स्मृति शेष : जाना कथक सम्राट का

Last Updated 18 Jan 2022 12:14:59 AM IST

भारतीय संगीत की समृद्ध परम्परा के नायाब सितारे का अवसान नि:संदेह अत्यंत दुखद है।


स्मृति शेष : जाना कथक सम्राट का

पंडित बिरजू महाराज के निधन से कालिका बिंदादीन की गौरवशाली परम्परा की लय थम गई। सुर की मुखरता मौन मे परिवर्तित हो गई। भाव महाशून्य में विलीन हो गया। कथक के पर्याय पंडित बिरजू महाराज की अनुपस्थिति ने संगीत की दुनिया को रिक्तता से भर दिया है। लखनऊ की ड्योढ़ी आज सूनी हो गई। उत्तर भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैली ‘कथक’ की सुदीर्घ परंपरा रही है।
भारत के आठ शास्त्रीय नृत्यों में कथक नृत्य की परम्परा सबसे पुरानी है। मध्य काल में कथक का संबंध कृष्ण कथा और नृत्य से था। आगे चलकर मुगल प्रभाव के कारण कथक नृत्य दरबारों में बादशाहों के मनोरंजन के लिए किया जाने लगा। कथक नृत्य के तीन प्रमुख ऐतिहासिक घराने हैं। कछवा के राजपूतों का जयपुर घराना, अवध के नवाब का लखनऊ घराना और वाराणसी का घराना। पंडित बिरजू महाराज का संबंध लखनऊ घराने से रहा है। पंडित बिरजू महाराज को कथक की प्रेरणा पिता अच्छन महाराज और चाचा शंभू महाराज से विरासत मे मिली थी। पंडित बिरजू महाराज के पूर्वज इलाहाबाद की हंडिया तहसील के रहने वाले थे। जब गांव में सूखा पड़ा तब लखनऊ के नवाब ने उनके पूर्वजों को राजकीय संरक्षण दिया और इस तरह बिरजू महाराज के पूर्वज नवाब वाजिद अली शाह को कथक का प्रशिक्षण देने लगे।
उन्होंने संगीत भारती, दिल्ली में छोटे बच्चों को कथक सिखाना शुरू किया और फिर कथक केंद्र, दिल्ली का कार्यभार भी संभाला। उन्होंने दिल्ली में ‘कलाश्रम’ नाम से कथक संस्थान की स्थापना की थी। पंडित बिरजू महाराज कथक नर्तक होने के साथ ही शास्त्रीय गायन में भी प्रवीण थे। ठुमरी, दादरा, भजन और गजल गायकी में उनका कोई सानी नहीं था। वह कई वाद्य यंत्र भी बखूबी बजाते थे। तबले पर उनकी बहुत अच्छी पकड़ थी। इसके अलावा वह सितार, सरोद और सारंगी में भी सिद्धहस्त थे। आश्चर्य की बात यह थी कि उन्होंने इन वाद्य यंत्रों को बजाने की विधिवत शिक्षा नहीं ली थी। ऐसा संयोग दुर्लभ होता है। दिल्ली से बेहद प्यार करने वाले बिरजू महाराज के यहां अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त फिल्मकार सत्यजीत रे, भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खान, पंडित रवि शंकर, यश चोपड़ा, संजय लीला भंसाली, कमल हासन, माधुरी दीक्षित जैसी शख्सियतों का आना-जाना लगा रहता था। उनके घर कला की दुनिया की बड़ी-बड़ी हस्तियां आती रहतीं। अपने ड्रॉइंग रूम में शिष्यों के साथ बैठकी और नृत्य की बारीकियों पर चर्चा आम बात थी।

बिरजू महाराज ने ‘डेढ़ इश्किया’ फिल्म में लोकप्रिय अभिनेत्री माधुरी दीक्षित के नृत्य का निर्देशन किया था। बिरजू महाराज बताते थे कि माधुरी दीक्षित में सीखने की गजब की ललक है। उन्होंने माधुरी को ‘देवदास’ और ‘दिल तो पागल है’ में नृत्य का प्रशिक्षण भी दिया था। बिरजू महाराज को नृत्य के क्षेत्र में शुरू से ही काफी प्रशंसा एवं सम्मान मिला, जिनमें पद्म विभूषण, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार तथा कालिदास सम्मान प्रमुख हैं। इनके साथ ही इन्हें काशी हिंदू विश्वविद्यालय एवं खैरागढ़ विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की मानद उपाधि मिली। 2016 में हिन्दी फिल्म बाजीराव मस्तानी में ‘मोहे रंग दो लाल’ गाने पर नृत्य-निर्देशन के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार मिला। 2002 में लता मंगेश्कर पुरस्कार से सम्मानित किए गए। 2012 में सर्वश्रेष्ठ नृत्य निर्देशन हेतु राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार: फिल्म विरूपम के लिये दिया गया। अपने घुंघरूओं की खनक से संगीत प्रेमियों को मदहोश करने वाले बिरजू महाराज ने एक पत्रकार को बतलाया था की अगर मे नर्तक नहीं होता तो मोटर मैकेनिक होता। मुझे गाड़ियां बनाने का शौक है। मैं गाड़ियां खुद से ठीक कर लेता हूं। यह बहुत रोचक काम है। यह भी कला है। नि:संदेह नृत्य और मोटर मैकेनिक में कोई साम्य नहीं है, फिर भी दोनों को कला के रूप मे देखना उनकी विलक्षणता थी। नृत्य की दुनिया के बेताज बादशाह को मेहमाननवाजी का भी बड़ा शौक था। अपने यहां आने वाले लोगों का पंडित जी गरम जोशी से स्वागत करते। शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति हो जो पंडित जी के ड्राइंग रूम मे पहुंच कर मुंह मीठा न किया हो।
बिरजू महाराज अपने आगंतुकों का स्वागत ‘पहले मिठाई, फिर बात’ से करते थे। उनका घर धीरे-धीरे कला का मंदिर बन चुका था। उनके आशियाने से घुंघुरूओं की मधुर खनक सुनाई देती रहती थी। सर्वत्र एक सकारात्मक ऊर्जा महसूस होती। खुशनुमा माहौल में संगीत और आनंद को महसूस किया जा सकता था। बिरजू महाराज हमेशा अपने शिष्यों और प्रशंसकों से घिरे रहते थे। बेहद मानवीय और उदार व्यवहार से पूरित इस महामानव को अपनी प्रसिद्धि का जरा भी गुमान नहीं था। नृत्य की जीवंत मुखमुद्रा से सम्मोहन पैदा करने वाले बिरजू महाराज को एक किवदंती के रूप में याद किया जाएगा। संगीत की इस महान विभूति का पार्थिव शरीर अब भले हमारे बीच नहीं है, लेकिन आने वाली पीढ़ियां सदियों तक उनकी कृति के अमरत्व का नृत्य और गायन करेगी।

डॉ. मनीष कु. चौधरी


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