विश्लेषण : तस्वीर बहुत कुछ कहती है

Last Updated 30 Nov 2021 12:19:05 AM IST

एक मुख्यमंत्री अपने प्रधानमंत्री के साथ टहलते हुए बातचीत करे और उसकी तस्वीर देशव्यापी सघन बहस का मुद्दा बन जाए, इसकी आसानी से कल्पना नहीं की जा सकती थी।


विश्लेषण : तस्वीर बहुत कुछ कहती है

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी का टहलते हुए बात करने का वीडियो शायद पिछले कुछ समय में राजनीति का सर्वाधिक वायरल एवं सबसे ज्यादा प्रतिक्रियाओं का विषय बन गया है। प्रधानमंत्री उनके कंधे पर हाथ रखे हुए हैं और इस तरह की तस्वीरें न के बराबर आती है। किंतु दोनों एक ही पार्टी के नेता हैं तो जाहिर है उनके बीच कई विषयों पर विचार विमर्श हो रहे होंगे।
हां, योगी ने स्वयं इसे देशव्यापी चर्चा में लाने की रणनीति अपनाई है इसमें संदेह नहीं। उन्होंने अपने ट्विटर हैंडल से दो तस्वीर यूं ही तो साझा नहीं की होगी। तो उन्होंने क्यों किया होगा ऐसा? इसके लिए ट्वीट की उनकी इन पंक्तियों पर दृष्टि डालनी आवश्यक है,
हम निकल पड़े हैं प्रणकरके/अपना तन-मन अर्पण करके/जिद है एक सूर्य उगाना है/अम्बर से ऊंचा जाना है/एक भारत नया बनाना है।’
इन पंक्तियों में राष्ट्रवाद के प्रखर भाव के साथ लक्ष्य एवं उसके प्रति दृढ़ संकल्प परिलक्षित हुआ है। शायद ही किसी मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री के साथ अंतरंगता से टहलने व बातचीत की ऐसी तस्वीरें और इस तरह की कविता सामने रखी हो। निश्चित रूप से इसका उद्देश्य होगा। मीडिया एवं राजनीतिक गलियारों में इसे योगी द्वारा अपनी पार्टी, समर्थकों और विरोधियों के बीच मोदी के साथ किसी तरह के मतभेद न होने का संदेश देने की कोशिश बताई जा रही है।

