साइबर क्राइम : अपराध का नया रूप

Last Updated 19 Jan 2022 04:06:36 AM IST

आतंकवाद सुनते ही सब के दिमाग में दिल दुखा देने वाली तस्वीर सामने आती है।


साइबर क्राइम : अपराध का नया रूप

कुछ ही वर्षो में हमने न केवल भारत, बल्कि अनेक देशों में आतंकवाद की झलक देखी है। यह वो आतंकवाद है जो आप देख, सुन और समझ सकते हैं पर जरा सोचिए वो आतंकवाद जो आप न देख सकते हैं, और न समझ सकते हैं, जो धीरे-धीरे हमारे अवचेतन मन में घर बना देता है। साइबर आतंकवाद शब्द की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं दी जा सकती पर निश्चित तौर पर यह ऐसा अपराध है जो हमें प्रत्यक्ष रूप से दिखाई नहीं देता पर इसका परिणाम कई गुना भयानक है।

रोजमर्रा की कार्यप्रणाली में साइबर स्पेस का दायरा उत्तरोत्तर बढ़ता ही जा रहा है। सरकारें, प्रशासन, शिक्षा, संचार और सूचना के विस्तार में इसका बढ़-चढ़कर इस्तेमाल कर रहे हैं। दूसरी ओर आतंकवादी समूह साइबर तकनीक का उपयोग अपने प्रचार, विभिन्न गुटों के साथ समन्वय तथा अर्थ प्रबंधन के लिए कर रहे हैं? अब इस आतंकवाद के साथ एक कीबोर्ड है, जो सोशल मीडिया पर कुछ भी लिख कर टैग कर सकता है, आर्टििफशियल इंटेलीजेंस है, जो समझ सकता है कि कौन से शब्दों का प्रयोग किस समूह और जाति को मानसिक रूप रूप से क्षति पहुंचाकर उनका उपयोग अपने व्यक्तिगत स्वाथरे के लिए कर सकता है।

अब सोचिए वो दिमाग कितना बीमार होगा जो किसी औरत की प्रतिष्ठा को धूमिल करके उसकी बोली लगाकर उसको सामान की तरह बेच सकता है जैसा कि हाल में बुल्ली बाई डील्स केस में देखा गया। आप सोचिए कितना चिंताजनक है कि आप बार-बार किसी संप्रदाय को वायरल मैसेज, वायरल इमेज, कुछ भद्दे कमेंट्स के साथ उसकी मानसिकता के साथ खेल रहे। साइबर अपराध का बीज बोने वाले लोग धीरे-धीरे हमारी मानसिकता के साथ खेलते हैं। हमें वो सब सोचने के लिए मजबूर करते हैं, जो हम से भविष्य में करवाना चाहते हैं। क्या आपने सोचा है कि सुबह-सुबह उठ कर जब आप अपना व्हाट्सएप देखते हैं, तो उसमें तमाम तरीके की ऐसी चीजें जो किसी संप्रदाय, जाति, धर्म और व्यक्ति विशेष की प्रतिष्ठा को हानि पहुंचाती हैं, क्यों आपके पास आती हैं।

कौन लोग हैं, जो इस तरीके के ग्राफिक्स बनाते हैं, हमें सुबह के नाश्ते के साथ परोसते हैं, जिसको हम बगैर सोचे-समझे आगे फॉर्वर्ड करते हैं। बहुत जरूरी है कि हमारे लिए और हमारी सुरक्षा के लिए कि जब कभी हम इस तरह के मैसेज अपने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, जो आपका फोन हो सकता है, कंप्यूटर हो सकता है, पर आते हैं को बगैर सोचे-समझे न तो किसी को फॉर्वर्ड करें और न ही ऐसी मानसिकता को अपने दिलोदिमाग पर हावी होने दीजिए। साइबर अपराध करने की शैली कुछ अलग है, जिसमें दो महत्त्वपूर्ण तत्व होते हैं-टेलीलॉजिकल तत्व और वाद्य तत्व। जिसको आसान भाषा में वायरल करना और कराना भी कह सकते हैं जैसा कि वो तमाम तरह के फॉर्वड जो किसी व्हाट्सएप ग्रुप, किसी स्पैम मेल की उपज होती है, और वो काम हम सब सुबह उठ कर गुड मॉर्निग मैसेज के साथ एक दूसरे को फॉर्वर्ड करते हैं। 

जब बगैर सोचे-समझे हम सोशल मीडिया पर किसी संप्रदाय के बारे में, व्यक्ति विशेष के बारे में कुछ मैसेज को एक दूसरे को भेजते हैं, उन्हें टैग करते हैं तो सोचा है कि भविष्य में इसका नुकसान कितना गुना हो सकता है। कभी-कभी राजनीतिक एजेंडे के माध्यम से हम उस साइबर अपराध में वाहक का काम करते हैं, इसके कारण लोगों के मन में आतंक की भावना पैदा होती है, डर का माहौल बनता है, और हम अपने अवचेतन मन में धारणा बना लेते हैं कि दूसरा संप्रदाय, देश, जाति हमें भविष्य में हानि पहुंचाने वाला है। साइबर तकनीक का इस तरह दुरुपयोग देखते हुए विशेषज्ञ भी खासे चिंतित हैं। साइबर स्पेस ऐसा क्षेत्र है जहां बिना खून-खराबे के किसी भी देश की सरकार को आतंकित किया जा सकता है। साइबर के जरिए आतंकवादी कंप्यूटर से जानकारियां निकालकर सेवाओं को बाधित करने में कर सकते हैं।  

आज रेलवे, एयरलाइंस, बैंक, स्टॉक मार्केट, हॉस्पिटल के अलावा सामान्य जनजीवन से जुड़ी हुई सभी सेवाएं कंप्यूटर नेटवर्क के साथ जुडी हैं, इनमें से कई तो पूरी तरह से इंटरनेट पर ही आश्रित हैं। इनके नेटवर्क के साथ छेड़छाड़ की गई तो क्या परिणाम हो सकते हैं। अब तो सैन्य प्रतिष्ठानों का कामकाज और प्रशासन भी कंप्यूटर नेटवर्क के साथ जुड़ चुका है। जाहिर है कि यह क्षेत्र भी साइबर आतंक से अछूता नहीं बचा है। सामान्य तौर पर साइबर अपराध के जो छोटे-मोटे अपराध सामने आते हैं, वे प्राय: युवा या विद्यार्थी वर्ग द्वारा महज मजा लेने या खुराफात करने के होते हैं, लेकिन इन्हीं तौर-तरीकों का उपयोग व्यापक पैमाने पर आतंकवादी समूह करने लगें तो मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। इसलिए कभी भी ऐसे वर्चुअल ग्रुप का हिस्सा न बनें जो किसी नकारात्मक विचारधारा के लिए उकसा रहा हो क्योंकि ऐसा करके अनजाने में आप भी साइबर आतंकवाद में अपनी हिस्सेदारी निभा रहे होंगे।  
(लेखिका संस्कृति यूनिवर्सिटी की निदेशक एवं  साइबर क्राइम विशेषज्ञ हैं)

डॉ. दिव्या तंवर


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