सामयिक : जश्न की जहरीली सोच

Last Updated 02 Nov 2021 03:55:09 AM IST

टी20 में भारत के विरुद्ध पाकिस्तान की जीत पर उन्मादित जश्न मनाने वालों के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई शुरू हो चुकी है।


सामयिक : जश्न की जहरीली सोच

उत्तर प्रदेश तथा कश्मीर में कई गिरफ्तारियां हुई है। दिल्ली में भी छानबीन चल रही है। इसमें भी वे लोग इन गिरफ्तारियों के विरु द्ध खड़े हो गए हैं, जिन्होंने जश्न मनाने को सही ठहराया था। सच कहें तो पाकिस्तान की जीत और भारत की हार के बाद जो दृश्य बना वह भयभीत करने वाला था।
किसी टीम की जीत पर बधाई देना, तालियां बजाना सभ्य मानवीय व्यवहार की श्रेणी में आएगा। पाकिस्तान की विजय के बाद जश्न मनाने का समर्थन करने वाले यही तर्क दे रहे हैं कि खेल को खेल भावना से लिया जाना चाहिए। बिल्कुल सही। खेल खेल है और जो टीम जीता उसे शाबासी मिलनी चाहिए। क्या  टी 20 विश्व कप में भारत के विरुद्ध पाकिस्तान की विजय पर मनाने वाले जश्न की तस्वीरें खेल भावना से दी गई शाबाशी के ही द्योतक हैं? हम सच नहीं देखना चाहते तो अलग बात है अन्यथा सब कुछ सामने है। एक भी तस्वीर खेल भावना से शाबाशी देने वाली नहीं। खेल भावना से विजय पर शाबाशी देने में पटाखे नहीं फोड़े जाते, पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे नहीं लगते, टेबल पर चढ़कर रूमाल उछाल कर कूदा नहीं जाता..। तो इसे क्या माना जाए?

