बतंगड़ बेतुक : अकड़ दबंगई जिसकी जीत उसकी
झल्लन बोला, ‘तो ददाजू बताइए, आप किसान विरोधी रुख क्यों अपनाए हुए हैं, किसान आंदोलन की सफलता पर क्यों तन्नाए हुए हैं?
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आपको डर नहीं लगता कि आपके साथी-संघाती आपको किसानों का दुश्मन बताएंगे, आपको सरकार तथा पूंजीपतियों का पिट्ठू बताएंगे और आपको जमकर गरियाएंगे।’
हमने कहा, ‘देखा झल्लन, न हमें इसकी चिंता है कि कौन हमें क्या बताएगा, न इसकी चिंता है कि कौन हमारी प्रशस्ति गाएगा और कौन हमें गरियाएगा। रही किसान विरोधी होने की बात तो हमारे जैसा इंसान न कभी किसान विरोधी रहा है, न किसान विरोधी है और न किसान विरोधी रहेगा। हमारा विरोध तो इस कथित किसान आंदोलन की बनावट-बुनावट से है जिसे हम केवल कुछ अल्पसंख्य भूपति किसानों के हित साधन का आंदोलन मानते हैं, यह उनका आंदोलन नहीं है जिन्हें हम किसान के तौर पर पहचानते हैं। यह उन किसानों का आंदोलन था जिनके पास अधिशेष धन था, जिनका अपने क्षेत्र की राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्थाओं में भरपूर दखल था और साथ ही जिनके पास संगठन बल था। हमारी नजर में वास्तविक किसान वे हैं, जो गांव में रहते हैं पर गांव के संपन्न किसानों की जमीन बोते-उगाते हैं, आस-पास के शहरों में बिना टाट-टप्पर रोजी-मजूरी के लिए चले जाते हैं और जब इससे भी पूरा नहीं पड़ता तो पंजाब जैसे राज्य के बड़े किसानों के खेतों में काम करने के लिए बंधुआ बन जाते हैं।’
झल्लन बोला, ‘ददाजू, आप काहे इनकी बात उठा रहे हो, काहे फालतू में अपना सर खपा रहे हो? अगर ऐसे लोग किसान होते तो किसान आंदोलन इनकी भी चिंता करता और अपने आंदोलन में इनकी समस्याएं भी सामने रखता।’ हमने कहा, ‘यही तो तकलीफ है झल्लन, इस देश में करीब दस-बारह करोड़ बड़े, मझोले और छोटे किसान हैं जिनके खाते में सरकार सम्मान या अपमान राशि भेज सकती है और अपनी पीठ सेंक सकती है। इनमें से केवल डेढ़ करोड़ किसान ऐसे हैं जिन्हें एमएसपी का लाभ मिलता है, बाकी का काम जैसे-तैसे चलता है। लेकिन करीब बीस करोड़ लोग ऐसे हैं जिनके पास अपना कोई खेत-खलिहान नहीं है लेकिन वे अपनी आजीविका खेतिहर मजदूर बनकर चलाते हैं, दूसरों की जमीन के लिए अपनी जिंदगी लगाते हैं। यही वे लोग हैं जो फसल बोने से लेकर फसल काटने तक किसानी का काम करते हैं, किसान बनकर पैदा होते हैं और किसान रहकर ही मरते हैं। हमारे लिए ये ही असली किसान हैं जिनकी चर्चा न कोई किसान नेता करता है, न कोई सरकारी नुमाइंदा इन पर ध्यान देता है।’
झल्लन बोला, ‘क्या ददाजू, आप भी कैसी बात करते हो, आप भी न जाने किस-किससे कैसी-कैसी अपेक्षाएं पालते हो। भूपति किसान इनका क्या कर सकते हैं, ज्यादा-से-ज्यादा अपने खेतों में मजदूरी दे सकते हैं सो दे रहे हैं, इसीलिए तो आपके ये बेजमीन, बेघरबार किसान अपने मालिक किसानों का साथ दे रहे हैं।’ हमने कहा, ‘यही तो दुख है झल्लन कि ये आंदोलन में हर कहीं हैं पर विडंबना यह है कि आंदोलन इनके साथ कहीं नहीं है।’ झल्लन बोला, ‘अगर मौजूदा किसान आंदोलन इनकी बात नहीं उठा रहा है तो इन्हें अपना खुद का आंदोलन चलाना चाहिए और जैसे इस आंदोलन के किसानों ने सरकार को झुकाया है वैसे ही इन्हें भी सरकार को झुकाना चाहिए।’
हमने कहा, ‘कैसी मूर्खतापूर्ण बात कर रहा है झल्लन, ये किसान कैसे आंदोलन चलाएंगे, आंदोलन करने की ताकत कहां से लाएंगे? इनकी कोई एक जाति नहीं है जिसके बल पर ये चुनावी चाल चल सकें, इनका कोई एक धर्म नहीं है जिसके बल पर ये एकजुट हो सकें, इनके पास इनका कोई निजी धन नहीं है जिसके बल पर ये अपना संगठन खड़ा कर सकें और सरकार के साथ सौदेबाजी के लिए कोई दलाल-नेता समूह तैयार कर सकें। इनका जीना-मरना भले ही भूपति किसानों से जुड़ा हुआ हो लेकिन भूपति किसानों का जीना-मरना इनसे नहीं जुड़ा हुआ है। ये चार जाएंगे तो उनके पास आठ आएंगे। इन्हें न तो धनिक किसानों से स्थायी रोजगार की कोई गारंटी मिलती है और न सरकार की कोई दया राशि इन तक पहुंचती है। जिस आंदोलन की शिखर मांग इन लाचार-मजबूर किसानों की मांग नहीं है वह बदलावकारी किसान आंदोलन कैसे हो सकता है, वह तो धनपति किसानों की शक्ति और एकजुटता का प्रदर्शन है और यही हो सकता है।’ झल्लन बोला, ‘पर ददाजू, किसान नेता तो अपने आंदोलन को हर किसान का आंदोलन बता रहे थे, इसमें सबकी भागीदारी दिखा रहे थे, इसे जाति-मजहब से ऊपर बता रहे थे और आपके बहुत से वापपंथी साथी भी इनका साथ निभा रहे थे।’
हमने कहा, ‘झल्लन, सच यह है कि जो मजदूर-मजबूर किसान इसमें शामिल हुए वे अपने मालिक किसानों के दबाव में शामिल हुए, इनके साथ खड़े हुए। इनकी जाति मालिक की जाति थी, इनका धर्म मालिक का धर्म था और इनकी राजनीति मालिक की राजनीति थी। इनकी मजबूरी इनसे वह कराती है जो मालिक करवाना चाहता है, ये उधर ही हंक जाते हैं जिधर के लिए इनका मालिक हांक लगाता है।’ झल्लन बोला, ‘पर ददाजू, जाति-धर्म और क्रांतिवीर..उनका क्या?’ हमने कहा, ‘इन पर अगली बार चर्चा करेंगे, हाल फिलहाल हम यहीं रुकेंगे।’
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