मुद्दा : कोरोना से प्रभावित बच्चों की संरक्षा जरूरी
दुनिया कोरोना महामारी की चौथी लहर से जूझ रही है। कटु सत्य है कि तमाम उपायों के बाद भी एक अदृश्य शत्रु (विषाणु) के सामने समूची दुनिया लाचार है।
![]() मुद्दा : कोरोना से प्रभावित बच्चों की संरक्षा जरूरी |
अभी हम तीसरी लहर की गिरफ्त में हैं, जो पिछली लहर की तुलना में अभी तक तो कम घातक है। कोरोना की दूसरी लहर का मंजर देश भूला नहीं है, जो किसी दु:स्वप्न की तरह था। उस विनाशकारी लहर में लाखों परिवार प्रभावित हुए थे। लेकिन समाज का कोई वर्ग नहीं है जो अभी भी महामारी का दंश न झेल रहा हो।
बच्चों के ऊपर तो दोहरी मार पड़ी। एक तरफ अनेक बच्चों के ऊपर से माता-पिता का साया उठ गया वहीं संसाधनों के अभाव में बच्चे शिक्षा और पोषण से लगातार दूर हो रहे हैं। परिणामस्वरूप उन्हें बाल ट्रैफिकिंग, बाल मजदूरी और यौन शोषण की यातना झेलनी पड़ रही है। याद रहे कि कोरोना की दूसरी लहर में अनाथ हुए बच्चों और उनके अभिभावकों की मदद करने की पहल करने वालों में नोबेल शांति पुरस्कार विजेता बाल अधिकार कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी सबसे आगे थे। सत्यार्थी के नेतृत्व में उनके संगठन बचपन बचाओ आंदोलन ने ऐसे बच्चों और उनके अभिभावकों की कानूनी और मानसिक रूप से मदद करने के उद्देश्य से 24 घंटे का हेल्पलाइन नम्बर शुरू किया। सरकार से भी बेसहारा हुए बच्चों की आर्थिक सहायता करने की अपील की जिसके बाद सरकार भी सक्रिय हुई और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ऐसे बच्चों की हर तरह से मदद करने के लिए कई घोषणाएं कीं। लेकिन हाल में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने सुप्रीम कोर्ट को इन बच्चों से संबंधित जो जानकारी दी है, वह चिंताजनक है।
आयोग ने बताया है कि अप्रैल, 2020 से अब तक 1,47,492 बच्चों ने कोविड-19 और अन्य कारणों से अपने माता या पिता में से किसी एक या दोनों को खो दिया है। इनमें 76,508 लड़के, 70,980 लड़कियां और 4 ट्रांसजेंडर बच्चे शामिल हैं। ओडिशा के सबसे ज्यादा 24,405 बच्चों ने माता-पिता को खो दिया है। बच्चों की देखभाल और सुरक्षा को लेकर स्वत: संज्ञान वाले मामले में आयोग ने बताया है कि उसके आंकड़े राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के ‘बाल स्वराज पोर्टल-कोविड केयर’ पर 11 जनवरी तक अपलोड किए गए आंकड़ों पर आधारित हैं। अनाथ बच्चों की संख्या 10,094 और माता या पिता में से किसी एक को खोने वाले बच्चों की संख्या 1,36,910 और छोड़ दिए गए बच्चों की संख्या 488 है।
बेशक, कुछ राज्यों की सरकारों और जिला स्तर पर भी कोरोना महामारी के कारण अनाथ हुए बच्चों के लिए स्पेशल टास्क फोर्स का गठन किया गया लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर भी इन बच्चों के लिए स्पेशल टास्क का गठन समय की मांग है। इस स्पेशल टास्क फोर्स को अनाथ हुए बच्चों के सर्वागीण विकास पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। यह स्पेशल टास्क फोर्स सरकार और बच्चों के बीच पुल का काम कर सकती है। स्पेशल टास्क फोर्स हर उस बच्चे के लिए होगी जो कोविड़ से प्रभावित हुए हैं। योजनागत तरीके से नीति निर्माण करने में अहम भूमिका निभा सकती है। राज्य और क्षेत्रीय स्तर पर इन बच्चों के लिए की गई घोषणाओं की प्रगति पर नजर रख सकती है। समय-समय पर इसकी विस्तृत रिपोर्ट सरकार को सौंप सकती है।
सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारी है कि कोविड से प्रभावित बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य और बेहतर पारिवारिक वातावरण को सुनिश्चित करे। ऐसे बच्चों को बिना देरी सरकारी योजनाओं से जोड़ने का काम किया जाना चाहिए जिससे सही समय पर इन योजनाओं का लाभ बच्चों और उनके परिवारों को मिल सके। अगर कोई बच्चा अपरिहार्य कारणों से स्कूल से दूर हो गया है, तो उसे दोबारा शिक्षा से जोड़ा जाना चाहिए। ऐसे समय में जब ज्यादातर बच्चों ने माता-पिता खो दिए हैं तो जरूरी है कि ऐसे बच्चों की पहचान करके उन्हें पारिवारिक वातावरण देने की कोशिश की जाए ताकि वे मायूस न हों और जीवन में आगे बढ़ सकें।
अनाथ हुए बच्चों को आवश्यक रूप से काउंसलर और मैंटर सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। इन बच्चों के लिए तत्काल काउंसलरों और मैंटरों की व्यवस्था की जानी चाहिए जिससे उन्हें मानसिक आघात से उबारा जा सके। मैंटर उन्हें जीवन में सही दिशा में बढ़ने की राह दिखा सकते हैं। बच्चों के पुनर्वास और उनको कल्याणकारी योजनाओं से जोड़ने के लिए बाल अधिकार क्षेत्र में कार्यरत स्वयंसेवी संगठनों और सरकार को साथ आने की जरूरत है। इससे सकरात्मक और प्रभावी नतीजे देखने को मिल सकते हैं। देश में हजारों संगठन हैं, जो बाल अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे हैं। उन्हें लामबंद और प्रोत्साहित करने की जरूरत है। कोरोना में अनाथ हुए बच्चों की मदद के लिए ऐसे उपाय किए जाएं तो कोई कारण नहीं कि उनकी सुरक्षा सुनिश्चित नहीं हो सके। हरेक बच्चे की सुरक्षा और संरक्षा राज्य और उनके नागरिकों की नैतिक जिम्मेवारी है।
| Tweet![]() |