सैटेलाइट इंटरनेट : फायदे और संभावनाएं
हमारे देश में अंतरिक्ष कार्यक्रम प्रत्यक्ष तौर पर बढ़ रहे हैं। सरकारी और निजी क्षेत्र की कई कंपनियां अंतरिक्ष में उपलब्ध संभावनाओं का इस्तेमाल करते हुए भारतीय उपभोक्ताओं के लिए कई महत्त्वाकांक्षी योजनाओं पर काम कर रही हैं।
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उदाहरण के लिए, इसरो अंतरिक्ष में यात्रियों को ले जाने वाले महत्त्वाकांक्षी गगनयान मिशन में निजी क्षेत्र की कंपनियों के साथ मिलकर काम कर रहा है। पिछले महीने भारत सरकार ने अंतरिक्ष क्षेत्रों में काम करने की इच्छुक कंपनियों की मदद के लिए सिंगल विंडो नोडल एजेंसी के रूप में इन-स्पेस की स्थापना को मंजूरी दी है। यह भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र को व्यवसाय के लिए अनुकूल बनाने की तरफ एक महत्त्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। सैटेलाइट इंटरनेट भी अंतरिक्ष पर आधारित एक अहम व्यवसाय है, और कई वैस्विक कंपनियां इस व्यवसाय में दिलचस्पी भी दिखा रही हैं।
हमारे देश के अधिकांश शहरी क्षेत्र में इंटरनेट पहुंच चुका है, और धीरे-धीरे उपनगरीय और ग्रामीण क्षेत्रों में भी इंटरनेट पहुंचाने की योजना पर काम चल रहा है, लेकिन दूर-दराज के कुछ ऐसे भी पर्वतीय, पहाड़ी, तटीय और द्वीपीय क्षेत्र हैं, जहां इंटरनेट को ले जाना आसान नहीं है। सामान्य भौगोलिक क्षेत्र में प्रभावी होने के साथ ही सैटेलाइट इंटरनेट, सुदूर और भौगोलिक तौर पर कठिन क्षेत्रों में इंटरनेट पहुंचाने के लिए प्रभावी विकल्प बनकर उभरा है। सैटेलाइट इंटरनेट एक प्रकार का कनेक्शन है, जो सैटेलाइट से इंटरनेट सिग्नल प्राप्त करता है।
सैटेलाइट इंटरनेट पृथ्वी की परिक्रमा करने वाले कृत्रिम सैटेलाइट के साथ संचार करने के लिए रेडियो तरंगों का उपयोग करता है। डेटा को भेजने और पुनप्र्राप्त करने के लिए एक विशेष संचार नेटवर्क का उपयोग किया जाता है। इंटरनेट सेवा प्रदाता (आईएसपी) अंतरिक्ष में स्थित उपग्रह को फाइबर इंटरनेट सिग्नल भेजता है। इंटरनेट सिग्नल सैटेलाइट डिश की तरफ आता है, और सैटेलाइट डिश उस सिग्नल को पकड़ लेता है। सैटेलाइट डिश मॉडेम से जुड़ा है, जो कंप्यूटर को इंटरनेट सिग्नल से जोड़ता है।
सैटेलाइट इंटरनेट को लेकर बहुत सारी भ्रांतियां हैं, जिनको समझ लेना जरूरी है। लोगों को लगता है कि यह बहुत धीमा होता है, और संचार में ज्यादा समय लगता है, लेकिन यह सच नहीं है। सैटेलाइट इंटरनेट केबल या अन्य ब्रॉडबैंड सेवाओं जैसा ही तेज है, तकनीकी उन्नति से 100 एमबी प्रति सेकेंड की गति प्राप्त की जा चुकी है, जिसको 1 जीबी प्रति सेकेंड तक बढ़ाने की बात चल रही है। सैटेलाइट इंटरनेट से देश के ग्रामीण और सुदूर इलाकों में डायल अप से तेज इंटरनेट की उपलब्धता सुनिश्चित होगी। सैटेलाइट इंटरनेट को लगाना और शुरू करना अन्य इंटरनेट माध्यमों से आसान है, और वायरलेस होने के कारण अन्य माध्यमों की अपेक्षा नेटवर्क विच्छेद की संभावना बहुत कम होती है। अभी सारी बड़ी सेवा प्रदाता कंपनियां इस बाजार पर नियंत्रण की होड़ में हैं, जिसके कारण इस क्षेत्र में त्वरित नवीनीकरण होंगे और सेवाएं सुगम बनेंगी।
प्रतिस्पर्धा और नवीनीकरण से आम उपभोक्ताओं को फायदा तो होता ही है। भारतीय सैटेलाइट इंटरनेट बाजार में एयरटेल के सुनील मित्तल और रिलायंस जिओ के मुकेश अंबानी को विश्व के बड़े व्यापारी एलन मस्क और जेफ बेजोस टक्कर देने की तैयारी कर रहे हैं। फिलहाल, सुनील मित्तल के भारती ग्लोबल की नियंत्रण वाली वनवेब को टेलकॉम मंत्रालय से लाइसेंस मिल चुका है। कंपनी 1 गीगा बाइट और उससे अधिक प्रति सेकेंड की गति से इंटरनेट सेवा प्रदान करने के लिए पृथ्वी के निम्न कक्षा में सैटेलाइट डालने की योजना बना रही है।
ये सैटेलाइट पृथ्वी से लगभग 600 मील की दूरी पर अवस्थित होंगे। अभी कुछ सप्ताह पहले ही वनवेब और अमेरिकन ह्यूज नेटवर्क ने एक रणनीतिक समझौता किया है, जिसके तहत दोनों कंपनियां मिलकर देश के ग्रामीण और दूरदराज के हिस्सों के बड़े, मझोले, और छोटे व्यवसायों, सरकारी क्षेत्र, इंटरनेट सेवा प्रदाता एवं टेल्को को इंटरनेट सेवाएं प्रदान करेंगी। एलन मस्क ने भी घोषणा की है, वह अपने महत्त्वाकांक्षी स्टारलिंक प्रोजेक्ट को भारत में लाना चाहते हैं। उनकी कंपनी भारत के सरकारी नियम-कानूनों का अध्ययन कर रही है। मस्क की कंपनी स्पेसेक्स ने भारत में संजीव भार्गव को कंपनी का निदेशक भी नियुक्त कर दिया है। देश के सबसे बड़ा खुदरा विक्रेता अमेजन भी अपने प्रोजेक्ट कुइपर के साथ सैटेलाइट इंटरनेट व्यवसाय में हिस्सा लेना चाहता है। इससे अमेजन का खुदरा व्यवसाय सुदूर गांवों तक पहुंचेगा, और कुल उपभोक्ताओं की संख्या में वृद्धि होगी। कुल मिलाकर सैटेलाइट इंटरनेट व्यवसाय में अभी भरपूर सम्भावनाएं हैं, और भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसका दीर्घकालिक असर दिखेगा।
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