खनन आदेश : नफा-नुकसान पर चिंतन जरूरी
अंधाधुंध पेड़ों की कटाई, पहाड़ों को तोड़ने या नदियों से रेत-बजरी निकालने के कारण हुई पर्यावरणीय क्षति से हम सभी वाकिफ हैं, इसके बावजूद यह धंधा बदस्तूर जारी है।
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इन मुददों को लेकर सामाजिक स्तर पर कई प्रकार के आंदोलन भी हुए मगर परिणाम ज्यादातर सिफर ही रहा। अब जब सुप्रीम कोर्ट ने खनन नीति पर ताजा फैसला दिया है कि-खनन पर पूर्णतया रोक नहीं लगनी चाहिए तो इस पर चर्चाओं के दौर शुरू हो गए हैं। साफ है कि इससे उन लोगों को ज्यादा खुशी होगी जिन पर किसी कारण से खनन प्रक्रिया को लेकर रोक लगा दी गई थी।
ज्ञात हो कि राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) ने खनन पर यह रोक लगाई थी, उसी के मददेनजर यह फैसला आया है। इससे पहले भी कई जगहों पर गैर-लाइसेंसधारी संस्थाओं द्वारा अवैध खनन की खबरें आ रही थीं। अब पुन: खनन कारोबार को पंख लगेंगे। मगर इस छूट से कई बार सिस्टम गड़बड़ाने का डर रहता है। अगर पर्यावरणीय नुकसान की बात करें तो दिल्ली से सटे हरियाणा की अरावली की पहाड़ी पर आखिरकार, सरकार को सैकड़ों घरों को उजाड़ना पड़ा। सनद रहे कि यहां के गंभीर पर्यावरणीय संकट को लेकर यह निर्णय लिया गया था। इस कार्रवाई से सरकार या प्रशासनिक कसरत के साथ वहां की जनता का जो आर्थिक नुकसान हुआ, उससे ज्यादा अरावली की पहाड़ी पर लगातार निर्माण कार्य होने अथवा तोड़फोड़ के कारण असंतुलित पर्यावरण से दिल्ली और हरियाणा के निवासी प्रभावित हुए। उन्हें स्वास्थ्य की परेशानियां भी झेलनी पड़ीं। प्रशासन द्वारा अरावली और निलगिरि रेंज के करीब 10 हजार घरों को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत ही गिराया गया था। ये सभी मकान वन क्षेत्र में बने हुए थे। इस कार्रवाई से करीब 30 हजार लोग सड़क पर आ गए थे। इसलिए सुप्रीम कोर्ट को यह भी ख्याल रखना चाहिए कि अगर खनन पर से रोक हटाई जा रही है, तो उसके दुष्परिणाम क्या हो सकते हैं? निश्चित रूप से खनन को लेकर माननीय न्यायालय ने इसे दृष्टिगत रखते हुए यह फैसला लिया होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि खनन पर पूर्णतया रोक लगाने से न केवल राजकोष में राजस्व की कमी होती है, बल्कि बेरोजगारी भी बढ़ती है। राजस्थान में बजरी खनन पर रोक आखिरकार, लंबे समय के बाद हट गई है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने सुरक्षित रखे निर्णय में अधिकृत कमेटी की सभी तरह की सिफारिशों को मानते हुए वैध खनन गतिविधियों को मंजूरी दे दी। इस फैसले को लेकर काफी लंबे समय से खनन कारोबारियों को इंतजार था। असल में प्रदेश की करीब 82 बड़ी बजरी लीज को फिर से बहाल करने से जुड़ी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाया है। अब पुन: प्रतिबंध के करीब 4 साल बाद खनन गतिविधियां शुरू हो सकेंगी। सरकार ने खनन गतिविधियों पर रोक से प्रदेश की जनता को महंगी बजरी मिलने और राजस्व में हानि होने की दलील दी थी। अलग-अलग दलीलों के आधार पर बजरी खनन पर रोक हटने के फायदे भी शीर्ष अदालत के समक्ष गिनाए थे। वहीं बजरी लीज खातेदारों की ओर से भी भविष्य में वैध खनन किए जाने को लेकर सहमति जताई थी। सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई कर रही बेंच ने स्वीकार किया कि इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि जब वैध खनन पर रोक है तब अवैध खनन कुकुरमुत्ते की तरह बढ़ रहा है, और इसका परिणाम हुआ कि रेत माफिया के बीच संघषर्, अपराधीकरण और कई बार लोगों की जान जाने जैसे मामले सामने आते रहते हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि सार्वजनिक बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के निर्माण और सरकारी या निजी निर्माण गतिविधियों के लिए रेत-बजरी जरूरी है।
वैध खनन पर प्रतिबंध से अवैध खनन को बढ़ावा मिलता है, और राजकोषीय घाटा उठाना पड़ता है। ऐसे में खनन पर पूर्णतया रोक लगाना उचित रास्ता नहीं है। कहते हैं कि मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड, झारखंड समेत दर्जनों राज्यों में अवैध खनन का कारोबार बेरोकटोक चलता है। अक्सर प्रशासन या कानून से नजरें बचा कर यह काम होता है, और मोटी रकम कमाई जाती है। इनमें ज्यादातर गैर-लाइसेंसधारी ठेकेदार होते हैं, जिन्हें न तो किसी जान-माल से मतलब है, और न ही पर्यावरण की चिंता। इन्हें अपने धंधे से केवल पैसा बनाना होता है। इसलिए कहीं ऐसा न हो कि इस आदेश से किसी चीज को बचाने के चक्कर में जान-माल या पर्यावरण का बड़ा नुकसान हो जाए। इस पर गंभीरता से सोच-विचार करने की जरूरत है।
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