सरोकार : महिलाएं कब तक रहेंगी असुरक्षित!
उपभोक्तावादी समाज में व्यक्ति के लिए पद, प्रतिष्ठा, पैसा ही साध्य बन जाता है, और मानवीय मूल्य एवं नैतिक-सामाजिक दायित्व पर्दे के पीछे चले जाते हैं।
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पटना के रिमांड होम की हालिया घटना इसकी तस्दीक करती है। वहां लड़कियों से देह व्यापार कराया जा रहा था। मुजफ्फरपुर के शेल्टर होम की घटना शायद ही हम भूल पाए होंगे जिसके तूल पकड़ने पर समाज कल्याण विभाग की मंत्री तक को इस्तीफा देना पड़ा था। मौजूदा घटना में पीड़िताओं ने उत्तर रक्षा गृह (आफ्टर केयर होम) की संरक्षिका पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि अजनबियों को रिश्तेदार बनाकर उनके सामने उन्हें पेश किया जाता था। पहले नशे की दवा दी जाती और बाद में घिनौना काम करने को कहा जाता था। कोई लड़की विरोध करती तो उसका खाना बंद करवा दिया जाता और उसके साथ मारपीट की जाती। प्रताड़ना न झेल पाने वाली कई लड़कियों ने आत्महत्या तक कर ली थी।
अव्वल तो यह कि मौजूदा मामले में पुलिस द्वारा कोई एफआईआर तक दर्ज नहीं की गई और आनन फानन में मामले की लीपापोती कर दी गई। लेकिन महिला संगठनों और उच्च न्यायालय के तत्काल दखल के बाद इससे जुड़ी याचिका को जुवेनाइल जस्टिस मॉनिटरिंग कमेटी की अनुशंसा पर रजिस्टर्ड कर लिया गया है। रिमांड होम या केयर होम की अवधारणा दरअसल, इस मंशा के साथ अस्तित्व में लाई गई थी कि बेसहारा और रेस्क्यू की गई लड़कियों को सुरक्षा और सहयोग के साथ घर जैसा माहौल प्रदान किया जाए ताकि व्यावहारिक सुधारों के साथ वे भविष्य संवार सकें। अल्प आयु में अनेक कारणों से कानूनी शिकंजे में फंसी लड़कियों के लिए किशोर न्याय (बालकों की देख रेख एवं संरक्षण) अधिनियम के तहत शेल्टर होम की व्यवस्था की जाती है।
सवाल है कि बिहार पुलिस के चार सशस्त्र जवान, तीन होमगार्ड एवं नौ महिला सुरक्षा बल द्वारा चौबीस घंटे निगरानी और तेरह सीसीटीवी कैमरों की निगहबानी के बावजूद ऐसी घटनाएं कैसे घट रही हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि राजनैतिक लाभ के लिए जानबूझ कर इस विकृत और वीभत्स परिपाटी को पोषित किया जा रहा था ताकि भविष्य में इसके गहरे राजनैतिक निहितार्थ हासिल किए जा सकें। संबंधित राज्य सरकार वास्तव में बेटियों की सुरक्षा और अस्मिता को लेकर गंभीर है, तो उसे इस दाग को मिटाना ही होगा। कागजों में बेटियों को शीर्ष पर रखने और उन्हें सर्वोच्च प्राथमिकता देने से काम नहीं चलने वाला। कथनी-करनी का फर्क समझना जरूरी होगा।
फौरी कार्रवाइयों सहित कुछेक ऐसे कदम हैं, जिन पर राज्य सरकार को तत्काल कदम उठाने होंगे। मसलन, एसआईटी की जांच और उच्च न्यायालय द्वारा उसकी सख्त निगरानी और देश के सभी रिमांड और शेल्टर होम से सालाना रिपोर्ट की मांग आदि। साथ ही, सभी शेल्टर होम में सीसीटीवी कैमरे की व्यवस्था, ज्यादा से ज्यादा प्रशिक्षित परामशर्दाताओं की नियुक्ति, प्रशिक्षित स्टाफ, स्टाफ और अधीक्षक में चाइल्ड से संबंधित कानून और मुद्दों की जागरूकता समेत ऐसी कई अनुशंसाएं हैं, जिन पर तत्काल काम किए जाने की जरूरत है। केवल तभी अपराध की ऐसी घटनाओं पर लगाम लगाई जा सकेगी।
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