मिलकर सीरिया के कुछ ठिकानों पर मिसाइलों से हमला कर दिया था जबकि सीरिया के सहयोगी रूस ने इन हमलों का विरोध किया था।
पुतिन की नीतियों के आलोचक नवेलनी को नोविचोक नर्व एजेंट से निशाना बनाया गया था, हालांकि वे बच निकले थे। रूस की सीक्रेट सर्विस के एजेंटों एलेक्जेंडर और लित्वीनेंको पर रेडियोएक्टिव पोलोनियम से 2006 में हमला हुआ था जबकि सर्गेई स्क्रीपाल को जहरीले नर्व एजेंट नोविचोक से 2018 में निशाना बनाया गया था। दुनियाभर में 190 देशों ने वैश्विक रासायनिक हथियार कन्वेंशन पर हस्ताक्षर किए हैं, इनमें रूस शामिल हैं। इसके बाद भी नवेलनी को जिस जहर से मरने की कोशिश की पुष्टि जर्मनी की सरकार ने की, वह रूस में ही 1970-80 के बीच विकसित हुआ था। नोविचोक नर्व एजेंट रासायनिक पदार्थ है, जिसे रूस की खुफिया एजेंसी अपने दुश्मनों के खिलाफ अचूक हथियार की तरह उपयोग करती रही है। इससे बचना नामुमकिन है।
इसके साथ ही केमिकल गैस के प्रभाव बेहद घातक होते हैं, और यह सामूहिक विनाश का कारण बन सकती है। स्नायु तंत्र को प्रभावित करती है, और इसकी पहचान करना भी आसान नहीं है। इसलिए इससे बचाव भी नहीं किया जा सकता और प्रभावित की मौत महज 15 मिनट के अंदर हो सकती है। इसी श्रृंखला में मस्र्टड गैस, मस्र्टड नाइट्रोजन और लिवि साइट जैसे रासायनिक तत्व भी आते हैं। फॉसजेन भी बहुत खतरनाक है, और इसके संपर्क में आते ही इंसान की सांस फूल जाती है, कफ बनने लगता है, और नाक बहने लगती है। यूक्रेन के पास जैविक या रासायनिक हथियार हों या न हों लेकिन रूस के पास इसका भारी जखीरा है। वह किसी भी स्तर पर इसका उपयोग कर सकता है। जाहिर है कि जैविक या रासायनिक हथियारों का सैन्य उपयोग बड़ी मानवीय आपदा और भारी संकट पैदा कर सकता है।
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