प्रदूषण से राहत : बहुत कठिन है दिल्ली की डगर
कोरोना महामारी जैसे प्रदूषण के संकट में दिल्ली घिर गई है। एक साल के अंतराल पर ज्यादा कहर बरपाने वाला डेंगू ने भी इस बार बड़ी संख्या में लोगों को चपेट में ले लिया है।
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पहले भी सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के ही आदेशों के बाद पर्यावरण सुधार के लिए सरकारों ने ठोस पहल की। इस बार को सर्वोच्च अदालत ने पूर्णबंदी (लॉकडाउन) लगाने की तैयारी करने को कहा।
दिल्ली सरकार समेत एनसीआर (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) की दूसरी राज्य सरकारों ने कुछ दिन के लिए शिक्षण संस्थानों को बंद करके प्रदूषण से फौरी राहत दिलाने के प्रयास किए, लेकिन इससे न तो वाहनों का सड़क पर आना कम हुआ और न ही प्रदूषण में कोई कमी आती दिख रही है। हालात इतने खतरनाक हो गए हैं कि लोगों को घरों से बेहद जरूरी होने पर ही निकलने की सलाह दी जा रही है। लोगों को सांस लेने के साथ-साथ आंखों में जलन का शिकायत आम हो गई है। कहने के लिए 1483 वर्ग किलो मीटर की दिल्ली है मगर एनसीआर के शहर दिल्ली से इस कदर जुड़े हुए हैं कि उन सभी के साथ ही कोई अभियान दिल्ली को इन संकटों से बचा सकता है।
यह दिल्ली सरकार के अकेले बूते की नहीं है। केंद्र की सरकार के साथ मिलकर दिल्ली के सभी पड़ोसी राज्यों और दिल्ली की नगर निगमों के साथ-साथ दूसरी सरकारी एजेंसियों को साथ लेकर जनता की सक्रिय भागीदारी से इसका समाधान निकाला जा सकता। यह केवल कहने से नहीं होगा कि डेंगू के खात्मे के लिए दस रविवार, दस बजे और दस मिनट या प्रदूषण कम करने के लिए ‘रेड लाइट ऑन तो गाड़ी आफ’, इसे जन भागीदारी से सफल करवाना होगा और इसके साथ ही अनेक प्रयास गंभीरता से करने पर ही दिल्ली प्रदूषण से मुक्त हो पाएगी। यह साबित भी हो चुका है कि केवल आधे कारों को हर रोज सड़क पर आने से रोकने से वायु प्रदूषण में ज्यादा कमी नहीं आने वाली है दूसरे, सरकारी कुव्यवस्था को झेल रहे सार्वजनिक परिवहन प्रणाली इस बार इस हालत में भी नहीं है कि दिल्ली सरकार इस बार निजी कारों का सम-विषम का फिर से प्रयोग कर सके। गिनती के बचे दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) और सरकार के अधीन चलने वाली बसों के अलावा अभी स्कूल बसों को सड़कों पर आने नहीं दिया गया है। दिल्ली की जीवन रेखा बनी मेट्रो रेल को सामाजिक दूरी के हिसाब से तमाम ऐहतियात के साथ चलाया जा रहा है। कोरोना से बचाव के लिए जिसे संभव हो रहा है वह अपने वाहनों का प्रयोग कर रहा है। जाहिर है इससे इस कोरोना महामारी के समय भी सड़कों पर भीड़ दिखने लगी है और सामान्य दिनों से उलट उन इलाकों में भी दिन में ही जाम लगने लगा है, जहां पहले किसी कारण से ही जाम लगता था। इस जाम के चलते प्रदूषण ज्यादा हो जाता है और बीच सड़क पर सांस लेना कठिन होने लगा है। केजरीवाल सरकार ने सरकार में आने पर 2016 में दो बार सम-विषम लगाने का कुछ लाभ हुआ, लेकिन बेहतर सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था न होने से उस दौरान लोगों को काफी परेशानी हुई। दिल्ली की बेहिसाब आबादी को प्रदूषण का कारण माना जा रहा है। पहले अवैध औद्यौगिक इलाके, एक राज्य से दूसरे राज्य जाने वाले ट्रक-बस आदि के चलते भी दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण बढ़ाने के कारण माना जाता था। वैसे अभी भी अवैध उद्योग हैं भले उनकी संख्या कम हुई है। दिल्ली सरकार ने प्रदूषण कम करने के लिए किसी भी नये उत्पादन ईकाई (मैनिफैक्चरिंग यूनिट) को लाइसेंस देने पर पाबंदी लगा दी है। दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण की एक बड़ी वजह पराली जलाना भी माना जाता है। हालांकि प्रदूषण में पराली महज दस फीसद कारण है।
दिल्ली की किसी भी समस्या का समाधान करना अकेले दिल्ली के बूते की बात नहीं है। प्रदूषण के संकट के स्थाई समाधान के लिए दिल्ली को केंद्र सरकार और पड़ोसी राज्यों का सक्रिय सहयोग जरूरी है। दिल्ली में सार्वजनिक परिवहन प्रणाली बेहतर हो ताकि सड़कों से निजी वाहनों की संख्या कम की जा सके। सड़कों को जाम से मुक्त करने के लिए ठोस प्रयास हो। दिल्ली में बाहर से आने वाले वाहनों से प्रदूषण कम करने के मानकों पर अमल करवाया जाए। प्रदूषण फैलाने वाले किसी भी उद्योग को दिल्ली में नहीं चलने दिया जाए। पर्यावरण को राजनीतिक मुद्दा के बजाए आमजन के जीवन बचाने का मुद्दा बनाया जाए। अब चालू समाधान नहीं स्थाई समाधान खोजने की जरूरत है। अदालत ने भी इसे आपात स्तर पर लागू करने के निर्देश दिए हैं। हालात हर रोज बेकाबू होते जा रहे हैं। देरी खतरनाक होती जा रही है।
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