उत्तर प्रदेश : सिर्फ भूमिका बदली है भाव वही
तुलसीदास ने रामचरित मानस में लिखा है कि- परहित सरिस धरम नहीं भाई। अर्थात दूसरे के हित से बड़ा कोई धर्म (पुण्य) नहीं होता है। अगर यह हित समाज के सबसे जरूरतमंद वर्ग से जुड़ा हो और समय निकालकर बार-बार किया जाता हो तो यह संबंधित व्यक्ति का बड़प्पन है।
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योगी आदित्यनाथ करीब ढाई दशक से यही कर रहे हैं। गोरक्षपीठ के उत्तराधिकारी, पीठाधीर और अब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में भी। पद के अनुसार सिर्फ भूमिका बदली और सेवा क्षेत्र के फलक का विस्तार हुआ है। साथ ही जिम्मेदारियां बढ़ी हैं। अलबत्ता अब उनके ये कार्य देश एवं विदेश की मीडिया की सुर्खियां बनते हैं। उनके सेवा कार्य का यह विस्तार सिर्फ वनटांगियां बस्तियों तक ही नहीं सीमित है। दीवाली के दिन वनटांगियों में खुशियां बांटने के बाद अमूमन वह बेतियाहाता मोहल्ले के चंदल्रोक कुष्ठाश्रम भी जाते रहे हैं। फल-मिठाई के साथ। सांसद रहते हुए उन्?होंने वहां अपनी निधि से मूलभूत सुविधाओं के लिए काम भी कराए थे। गोरखनाथ मंदिर में मकर संक्रांति से लगने वाले माह भर के खिचड़ी मेले के दौरान लाखों श्रद्धालु खिचड़ी के रूप जो चावल-दाल बाबा गोरखनाथ को चढ़ाते हैं; उसके एक हिस्से से वहां के श्रीराम वनवासी छात्रावास के बच्चों को साल भर भोजन की व्यवस्था की जाती है।
मंदिर परिसर स्थित संस्कृत विद्यालय के बच्चे, साधु-सन्त भी इसी से सुबह-शाम प्रसाद पाते हैं। जरूरत के अनुसार यह कुछ और ऐसी ही अन्य संस्थाओं को भी जाता है। ऐसी संस्थाओं को योगी अपनी ओर से भी मदद करते रहे हैं। पास ही के मोहल्ले का अंध विद्यालय इसका सबूत है। पूर्वाचल के मासूमों के लिए करीब चार दशकों तक काल बनी इन्सेफेलाइटिस के लिए सड़क से लेकर संसद तक किया गया उनका संघर्ष बेमिसाल है।
मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने पूर्वाचल के मासूमों के लिए काल बनी इंसेफेलाइटिस के रोकथाम के लिए जो भी संभव था सब किया। नतीजतन रोगियों और मौतों की संख्या में अप्रत्याशित कमी आई। अभी पिछले दिनों एक दिन में रिकॉर्ड 9 मेडिकल कॉलेजों के उद्घाटन करने आए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी इस बाबत और चिकित्सा क्षेत्र की बेहतरी के लिए योगी आदित्यनाथ के संघर्ष की सराहना की थी। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने पिछले दिनों लखनऊ यात्रा के दौरान योगी आदित्यनाथ के कार्यों की प्रशंसा की थी। पीड़ितों की मदद के लिए उफनती नदी में जोखिम लेकर जाना कोई नई बात नहीं। 1998 में जब गोरखपुर में जल पल्रय जैसे हालात थे तब भी योगी आदित्यनाथ ने यही किया था। क्या कभी कोई बाढ़ पीड़ित उस आपदा के दौरान यह सोच सकता है कि उसके बच्चे का ऐसा जन्म दिन मनेगा या अन्नप्रासन, जिसमें देश के सबसे बड़े प्रदेश के मुख्यमंत्री भी शामिल होंगे, पर योगी ने बाढ़ के दौरान इसे भी मुमकिन कर दिया। उनकी इस तरह की संवेदना के ढेरों उदाहरण हैं। उदाहरण के लिए दो साल पहले एक बच्ची जो सुन नहीं सकती थी। मुख्यमंत्री की मदद से उसके कान का ऑपरेशन हुआ। जब वह पूरी तरह स्वस्थ्य हुई और सुनने लगी तो उसे मुख्यमंत्री आवास पर आमंत्रित किया गया। उसने खुद बेहद भावुक होकर कहा था कि महाराज जी अब मैं सुन सकती हूं।
जनता दरबार में आए दिन इस तरह के जरूरतमंद आते हैं, जिनकी मुख्यमंत्री तुरंत मदद करते हैं या अधिकारियों को इस बाबत निर्देश देते हैं। कई लोगों के काम तो मुख्यमंत्री ऑन द स्पॉट ही कर देते हैं। कुछ महीने पहले बलरामपुर के दिव्यांग लालाराम ने जनता दरबार के जरिए ट्राई साइकिल पाने के बाद कहा था कि आज मैं बेहद खुश हूं। कुछ ऐसा ही भाव हाथरस की शांति देवी ने निराश्रित पेंशन मिलने पर व्यक्त किया था। मुख्यमंत्री से वर्चुअल बातचीत के दौरान शांति देवी ने कहा था कि रकम छोटी है, पर भरोसा बड़ा है। इतने से ही इस उम्र में अपनी रोजमर्रा की जरूरतों के लिए किसी के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ेगा।
जरूरतमंदों के प्रति यही सेवा भाव विवेकाधीन कोटे से गंभीर रोगों से पीड़ति मरीजों के प्रति दिखता है। दिल के गंभीर रोग से पीड़ति गोरखपुर के शेषपुर मोहल्ले की रहने वाली रु चि गुप्ता ने इलाज के लिए तुरंत मदद पाने के बाद कहा था कि, ‘मेरी तो अब हर सांस बाबाजी के नाम है।’ इसी क्रम में योगी ने अपने अब तक के कार्यकाल में 71 हजार से अधिक लोंगों को करीब 11.50 अरब रुपये की मदद कर चुके हैं। यह सिलसिला लगातार जारी है।
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