बतंगड़ बेतुक : आधी सरकार इनकी आधी उनकी

Last Updated 06 Feb 2022 04:09:06 AM IST

ललटुपिया ने झल्लन की बात सुनकर घेरा बनाकर बैठे पंच पियक्कड़ों की ओर निहारा, फिर मन ही मन कुछ विचारा।


बतंगड़ बेतुक : आधी सरकार इनकी आधी उनकी

उसने भुजाओं को फड़काने की सोची सो नहीं फड़काएगा, मुंड़ी मूछों को भड़काने की सोची सो नहीं भड़काएगा और अपनी आवाज को तड़तड़ाने की सोची सो नहीं तड़तड़ाएगा। फिर वह बोला, ‘देखो पंचों, ठेका ठर्रा और चुक्कड़ की इज्जत का सवाल है तो हम इनकी पूरी इज्जत करेंगे  और पंचन की बात सर माथे रखेंगे। न हम गुस्सावेंगे न तन्नावेंगे, न टीवी वालों की तरह चांय-चांय चिल्लावेंगे..।’
ललटुपिया आगे कुछ बोलता इससे पहले ही तरंग में आये एक विद्वान श्रोता ने अपना चुक्कड़ उठा दिया और चुक्कड़ खाली है यह उलटकर दिखा दिया। श्रोता बोला, ‘देख नेता जी, बिना ठर्रा के हम अपनो ढर्रा सही नहीं रख पावेंगे, तिहारी बात तब तक नहीं सुनेंगे जब तक हमारे चुक्कड़ फिर नहीं भर जावेंगे।’ सुनकर कुछ ने ठहाके लगा दिये, कुछ ने अपने खाली चुक्कड़ हवा में लहरा दिये और झल्लन को मजे लेने थे सो उसने भी पूरे-पूरे ले लिये।
ललटुपिया समझ गया कि अब पंच अपनी बात पर अड़ेंगे और अपनी बात सुनाने के लिए उसे सबके चुक्कड़ भरने पड़ेंगे। उसने कलाल को इशारा किया कि सबके चुक्कड़ भरवा दे, फिर तिलकधारी की तरफ देखा कि पंचों ने उसे भी सुना है सो आधी भरपाई वह भी करवा दे। तिलकधारी इशारा समझ गया और बोला, ‘नेता-अफसरनि कि भांति हम बेईमान नहीं हैं जो अपने फर्ज से मुकर जावेंगे, ठेका ठर्रा की मर्यादा की खातिर आधा पैसा हम चुकावेंगे।’ पंचों ने आम सहमति से अपना-अपना सर हिला दिया, यह देखकर झल्लन फिर मुस्कुरा दिया। बहरहाल, चुक्कड़ भर गये, पंचों की बांछें खिल गयीं और ललटुपिया को बोलने की इजाजत मिल गयी। सो उसने खखारकर गला साफ किया और बोलने से पहले अपने गलेबाज नेताओं के भाषण और उनकी बोली-शैली को याद किया, कुछ उसे याद आया पर बहुत कुछ उसने बिसरा दिया। जो याद आया उसे मन ही मन दोहरा लिया, फिर झल्लन को तांकते हुए खुद को पंच पियक्कड़ों से मुखातिब करा लिया। बोला, ‘ये तो हमें नहीं मालूम कि जा तिलकधारी की सरकार चल रही ऐ कि नहीं चल रही ऐ, पर हमें कहूं चलती भई नहीं दिखाई दे रही ऐ।

जाकी सरकार ने कानों में रुई ठूंस लई ऐ और आंख पै पट्टी बांध लई ऐ। जाकी सरकार कू न तो कछु सुनाई देतु ऐ और न कछु दिखाई देतु ऐ। ये कहतें कि स्कूल-अस्पताल-सड़क इनने बनवाए, पर सच्ची बात ये है कि इन सबके खयाल सबसे पहले हमारे दिमाग में आये। सबके नक्शे हमने बनवाए पर ये हमारी तिजोरी में से चुरा लाये। न इनने गरीबों के घर बनवाए, न बैयर बानी के लें घर-घर शौचालय बनवाए, न मजूरों को राहत पहुंचाए, न किसानों के खाते में पईसा भिजवाए। इनकी कोई बात हमारो कोई नेता सच्ची ना मान्तु सो हम हूं न मानेंगे, भले हीं ये सच्ची बात कहें पर हम झूठ बतावेंगे। हमारी सरकार में हमारे माफिया काम करते थे अब इनके कर रहे हैं, पहले हम ठसक-ठर्रई से न्याय-कानून की ऐसी-तैसी करते थे अब ये कर रहे हैं, ये हमें चोर बताते थे हम इन्हें चोर बता रहे हैं। ये अत्याचारी हैं, भ्रष्टाचारी हैं..।’ ललटुपिया को आगे याद नहीं आया तो बोला, ‘दो-तीन कारी-चारी और हैं जो हमें इस टाइम याद नहीं आय रहे सो हम बता नहीं पाय रहे।’
ललटुपिया को शब्दाभाव में देखकर एक श्रोता चुक्कड़ उठाकर बोला, ‘दुराचारी।’ ललटुपिया बोला, ‘हां, दुराचारी।’ एक और श्रोता बोला, ‘बलात्कारी।’ ललटुपिया फिर बोला, ‘हां, हां बलात्कारी।’ इस बीच एक और श्रोता ने हाथ उठा दिया, अपना शब्द ज्ञान जता दिया, बोला, ‘विनाशकारी।’ ललटुपिया बोला, ‘हां हां, जितने कारी-चारी बचे हैं सो सब मिला दो, ये वो ही हैं।’ उसने श्रोताओं की तरफ देखा कि कोई उसकी बात पर कुछ बोले पर किसी ने मुंह नहीं खोला, सो वही बोला, ‘अबे ताली तो बजा दो, हमारा भाषण कैसा लगा ये तो बता दो।’ श्रोताओं को अपना धर्म याद आया सो उन्होंने अपने चुक्कड़ आपस में टकरा दिये और ताली बजा दी, सच्चे श्रोता होने की अपनी रस्म निभा दी।
झल्लन जानता था कि ये वक्ता जो दिल में होगा वही कहेंगे, भले ही अपने नेताओं की बात दोहराएं पर सच भी कहकर रहेंगे। वह अपनी हंसी नहीं दबा पाया, फिर उसने पंच पियक्कड़ों को अपने से मुखातिब पाया। वह बोला, ‘तो बताओ भइए, किनकी बात खरी लगी और किन की बात खोटी लगी, किनकी बात बड़ी लगी और किनकी बात छोटी लगी। दोनों को सुनके तुम पंचों के मन में क्या आ रहा है, बताओ कौन सरकार बना रहा है?’ झल्लन की बात के जवाब में एक तरंगायित लड़खड़ाते पंच ने खुद को अपनी टांगों पर खड़ा किया और अपना फैसला सुना दिया, ‘हम ससुरी आधी सरकार इनकी और आधी सरकार बिन की बनवावेंगे, ये रोज-रोज की चांय-चांय निपटावेंगे और नहीं माने तो दोनों की पूंछ बांधकर अपने गांव के पीपरा पै लटकावेंगे।’ पंच की बातें सुधी श्रोताओं के कलेजे पर जा लगीं और पंचायत में तालियां गड़गड़ाने लगीं।..(जारी)

विभांशु दिव्याल


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