विश्व : ग्लोबल रिस्क रिपोर्ट और भारत
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (डब्ल्यूईएफ) की नई ‘द ग्लोबल रिस्क रिपोर्ट 2022’ के 17वें संस्करण में दुनिया पर मंडराने वाले खतरों-लघुकालीन (0-2 साल), मध्यमकालीन (3-5 साल) और दीर्घकालीन (5-10 साल)-का सर्वे और विश्लेषण है।
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डब्ल्यूईएफ के मुताबिक दुनिया के लिए कोरोना एवं उसके दुष्प्रभाव बड़ा संकट बन के प्रकट हुआ है। कोरोना ने दुनिया के हालात ही नहीं, सोचने का तरीका भी बदल दिया है।
दावोस एजेंडा बैठक से पहले डब्ल्यूईएफ द्वारा जारी वैश्विक जोखिम रिपोर्ट 2022 के मुताबिक, कोरोना वायरस महामारी के कारण बीते दो वर्षो में जबरन डिजिटल प्रक्रियाओं पर निर्भरता बढ़ी है जबकि इससे वैश्विक स्तर पर साइबर सुरक्षा खतरों से उत्पन्न जोखिम भी कई गुना अधिक हो गए हैं। ये जोखिम वैश्विक परिदृश्य में चिंता का विषय हैं। रैनसमवेयर नाम के साइबर अटैक की घटनाएं 2020 में ही 435 % बढ़ी हैं। रिपोर्ट में साइबर सिक्योरिटी में 95% मामलों में व्यक्ति की गलती होने को वजह बताया गया है। इससे बचने के तरीके और माध्यम को लेकर सरकार को ध्यान में रखना होगा। डिजिटल होना समय के अनुरूप जरूरी है किंतु डिजिटल सिक्योरिटी एवं डिजिटल लिटरेसी भी जरूरी है। रिपोर्ट में युवाओं का मोहभंग, डिजिटल असमानता के भी बढ़ने की बात है। अस्सी करोड़ अमेरिकी डॉलर का डिजिटल व्यापार बढ़ने के बाद भी तीस लाख साइबर प्रोफेशनल की कमी भी बात सामने आई है।
टकराव, राजनीतिक अस्थिरता से भविष्य में प्रवासियों की संख्या में बढ़ोतरी होगी। निस्संदेह कोविड-19 महामारी ने दुनिया भर में लोगों की जिंदगियों और आजीविकाओं पर भारी तबाही मचाई है, लेकिन सबसे ज्यादा प्रकोप सबसे निर्बल आबादी एवं प्रवासियों पर आई है। रिपोर्ट में 4800 से अधिक लोगों के लापता होने, गरीब मुल्कों में 9% एफडीआई की कमी तथा वर्ष 2050 तक बीस करोड़ क्लाइमेट रिफ्यूजी होने का अंदेशा भी व्यक्त किया गया है।
‘अंतरिक्ष में भीड़ और प्रतिस्पर्धा’ शीषर्क से रिपोर्ट में कहा गया है कि अंतरिक्ष अब विश्व राजनीति का नया अड्डा बन जाएगा। अनियंत्रित संसाधन प्रतियोगिता ने अंतरिक्ष में कूटनीतिक प्रतिस्पर्धा भी शुरू कर दी है। अगले दशक तक 70000 नये सैटेलाइट लॉन्च किए जाएंगे। अंतरिक्ष में डेब्रिस के रूप में मिलियन से भी अधिक कबाड़ होने की बात कही गई है। अंतरिक्ष में नये स्टार्टअप एवं रिसर्च की संभावनाएं भी हैं।
कोरोना ने पूरे विश्व को नया सबक एवं समाज को प्रकृति ने नया संदेश दिया है। रिपोर्ट में वैक्सीन को लेकर कई बातें जैसे पीक पर कोरोना के मामले में 20 से 40 गुणा बढ़ोतरी, वैक्सीन में असमानता, अमीर देश (69.9% के करीब) एवं गरीब देश (4.3%) एवं अफ्रीका में बीस लाख से अधिक मृत्यु होने की आशंका व्यक्त की गई है। सभी देशों में अलग-अलग कोरोना वायरस को लेकर सफलता के मॉडल भी हैं, जिनमें कई सस्ते टेस्टिंग किट भी शामिल हैं। आवश्यकता इस बात की है कि हर देश की सरकार को अपने देश के अनुरूप नीति बनानी चाहिए तभी दीर्घकालिक प्रभाव संभव हो पाएगा।
बेशक, रिपोर्ट में चिह्नित समस्याओं की प्राथमिकता के संबंध में अलग-अलग विचार हो सकते हैं। लेकिन जरूरी है कि इन चुनौतियों का सामना करने के लिए सरकारों एवं समाज को दीर्घकालीन रणनीति बनाने पर विचार करना चाहिए। तभी संभावित खतरों के प्रभाव को कम किया जा सकेगा। हर देश को अपनी आंतरिक परिस्थितियों एवं परिवेश के आधार पर अपनी प्राथमिकता बनानी होगी। रिपोर्ट में जोखिम के तौर पर अंतरराज्यीय संबंधों का फ्रैक्चर, बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में ऋण संकट, व्यापक युवा मोहभंग, प्रौद्योगिकी शासन की विफलता और डिजिटल असमानता को गिनाया गया है। कहना न होगा कि ये सभी समस्याएं जटिल एवं वैश्विक चिंता के विषय हैं। मानवीय, पर्यावरण और आर्थिक चिंताओं को निरंतर सहयोग एवं साझा प्रयास से कम किया जा सकता है।
भारत को 21वीं सदी में विश्व गुरू या महाशक्ति के रूप में स्थापित करने के लिए इन चुनौतियां के लिए तत्काल एवं दीर्घकालीन योजना बनानी होगी।
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