मीडिया : मीडिया में आते कुछ शब्द

Last Updated 28 Nov 2021 12:55:18 AM IST

आजकल मीडिया में अगर सबसे अधिक बोला जाने वाला और प्रचारित किया जाने वाला कोई एक शब्द है तो वह है ‘विकास’ और उससे जुड़े शब्द जैसे सड़क निर्माण, सफाई, शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएं, खेत खलिहान और खुशहाल लोग!


मीडिया : मीडिया में आते कुछ शब्द

इसकी तुलना में मीडिया में दूसरा सबसे अधिक बोला जाने वाला शब्द है ‘हिंदू’! उसके पर्याय के रूप में भी कई शब्द बोले जाते हैं जैसे हिंदुत्व, हिंदुत्ववाद, हिंदूवाद, हिंदू जीवन शैली और हिंदू चेतना मंदिर आदि! तीसरे नंबर पर सबसे अधिक बोला जाने वाला शब्द है ‘इस्लाम’!
यों उससे जुड़े या उससे निकलते अन्य कई शब्द भी खूब बोले जाते हैं जैसे कि इस्लामिक स्टेट या आईसिस या बोकोहराम या शरीया या मुस्लिम पर्सनल कानून, तीन तलाक आदि! तीसरे सबसे अधिक बोले जाते शब्द हैं भारत, भारतीय, राष्ट्र, राष्ट्रवाद, देश, देशभक्ति, नापाक पाकिस्तान और चीन का विस्तारवाद! चौथे सबसे अधिक बोले जाने वाले शब्द हैं: धरना, अन्नदाता और किसान आंदोलन, ट्रैक्टर रैली, शहीद, तीन कृषि कानून, एमएसपी। पांचवें बोले जाने शब्द हैं: विपक्ष, कांग्रेस, ममता, टीएमसी आप, केजरीवाल, सपा, अखिलेश, अकाली दल आदि! इसका कारण का अपना स्वभाव है! वह स्वभाव से घटनाजीवी और खबरजीवी और चरचाजीवी होता है और तत्कालजीवी होता है साथ ही हर दुहराववादी होता है। उदाहरण के लिए जब कोरोना महामारी थी तो मीडिया में कोरोना ही कोरोना था वह और उससे जुड़े शब्द ही मीडिया के अधिकांश स्पेस को घेरते थे अब चूंकि उसका उत्ताप कम हो गया है इसलिए उससे जुड़े शब्द अब हाशिए पर ही नजर आते हैं। इसी तरह से एक शब्द है प्रदूषण, जो जब बढ़ता है तो खबर बनता है नहीं तो नहीं बनता।

इसीलिए मीडिया को ‘ट्रेंड सेटर’ कहा जाता है! इसका सबसे अच्छा प्रमाण सोशल मीडिया है जैसे कि ट्विटर, इंस्टाग्राम या व्हाट्सऐप आदि जहां एक ट्रेड कल्चर ही बन चली है जहां कोई न कोई अपनी बात छवि को ट्रेंड करता और कराता रहता है! ट्रेंड मानी हैं-चलन में होना, चलन  में रहना, चरचा में रहना, ध्यान खींचने वाला होना! हमने ऊपर जितने शब्दों की चरचा की वे हमारे एक निजी अध्ययन के आधार पर पिछले एक-डेढ़ महीने में सबसे अधिक चर्चित शब्द रहे हैं! अगर हम अपने इस निजी अध्ययन से चुने गए ट्रेंड सेटर शब्दों को ध्यान से देखें तो एक ओर विकासवादी एजेंडा काम करता नजर आता है दूसरी ओर परस्पर स्पर्धा करते धर्म सबंधी विचारों, उनके प्रतीकों, उनके मूल्यों का पुरातनवादी एजेंडा एक दूसरे से टकराता नजर आता है। इसी प्रक्रिया में उनके बीच की तनाव पैदा करने वाली ‘फाल्ट लाइनें’ भी बेहद एक्टिव नजर आती हैं! आम तौर पर यह मानकर चला जाता है कि विकास और धर्म के बीच दुश्मनी है! विकासवादी सिद्धांतिकी के हिसाब  से विकास के काम और धर्म के एक दूसरे के विपरीत काम करते दिखते हैं! इसके अलावा अपने समाज में ‘विकास और जनता’ के बीच जो सबंध बनते हैं वे सीधे सहज नहीं होते! यह बात भी एक चैनल चरचा में सामने आई! एक पत्रकार ने बताया कि जिसने जब-जब जिसने विकास किया है तब-तब जनता ने उसे हराया है!
उसने उदाहरण देते हए बताया कि सबसे पहले मायावती ने दिल्ली-आगरा एक्सप्रेस वे बनाया, लेकिन अगले चुनाव में यूपी की जनता ने उनको हरा दिया; फिर अखिलेश के साथ भी यही हुआ। उन्होंने एक हाइवे बनाया और उनको भी जनता ने अगले चुनाव मेंंरिजेक्ट कर दिया। अब योगी जी विकास करते दिखते हैं, हाइवे बनाते दिखते हैं। कहीं उनको भी तो जनता रिजेक्ट नहीं कर देगी! ‘विकास’ शब्द की यही  समस्या है कि जनता उसे अपना नहीं समझती और शायद इसीलिए उसका प्रतदान नहीं देती। इसके अलावा जिस तरह से ‘विकास’ शब्द कहा बोला जाता है उसमें अपने आप में एक  खोट  नजर आता है!
आजकल विकास के कार्यों को जिस तरह गिनाया जाता है उससे लगता है कि नेता विकास की जगह उस पर अहसान कर रहा है। नेता अपने भाषणों में कहते रहते हैं कि हमने जनता को ये दिया कि ये दिया कि ये दिया कि ये दिया! कहने की जरूरत नहीं कि ये भाषा अहसान की भाषा है, जिसे कोई भी आत्माभिमानी जनता स्वीकार नहीं करती। इसीलिए शायद रिजेक्ट कर देती है! कहने की जरूरत नहीं कि यह नेताओं की भाषा की अहसानवादी टोन को मीडिया दिखाता है जिसमें विकास के काम कर्तव्य की तरह नहीं बताए जाते बल्कि पर्सनल अहसान की तरह दिखाए जाते हैं; मानो नेता कृपा कर रहा हो!

सुधीश पचौरी


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