बतंगड़ बेतुक : कहां ते आवेगी नेता की पूंछ

Last Updated 13 Feb 2022 12:19:09 AM IST

आधी-आधी सरकार बनाने की एक पंच पियक्कड़ की पेशकश समूची पंचायत को भा गयी थी, जैसे सरकार बनने की समूची संरचना उनकी समझ में आ गयी थी।


बतंगड़ बेतुक : कहां ते आवेगी नेता की पूंछ

झल्लन अभी तक मुस्कुरा रहा था और गंभीर विचार-विमर्श को थोड़ा और आगे बढ़ाना चाह रहा था, सो बोला, ‘भइया लोगो, आधी-आधी सरकार का न तो कोई चलन है न विधान है। सरकार तो आधी-आधी नहीं बनेगी, चाहे भले जुड़-तुड़ के बने, किसी एक की बनेगी और पूरी की पूरी बनेगी। ये जीते तो इनकी बनेगी वे जीते तो उनकी बनेगी।’
सुनकर एक पंच पियक्कड़ ने अपना चुक्कड़ उठाया और ठर्रा सभा में अपना वक्तव्य ला गिराया, ‘सुनि भइया, सरकार पूरी बने चाहे आधी-आधी बने, जा की बने या बा की बने, जो जीतेगो वो जीत जावेगो, जो हारेगो सो हार जावेगो। न जीतिबे वारो हमनि कछू दे जावेगो, न हारिबे वारो हम ते कछू लेै जावेगो। सो मुंह फुटव्वल मत करो, चुक्कड़ खाली ए तो फिर भरो।’ एक और ने इस पंच की बात को दरकिनार किया और अपना धीर-गंभीर सवाल उठा दिया, ‘पंचन की बात सर माथे, पर एक सवाल हमारे दिमाग में कुलबुला रह्यो ऐ और जा भइया ने दोनों की पूंछ बांधि कैं पीपरा ते लटकाइवे की बात कही ए बा कौ जवाब चाहे रह्यो ए। भली बात ए कै दोनोंनि की पूंछ बांधि कैं पीपरा ते लटकावेगो, पर पूंछ न जाके पास ए न बा के पास ए, सो दोनोंनि कू बांधवे, लटकाइबे कूं इनकी पूंछ कहां ते लावेगो?’
सभा में खुसर-पुसर होने लगी, पंचों की ठर्रा चेतना जगने लगी। उनको लगा कि समस्या गंभीर है तो पूरी गंभीरता से इस पर विचारना पड़ेगा और पूंछ कहां से आएगी इस सवाल का हल निकालना पड़ेगा। एक बोला, ‘हमाए बड़े-बड़े नेता जनता कूं दिखाइबे बड़े-बड़े सपने जहां ते लावतें हम पूंछ वहीं ते ले आवेंगे।’ तुरंत दूसरा बोला, ‘हमाए नेता जहां ते नये-नये वादे लावतें हम तो पूंछ लेबे वहीं जावेंगे।’ तीसरा बोला, ‘ना, ना भइया, हम तो पूंछ लेबे वहां जावेंगे जहां ते हमारे नेता सब कूं रुजगार लावेंगे।’ अगला बोला, ‘सुनो पंचों, जहां ते नेतागीरी ईमानदारी लावेगी हमारी पूंछ की खोज उतें ही मुड़ जावेगी।’ फिर अगले ने विचार व्यक्त किया, ‘सुनो पंचों, इन दिनों औरतन की सुरक्षा की बात खूब चलि रही ए, सो जहां ते जे सुरक्षा आवेगी, पूंछ लैबे हमारी गाड़ी उतें ही जावेगी।’

