वैश्विकी : एक नरेन्द्र मोदी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए पिछला एक पखवाड़ा विदेशी नेताओं से प्रत्यक्ष रूप से मिलने और विश्व मुद्दों पर उनके साथ चर्चा करने का महत्त्वपूर्ण अवसर रहा।
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कोरोना महामारी के कारण मोदी के विश्व चक्रमण पर विराम लग गया था। मोदी ने इटली और ब्रिटेन में जी-20 और कॉप 26 शिखर सम्मेलनों में महामारी, अर्थव्यवस्था की बहाली और जलवायु परिवर्तन के बारे में भारत का पक्ष मजबूती से रखा। जलवायु परिवर्तन के संबंध में मोदी की यह घोषणा की भारत वर्ष 2017 तक कार्बन उत्सर्जन को शून्य कर देगा, ऐतिहासिक माना जा रहा है। इन दोनों सम्मेलनों में भारत की बात बहुत गंभीरता से सुनी गई तथा मोदी ने अपनी विश्व शख्सियत का लोहा मनवाया। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने कहा कि एक सूर्य, एक वि, एक ग्रिड, एक नरेन्द्र मोदी। किसी भारतीय प्रधानमंत्री के लिए इस तरह के प्रशंसा वाक्य शायद ही पहले सुनने को मिले हों। पिछले 7 वर्ष के दौरान भारत की विदेश नीति पर मोदी के व्यक्तित्व की छाप रही है। यह बहस का मुद्दा हो सकता है कि इस तरह की व्यक्ति आधारित विदेश नीति कितनी उपयोगी है। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने मोदी के इन तौर-तरीकों की आलोचना करते हुए कहा था कि व्यक्तिपरक विदेश नीति उचित नहीं है। वहीं अन्य लोगों के अनुसार व्यक्तिगत घनिष्ठता (केमिस्ट्री) विदेश नीति के लक्ष्यों को आगे बढ़ाती है। विदेश नीति का यह तौर-तरीका कम-से-कम चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के संदर्भ में कारगर साबित नहीं हुआ। अट्ठारह प्रयासों के बावजूद मोदी चीन के राष्ट्रपति के साथ विश्वास आधारित संबंध कायम नहीं कर पाए। इतना ही नहीं अब तो दोनों नेताओं के बीच सीधी मुलाकात कब होगी इस पर भी सवालिया निशान लग गया है।
पूर्वी लद्दाख में जहां चीन के साथ गतिरोध कायम है, वहीं अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे से उत्पन्न संभावित खतरों के बारे में अनुमान लगाया जा रहा है। करीब दो महीने के बाद अफगानिस्तान के हालात किस और मुड़ेंगे यह कहना मुश्किल है। पाकिस्तान ने तालिबान के रूप में एक शक्तिशाली और व्यापक आतंकी संसाधन हासिल किया है। पाकिस्तान को अफगानिस्तान में शांति स्थापित रहे; इससे अधिक ध्यान इस बात पर है कि जिहादी लड़ाकुओं को कश्मीर से कैसे भेजा जाए? यह विडंबना है कि पाकिस्तान आज अफगानिस्तान में शांति उपाय का स्वयंभू सूत्रधार बन गया है। पिछले दिनों उसने अफगानिस्तान के पड़ोसी देशों के साथ सघन कूटनीतिक अभियान चलाया। पाकिस्तान के रक्षा और विदेश नीति विशेषज्ञों ने यह दावा किया कि भारत अफगानिस्तान के मामलों में अलग-थलग पड़ गया है। भारत में भी एक तबका ऐसा है, जो अफगानिस्तान के संबंध में देश की विदेश नीति को असफल करार दे रहा है। इसी पृष्ठभूमि में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की पहल पर क्षेत्रीय देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक नई दिल्ली में 20 नवम्बर को आयोजित है। इस बैठक में अफगानिस्तान के सभी पड़ोसी और आसपास के देश शामिल होने वाले हैं। रूस और ईरान ने भी सम्मेलन में शामिल होने की पुष्टि की है। यह इस बात का संकेत है कि अफगानिस्तान के संदर्भ में भारत की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। जाहिर है कि अजीत डोभाल की यह पहल पाकिस्तान के गले के नीचे नहीं उतरी।
पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मोईद यूसुफ ने कहा कि पाकिस्तान नई दिल्ली बैठक में भाग नहीं लेगा। उन्होंने कटाक्ष किया कि ‘विघ्न पैदा करने वाला देश (भारत) शांति का दूत नहीं बन सकता।’ यह कथन पाकिस्तान की खीझ प्रकट करता है। नई दिल्ली बैठक के दौरान अजीत डोभाल अफगानिस्तान के घटनाक्रम को पाकिस्तान की ओर से भारत के विरुद्ध दशकों से चलाए जा रहे सीमा पार आतंकवाद से जोड़ने का प्रयास करेंगे। भारत के पास पाकिस्तान के आतंकी हथकंडों और प्रमाणिक और अपार सबूत मौजूद हैं। इन तत्वों की रोशनी में पाकिस्तान को आतंकवाद के विरुद्ध चलाए जा रहे अभियान में एक विश्वस्त सहयोगी नहीं माना जा सकता। नई दिल्ली बैठक के बाद यह देश कौन सी राजनीति अपनाते हैं अथवा कार्य योजना तैयार करते हैं; यह क्षेत्र में शांति और स्थायित्व कायम करने की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होगा।
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