जिन क्षेत्रों में पाकिस्तान की जीत के जश्न मनाए गए उनमें भारत की जीत के बाद शायद ही कभी ऐसे दृश्य दिखे हों। अगर यह खेल भावना का समर्थन है तो भारत इसके पहले कई टीमों से हारा है, लेकिन तब तो कभी ऐसा जश्न नहीं मनाया गया। बांग्लादेश से ही भारत हारा जो मुस्लिम बहुल देश है। तब ऐसा जश्न क्यों नहीं मनाया गया? वास्तव में पाकिस्तान की विजय पर मना रहे जश्न के वीडियो में साफ तौर पर उन्माद दिखाई देता है। सोशल मीडिया पर भी यह उन्माद साफ दिखाई दे रहा था। उन्माद किस चीज का हो सकता है इसका विश्लेषण करिए। कश्मीर में पाकिस्तान समर्थक हैं यह कोई छिपा रहस्य नहीं है। धारा 370 हटाने तथा उसके पूर्व और बाद में की गई सुरक्षा व्यवस्था से वे तत्काल पस्त हुए हैं पर खत्म नहीं हुए। वे निराश हैं कि न पाकिस्तान कश्मीर में पहले की तरह दखल दे पा रहा और न उन्हें खुलकर भारत विरोधी गतिविधियों में भाग लेने का अवसर मिल रहा है। इसमें उन्हें पाकिस्तान की भारत को पराजित कर देने जैसा संतोष मिल रहा है तो उनकी बुद्धि पर तरस ही आनी चाहिए। पाकिस्तान के गृह मंत्री शेख राशिद की प्रतिक्रिया को जरूर याद रखिए। उन्होंने इस विजय को पाकिस्तान ही नहीं संपूर्ण दुनिया और भारत के मुस्लिम कौम की जीत घोषित कर दिया। वे समूची मुस्लिम कौम को बधाई दे रहे थे और भारत के मुसलमानों का नाम लेकर अलग से। एक पाकिस्तानी कमेंटेटर कुफ्रकी हार बता रहा था। पाकिस्तान का गृह मंत्री टी 20 जैसे सामान्य क्रिकेट के खेल को अगर मजहबी रूप देता है और इसकी जीत हार को मजहब की जीत हार बना देता है तो इसका असर होना है। पाकिस्तान के साथ दुनिया और भारत में भी उसे इस रूप में लेने वाले लोग हैं।
जब आतंकवाद के लिए मजहब के नाम पर जान न्योछावर करने के लक्ष्य से सैकड़ों,  हजारों आतंकवादी बनने को तैयार हो जाते हैं तो यह मानने का कोई कारण नहीं कि शेख राशिद की तरह इसे मजहब या कौम की जीत हार मानने वाले भी होंगे। ये हर जगह होंगे। भारत इससे अछूता नहीं हो सकता। भारत-पाकिस्तान के क्रिकेट मैच में हमारे देश में भी अलग किस्म की भावना रही है। यह गलत है, लेकिन इसमें मजहब या कौम की जीत हार की ऐसी घृणित भावना नहीं रही है। पाकिस्तान के विरुद्ध आक्रामक राष्ट्रवाद का भाव रहता है और उससे क्रिकेट भी अछूता नहीं रहा। हालांकि विवेकशील लोग हमेशा ऐसी भावनाओं पर काबू रखने तथा खेल को खेल की भावना से लेने की वकालत करते रहे हैं और भारत में ऐसा व्यवहार करने वालों की संख्या बहुत ज्यादा है। पाकिस्तान की स्थिति इसके उलट है। शेख राशिद  बड़बोले नेता हैं पर उन्हें इमरान ने गृह मंत्री बनाया तो जाहिर है उनके इस गुण को सही माना। इमरान या दूसरे नेता क्रिकेट को मुसलमान कौम की विजय नहीं मानते तो इसका खंडन करते। जाहिर है, यह समूची पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान की सोच थी, जिसे शेख राशिद ने अभिव्यक्त किया। इंग्लैंड और न्यूजीलैंड ने सुरक्षा का हवाला देते हुए जब पाकिस्तान के साथ खेलने से इनकार  कर दिया और निर्धारित श्रृंखलाएं रद्द हो गई तब भी शेख राशिद और पाकिस्तान के नेता, क्रिकेटर सब इसके लिए भारत को जिम्मेदार ठहराने लगे थे। इमरान सरकार के लिए अपमानजनक स्थिति थी और यह राष्ट्र के लिए भी अपमान की बात थी। विरोधियों ने इसे बड़ा मुद्दा बना दिया।
भारत के मुसलमानों के लिए यह मानने का कोई कारण नहीं है कि पाकिस्तान की विजय उनकी विजय है। किंतु एक छोटा समूह ऐसा है तभी तो इस तरह का जश्न सामने आया मानो भारत की पराजय से इनको कोई मुंहमांगी मुराद मिल गई हो। इसका हर स्तर पर विरोध होना चाहिए, क्योंकि इसमें भारत विरोध या भारत के अपमानित होने का भाव निहित है। कुछ लोग निश्चित रूप से इसे मजहबी जीत के रूप में भी ले रहे होंगे। ऐसे तत्वों को हतोत्साहित किया ही जाना चाहिए। दुख और चिंता की बात यह है कि टीवी डिबेट या विमर्श में इसको हतोत्साहित करने की बजाय अजीब ढंग के कुतर्क दिए जा रहे हैं। मसलन, पाकिस्तान के साथ क्रिकेट खेला ही क्यों गया? प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मैच को रद्द क्यों नहीं करवाया? अगर मैच रद्द नहीं कराया गया तो भी पाकिस्तान की जीत का जश्न मनाना सही कैसे हो सकता है? सबसे खतरनाक कुछ राजनीतिक दलों का रवैया है। भारत की राजनीति किस तरह के आत्मघाती भ्रम की गिरफ्त में है यह कुछ पार्टी प्रवक्ताओं द्वारा टीवी पर दी जा रही प्रतिक्रियाओं से पता चलता है। वे ऐसी भयानक प्रवृत्ति की निंदा की बजाय सरकार को ही आरोपित करने में लगे रहे।
इनसे यही कहना होगा कि राजनीति करिए किंतु इस तरह देश विरोध और मजहबी उन्माद की भावना से एक खेल की जीत-हार को लेकर पाकिस्तान के समर्थन में जश्न मनाने का खुलकर विरोध करना आपका भी दायित्व है। ऐसा न करने से इस तरह के अतिवादियों को प्रोत्साहन मिलता है और फिर यह कभी भयावह रूप में सामने आ सकता है। जश्न मनाने वालों के इरादे साफ थे और इनके खिलाफ कठोर कानूनी कार्रवाई बिल्कुल वाजिब है ताकि भविष्य में इस मानसिकता के लोग ऐसी हरकतों से परहेज करें।

अवधेश कुमार


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