झल्लन ने देखा कि सबके सर सबकी सहमति में हिल रहे हैं, जैसे सब के सब किसी भी तरह से पूंछ लाने की चिंता में घुल रहे हैं। वह बोला, ‘सुनो भइये, पूंछ की बात कुछ ज्यादा ही लंबी हो रही है, हमारी ये सभा पूंछ पर नहीं राजनीति पर हो रही है।’ झल्लन की बात सुनकर एक पंच फुर्ती से उठ खड़ा हुआ, बोला, ‘देख झल्लन, हम अपनी चर्चा टीबी की तरह अधर में नहीं तोड़ेंगे, जब तक तय नहीं होगो कै पूंछ कहां तें आवेगी तब तक हम बहस नहीं छोड़ेंगे।’ कहकर उसने मुंह पंचों की तरफ किया, उन्हें संबोधित किया, ‘बताओ पंचों, हम सत्त-न्याय की बात कहि रहे एं वो सही कहि रहे एं कि नाहिं कहि रहे एं, इतें-उतें तौ नांहि भटिक रह्ये एं?’ सुनकर सारे पंचों ने अपने चुक्कड़ उठा लिये, फिर थोड़े-थोड़े टकरा दिये। सबने आम सहमति से सिर हिलाया और फरमान सुनाया, ‘आज तो तय हैकैं रहेगो कै पूंछ को लावेगो, कहां ते लावेगो, जब तक तय नहीं है जावेगो कोई पंच चर्चा छोड़किं नहीं जावेगो।’ सब का समवेत स्वर फूटा, ‘नहीं जावेगो, नहीं जावेगो।’
जब तय हो गया कि चर्चा नहीं रुकेगी, आगे बढ़ेगी तो एक पंच ने अपना चुक्कड़ हवा में लहराया और चर्चा को आगे बढ़ाने आगे बढ़ आया, बोला, ‘सब ससुर फालतू बकि रह्ये एं, कहनी-अनकहनी सब कहि रह्ये एं। अरे, जहां ते सबके विकास की गंगा आवेगी समझो पूंछ वहीं मिल जावेगी।’ एक और ने जड़ा, ‘ना, ना भइया, जा जुगत ते सब नेता-दल भारत कूं महान बनावेंगे वाही जुगत ते जुगाड़ कर हम पूंछ उठा लावेंगे।’ तब एक गंभीर पियक्कड़ उठा, ‘सुनो पंचों, आजकलि भ्रष्टाचार की चैतरफा तगड़ी पूछ है सो हम भ्रष्टाचार की पूंछ पकरि लेंगे, कहूं कछू लै-दै कें पूंछ का जुगाड़ करि लेंगे।’
झल्लन ने फिर देखा कि चर्चा तो अपनी रौ में बह रही है, पर मूल मुद्दे से बहुत दूर हट रही है। मूल मुद्दा यह था कि सरकार कौन बनाएगा, पर बहस हो रही थी कि पक्ष और विपक्ष दोनों की पूंछ बांधकर पेड़ से लटकाने के लिए पूंछ कहां मिलेगी और कौन लाएगा। वह बोला, ‘पंच भाइयो, थोड़ा रुक लो, हमारी भी सुन लो। अगर सारी बात नेताओं की पूंछ पर अटक जाएगी तो सरकार कैसे बन पाएगी।’
उसकी बात पंचों ने कुछ सुनी, कुछ नहीं सुनी, पर एक पंच उठते-उठते लड़खड़ा गया और उसका समापन वक्तव्य सामने आ गया, ‘सुनो पंचों, न कहूं ते रुजगार आवेंगे न कहूं ते ईमानदारी आवेगी, ना आधी-आधी सरकार बन पावेगी, जे नेता ऐसें ही गंध-दुर्गध फैलाइबे करेंगे, इन्हें पीपरा ते लटकाइबे कूं इनकी पूंछ कबहूं हमारे हाथ ना आवेगी। सो हम चर्चा यहीं बंद करावेंगे, ठर्रा उतरि गयो ए सो सब अपने-अपने घर जावेंगे।’

विभांशु दिव्याल


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