चर्चा के लिए भले यह विषय हो सकता है और संभव है जो लोग बीच-बीच में लंबे समय से मतभेदों की अटकलें लगाकर प्रचार करते रहते हैं उनको सीधा संदेश देने की भी रणनीति हो। किंतु भाजपा के आंतरिक राजनीति पर दृष्टि रखने वाले जानते हैं कि मतभेदों की इन अटकलों में किसी तरह की सच्चाई न थी न है। यह कल्पना से ही परे है कि मोदी से मतभेद रहते हुए भाजपा का कोई मुख्यमंत्री अपने पद पर रह सकता है। मोदी और अमित शाह के लिए योगी आदित्यनाथ कितने महत्त्वपूर्ण हैं यह उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद से हुए चुनाव में साफ दिखाई दिया है। भाजपा के किसी मुख्यमंत्री की इस तरह दोनों शीर्ष नेताओं के समानांतर देशव्यापी जनसभाएं नहीं आयोजित की जा रही। सच तो यह है कि भारतीय राजनीति के इतिहास में किसी मुख्यमंत्री का इतने व्यापक स्तर पर चुनाव में उपयोग होते पहली बार देखा गया है।  ऐसा तो है नहीं कि मोदी और शाह योगी को लेकर मोहग्रस्त हों। सत्ता की राजनीति में मोहग्रस्तता या निजी संबंध इस स्तर पर मायने नहीं रखते कि चुनाव तक में किसी को बड़ा नेता बनाने के लिए जोखिम उठाया जाता रहे। स्पष्ट है कि मोदी और शाह को योगी की लोकप्रियता का पूरा आभास है तथा भविष्य के नेतृत्व की लंबी योजना से उन्हें आगे बढ़ाया गया है। इस समय भाजपा ही नहीं पूरे संघ परिवार और हिंदुत्व तथा हिंदुत्व केंद्रित राष्ट्रीयता की विचारधारा को मानने वालों के बीच योगी अपार लोकप्रिय हैं। आप सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाओं में देख सकते हैं। जहां भी कुछ समस्या होती है उनके समर्थक यही कहते हैं कि योगी आदित्यनाथ के हाथ में दे दो।  
योगी साहसपूर्ण आक्रामक वक्तव्य देने के साथ फैसले भी करते हैं। ऐसे मुख्यमंत्री शायद ही हुए हो जो कह रहे हैं कि जो भी अपराधी दूसरे को गोली मारने आएगा वह गोली अंत में उसी को लगेगी और जिसे मारने आएगा वह तो बच जाएगा वह अपराधी जरूर परलोक चला जाएगा। यह पंक्तियां लोगों से उन्हें वाहवाही दिलाती है। उनकी ईमानदारी, वाकपटुता, विचारों की  प्रखर अभिव्यक्ति तथा साहस व जोखिम उठाने के गुण को मोदी ने अधिकतम विकसित होने का अवसर दिया है। इसीलिए जब उत्तर प्रदेश में पार्टी और सरकार के अंदर से ही उनके प्रति विरोधी वक्तव्य आए तथा कुछ विधायकों ने विद्रोह का संकेत दिया तो उसे केंद्रीय नेतृत्व ने आगे नहीं बढ़ने दिया। साफ कर दिया गया कि योगी ही नेता थे, हैं और रहेंगे। किसी स्तर पर केंद्रीय नेतृत्व से योगी का मतभेद होता तो यह फैसला होता ही नहीं। वास्तव में मोदी केवल भाजपा की राजनीति और उनके द्वारा दी गई दिशा को ठोस रूपाकार तक ही सीमित नहीं है, भविष्य की दृष्टि से यह धारा आगे बढ़े इसके लिए नेतृत्व भी विकसित कर रहे हैं। अमित शाह और योगी इसी सोच की उत्पत्ति हैं। इसलिए मतभेद की चर्चा अनावश्यक है।  
संभव है योगी ने ऐसी चर्चा करने वालों को संदेश देने के लिए भी ये तस्वीरें साझा की हो क्योंकि लोगों के अंदर यह धारणा बनी कि मोदी चुनाव बाद उन्हें फिर से मुख्यमंत्री नहीं भी बना सकते हैं तो इसका असर चुनाव पर व्यापक रूप से पड़ सकता है। योगी ने इन पंक्तियों द्वारा वास्तव में यह संदेश दिया है कि उनके संबंध केवल सत्ता की चुनावी राजनीति तक नहीं है। इसके परे एक टीम के रूप में भारत के गौरव को आगे बढ़ाने के लिए हम सब कृत संकल्पित हैं। ऐसी पंक्तियां कार्यकर्ताओं के अंदर यह विचार पैदा करतीं हैं कि जब नेता इस तरह अपने स्वार्थ को तिलांजलि देकर केवल राष्ट्र के लिए समर्पित होकर काम कर रहा है तो उन्हें भी उनके साथ उसी तरह काम करना चाहिए। आप योगी के समर्थक हों या विरोधी इतना तो मानना पड़ेगा कि सरकार का नेतृत्व करने के बाद उन्होंने केवल सामान्य राजनीति नहीं, विचारधारा के ठोस धरातल पर पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करने में काफी हद तक सफलता पाई है। उनकी यही क्षमता है, जिसने मोदी और अमित शाह दोनों को प्रभावित किया होगा।
आप इसकी आलोचना करिए लेकिन यह भी सोचिए कि आपको भी ऐसा अवसर मिलता तो क्या इस तरह उसका सकारात्मक और प्रेरक उपयोग कर सकते थे? सच कहें तो आलोचकों ने योगी को अपने लक्ष्य साधने में सहयोग ही किया है। कोई विरोधी नेता अगर कह रहे हैं कि कंधे पर हाथ इसलिए है क्योंकि योगी के कंधे से सत्ता की जिम्मेवारी जाने वाली है तो इसे आप क्या कहेंगे? आज अगर भाजपा आत्मविश्वास बनाए रखते हुए आगे बढ़ रही है तो मूल कारण यही है कि वर्तमान नेतृत्व इतनी सूक्ष्मता से घटनाओं एवं प्रसंगों का विश्लेषण कर उपयोग की कला जानता है। उनके विरोधी यह प्रतिभा अपने अंदर विकसित करें तो उनके लिए भी फायदेमंद होगा।

अवधेश कुमार


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