संविधान दिवस : सामाजिक सुरक्षा के प्रावधान
सामाजिक सुरक्षा से संबंधित कई विषय भारतीय संविधान के विभिन्न भागों या अनुच्छेदों में भी निहित हैं।
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दूसरे शब्दों में कहा जाए तो सामाजिक सुरक्षा का प्रावधान भारतीय संविधान में सीधे तौर पर किया गया है। हालांकि यह कोई मूलभूत अधिकार की सूची में नहीं है, लेकिन विभिन्न दूसरे स्थानों पर इसका प्रावधान अथवा उल्लेख है, जहां से हम उस की संवैधानिक स्थिति को समझ सकते हैं। भारत एक कल्याणकारी राज्य होने के नाते अपने नागरिकों को सामाजिक सुरक्षा और सामाजिक सहायता के विभिन्न लाभों का विस्तार करने का दायित्व अपने ऊपर ले चुका है।
भारत में सामाजिक सुरक्षा विधान भारत के संविधान में निहित राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों से अपनी ताकत और भावना प्राप्त करते हैं। हालांकि भारत के संविधान को सामाजिक सुरक्षा को एक मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता देना बाकी है, इसके लिए यह आवश्यक है कि राज्य को सुरक्षित और संरक्षित करके लोगों के कल्याण को बढ़ावा देने का प्रयास किया जाए। प्रभावी रूप से यह एक सामाजिक व्यवस्था है, जिसमें-सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय-सभी को प्राप्त करने की लगातार कोशिश है। इनको राष्ट्रीय जीवन की संस्थाओं के रूप में स्वीकृत करना होगा। विशेष रूप से, संविधान के अनुच्छेद 41 के लिए आवश्यक है कि राज्य अपनी आर्थिक क्षमता की सीमा के भीतर बेरोजगारी, वृद्धावस्था, बीमारी और विकलांगता के मामले में शिक्षा और सार्वजनिक सहायता के लिए काम करने का अधिकार हासिल करने के लिए प्रभावी प्रावधान करे। अनुच्छेद 42 में कहा गया है कि राज्य को काम की उचित, न्यायसंगत और मानवीय स्थितियों को सुरक्षित रखने और मातृत्व राहत के लिए प्रावधान करना चाहिए। अनुच्छेद 47 में कहा गया है कि राज्य को अपने प्राथमिक कर्त्तव्यों के बीच पोषण के स्तर और अपने लोगों के जीवन स्तर में सुधार और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार करना चाहिए। इस प्रकार राज्य पर डाली गई बाध्यताएं या अनिवार्यताएं सामाजिक सुरक्षा की पूष्टि करती हैं।
संविधान की प्रस्तावना इस तरह है-‘हम भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को : सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता एवं अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर, 1949 को एतद्द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।’ इस प्रस्तावना में जहां ‘विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता और अवसर की समता, मूलभूत अधिकारों’ की ओर इशारा करते हैं, वहीं मेरे विचार से, ‘सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक न्याय’ वाले वाक्यांश में ‘सामाजिक एवं आर्थिक न्याय’ कहीं न कहीं सामाजिक सुरक्षा के प्रावधान व अधिकार को भी चिह्नित करता है। ‘प्रतिष्ठा’ शब्द मुख्यत: मूलभूत अधिकारों द्वारा ही सुनिश्चित होता है, परन्तु कई बार सीधे तौर पर सामाजिक सुरक्षा द्वारा भी सुनिश्चित किया जाता है। अत: हम कह सकते हैं कि हमारे भारतीय संविधान की प्रस्तावना में भी सामाजिक सुरक्षा की तरफ इंगित किया गया है, और इसका अविभाजित भाग है।
भारतीय संविधान के भाग 4 में राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत दिए गए हैं। इस भाग में विभिन्न प्रकार की गांधीवादी, समाजवादी एवं वैज्ञानिक सोच को भारतीय समाज और जनमानस पर प्रतिस्थापित करने की कोशिश की गई है। सामाजिक सुरक्षा संबंधित प्रावधान भी इसी भाग में सबसे ज्यादा हमें दिखाई देते हैं। अनुच्छेद 41 में कुछ स्थितियों में काम के अधिकार, शिक्षा के अधिकार एवं सामाजिक सहायता के अधिकार का प्रावधान है। ये स्थितियां रोजगार, वृद्धावस्था, बीमारी, नि:शक्तता या दूसरे ऐसे असुरक्षित लोगों के बारे में हैं। संविधान के इन विभिन्न प्रावधानों को देखते हुए, यह पूरी तरह से एवं आसानी से समझा जा सकता है कि हमारे संविधान ने दूसरे आधुनिक आदशरे के साथ-साथ सामाजिक सुरक्षा के विचार एवं अवधारणा को पूरी तरह से अंगीकृत किया हुआ है।
(लेखक ईएसआईसी, श्रम व रोजगार मंत्रालय, केंद्र सरकार में अपर आयुक्त के पद पर हैं)
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