योगी शासन : वनटांगिया बस्ती के वीराने में बहार
इरादे नेक हों। नीयत अच्छी हो। जिस काम को करना है उसे पूरा करने की जिद, जज्ज्बा और जुनून हो तो असंभव भी संभव हो जाता है।
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इसे संभव बनाने में समाज और ऊपर वाला भी आपकी मदद करता है। फिर तो वीराने में भी बहार आ जाती है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यकाल में घने जंगलों में बसे वनटांगिया बस्तियों का कायाकल्प इसका सबूत है। कायाकल्प का यह सिलसिला सिर्फ वनटांगिया बस्तियों तक ही सीमित नहीं है। कुशीनगर और पूर्वाचल के अन्य जिलों में रहने वाले मुसहर समुदाय, लखीमपुर खीरी, श्रावस्ती, बहराईच में रहने वाले थारू समाज सहित अन्य घुमंतू समुदाय के लोगों तक इसका विस्तार होता है।
मुख्यमंत्री का साफ निर्देश है कि समाज के इस वर्ग को चिह्नित कर, इनको सरकार से मिलने वाली सभी सुविधाओं (खाद्यान्न, मकान, शौचालय, बिजली, शुद्ध पेयजल, रसोई गैस के कनेक्शन आदि) से संतृप्त करें। यह सिलसिला लगातार जारी भी है। यहां खास तौर से जिक्र उस वनटांगिया समुदाय का है जो आजाद भारत में भी देश के नागरिक नहीं थे। जब नागरिक नहीं थे तो वोट देने का भी अधिकार नहीं था। वोटर न होने के नाते कोई भी जनप्रतिनिधि इनकी खोज-खबर नहीं लेता था। ऐसे समय में बतौर सांसद और गोरक्षपीठ के उत्तराधिकारी के रूप में योगी आदित्यनाथ इनके हको-हुकुक के लिए सामने आए। संसद के हर सत्र में इनके लिए आवाज बुलंद की।
मुख्यमंत्री बनने के बाद उनके लिए वह सब कुछ किया जो संभव था। यही वजह है कि आज वहां का हर बच्चा उनको ‘टॉफी बाबा’ के नाम से जानता है। हर बुजुर्ग यही कहता है कि हमारे लिए तो ‘बाबा’ ही ‘भगवान’ हैं। 22 नवम्बर को भाजपा के राष्ट्रीय अध्य्क्ष जेपी नड्डा भी गोरखपुर जाकर तिकोनिया जंगल स्थित वनटांगिया गांव रामगढ़ रजही के कायाकल्प से रूबरू हुए। गांव के इस कायाकल्प को देखकर उन्होंने कहा, ‘नेतृत्व सही होता है तो विकास की ऐसी ही तस्वीर देखने को मिलती है।’
उन्होंने यहां हुए अभूतपूर्व विकास कार्यों को खुद देखा ही, इसकी झलक उन्हें योगी आदित्यनाथ के प्रति वनटांगियों की अगाध श्रद्धा में भी दिखी। यही वजह है कि वह बरबस ही बोल पड़े, ‘योगी बाबा से सबकुछ संभव है। इसके पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी महराजगंज के वनटांगिया बस्ती बरगदवा राजा के लोगों द्वारा सुनहरी शकरकंद (गोल्डन स्वीट पोटैटो) की चर्चा ‘मन की बात’ में की थी। बात करीब दो दशक पहले की है। योगी आदित्यनाथ तब गोरखपुर के पहली बार सांसद बने थे। उनके संज्ञान में यह बात आई कि 1917-18 के आसपास से घने जंगलों में बसी वनटांगिया बस्तियों की बदहाली का फायदा नक्सली गतिविधियों में लिप्त संगठन उठाने की फिराक में हैं।
वह समस्या की तह में गए तो वनटांगियों की शासकीय उपेक्षा और स्वास्थ्य-शिक्षा जैसी मूलभूत जरूरतों की शून्यता नजर आई। इसके बाद उन्होंने गोरक्षपीठ की संस्थाओं महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद और गुरु श्री गोरक्षनाथ चिकित्सालय को शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए लगाया। शुरु आत हुई गोरखपुर के कुसम्ही जंगल में बसी वनटांगिया बस्ती जंगल तिकोनिया नंबर तीन से। मोबाइल हेल्थ टीमें बस्ती में लोगों की स्वास्थ्य जांच और मुफ्त दवाइयां देने में लगी तो शिक्षा परिषद के लोग वनटांगिया बच्चों को पढ़ाने में। इस बीच योगी ने गोरखपुर-महराजगंज के 23 वनटांगिया गांवों की आवाज संसद में बुलंद करनी शुरू कर दी। 2008 में योगी जंगल तिकोनिया नम्बर तीन में टीनशेड डलवाकर एक अस्थायी स्कूल खोल रहे थे, सांसद होने के बावजूद वन विभाग ने उन पर मुकदमा दर्ज करा दिया। इससे वनटांगियों को उनका अधिकार दिलाने के लिए योगी और जुनूनी हो गए।
उन्होंने असली आजादी की रोशनी से वंचित इस तबके के साथ दिवाली मनाने का निर्णय किया। हर दिवाली वनटांगियों के बीच जाना, उन्हें त्योहार मनाने के लिए उपहार देना, बच्चों को कॉपी, किताब, बैग, टॉफी और फुलझड़ियां देना एक प्रथा बन गई जो योगी के सीएम बनने के बाद भी जारी है। असल और आमूलचूल परिवर्तन हुआ 2017 में। मुख्यमंत्री बनते ही योगी आदित्यनाथ ने वनटांगिया गांवों को राजस्व गांव घोषित किया।
इससे इस समुदाय के लोग पहली बार सरकारी अभिलेखों में नागरिक का दर्जा हासिल कर सके। फिर क्या था, मुख्यमंत्री के निर्देश पर झोपड़ियों में रहने वाले वनटांगियों के पीएम-सीएम आवास योजना से पक्के मकान बन गए। वर्तमान सुधारने के साथ भविष्य उज्ज्वल करने के लिए स्कूलों की स्थापना हुई। तिकोनिया नंबर तीन में बने कम्पोजिट स्कूल में तो स्मार्ट क्लास भी शुरू हो गया है। जब जीवन की हर सुख सुविधा का है इंतजाम तो वनटांगिया समुदाय क्यों न कहे योगी को भगवान।
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