बांग्लादेश में हिंसा : सुनियोजित साजिश

Last Updated 21 Oct 2021 01:20:37 AM IST

भारत और पाकिस्तान के बंटवारे की कहानी नोआखाली के जिक्र बिना अधूरी मानी जाती है। 1946 में लक्ष्मी पूजन के दिन यहां भीषण सांप्रदायिक दंगे शुरू हुए थे।


बांग्लादेश में हिंसा : सुनियोजित साजिश

उस समय जिन्ना के डायरेक्ट एक्शन डे से सबसे ज्यादा प्रभावित इस क्षेत्र में हजारों हिंदुओं का कत्लेआम कर दिया गया था। सात दशक से ज्यादा का समय बीत जाने के बाद दुनिया में बहुत कुछ बदला है लेकिन मौजूदा बांग्लादेश के चटगांव डिवीजन के नोआखाली जिले में स्थितियां जस की तस नजर आती हैं। इस साल दुर्गा पूजा पर नोआखाली में एक बार फिर हिंदुओं को बड़े पैमाने पर निशाना बनाया गया।  
दुर्गा पूजा पर हिंदुओं और उनके धर्म स्थलों पर हमले इतने सुनियोजित थे कि पुलिस प्रशासन और सरकार के नुमाइंदे प्रभावित हिंदुओं को राहत देने में नाकामयाब रहे। 1946 में महात्मा गांधी दिल्ली से पंद्रह सौ किलोमीटर दूर सांप्रदायिकता की आग में जल रहे पूर्वी और पश्चिमी बंगाल में अमन बहाली की कोशिशों में जुटे थे और उन्होंने नोआखाली में लंबा समय बिताया था, इस दौरान उनके साथ जेबी कृपलानी, सुचेता कृपलानी, राममनोहर लोहिया, सरोजिनी नायडू जैसे नेता था जिनकी अमन बहाली की कोशिशें कामयाब रही थीं। लेकिन मौजूदा अवामी लीग की सरकार के नुमाइंदे ऐसी कोई कोशिश करते नहीं दिख रहे हैं। परिणाम है कि नोआखाली समेत जेसोर, देबीगंज, राजशाही, मोईदनारहाट, शांतिपुर, प्रोधनपारा, आलमनगर, खुलना, रंगपुर और चटगांव जैसे अहम इलाकों से हिंदू पलायन करने को मजबूर हो गए हैं। पलायन के पीछे कट्टरतावाद है जिसके परिणामस्वरूप अगले कुछ सालों में इस देश के हिंदूविहीन होने का दावा किया गया है। ढाका यूनिर्वसटिी के प्रोफेसर डॉ. अबुल बरकत का एक शोध 2016 में सामने आया था जिसमें दावा किया गया है कि करीब तीन दशक में बांग्लादेश से हिंदुओं का नामोनिशान मिट जाएगा। शोध के मुताबिक हर दिन अल्पसंख्यक समुदाय के औसतन 632 लोग बांग्लादेश छोड़कर जा रहे हैं। ऐसा ही रहा तो अगले 30 सालों में इस देश से करीब-करीब सभी हिंदू चले जाएंगे।

यह भी बेहद दिलचस्प है कि बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम में हिंदुओं ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था। इसी से 1971 में पूर्वी पाकिस्तान कहे जाने वाले और मौजूदा बांग्लादेश को पाकिस्तान के अत्याचारों से मुक्ति मिली थी। उस समय माना गया था कि बांग्लादेश भारत की तरह ही समावेशी विचारों वाला लोकतांत्रिक, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष गणराज्य होगा। लेकिन बांग्लादेश के राष्ट्रपिता मुजीबुर्रहमान की हत्या के बाद स्थितियां तेजी से बदल गई। बाद के शासकों जियाउर रहमान और जनरल एचएम इरशाद के सैन्य शासनकाल में देश का तेजी से इस्लामीकरण हुआ। खालिदा जिया जैसी नेताओं ने जमात-ए-इस्लामी जैसे संगठनों को मजबूती दी जिससे बांग्लादेश में कट्टरता को बढ़ावा मिला। इसके घातक नतीजे यहां हिंदुओं को भोगने पड़ रहे हैं।   
पिछले कुछ वर्षो से बांग्लादेश में अवामी लीग का शासन है और प्रधानमंत्री शेख हसीना को हिंदू अल्पसंख्यकों के प्रति उदार माना जाता है। लेकिन देश में कोई निर्णायक बदलाव देखने में नहीं आए हैं, जिनके दीर्घकालीन प्रभाव पड़ सकें खासकर संपत्ति नियमों को लेकर। गौरतलब है कि पाकिस्तान और बांग्लादेश से हिंदुओं के पलायन का प्रमुख कारण संपत्ति रही है जिस पर कब्जा करने के लिए मुस्लिमों द्वारा अक्सर सुनियोजित रूप से उन्हें निशाना बनाया जाता है।1965 में पाकिस्तान सरकार ने शत्रु संपत्ति अधिनियम बनाया था, जिसे अब वेस्टेड प्रॉपर्टी एक्ट के नाम से जाना जाता है। भारत के साथ जंग में हार के बाद अमल में लाए गए इस कानून के तहत 1947 में पश्चिमी और पूर्वी पाकिस्तान से भारत गए लोगों की अचल संपत्तियों को शत्रु संपत्ति घोषित कर दिया गया था। बांग्लादेश में ‘शत्रु संपत्ति अधिनियम’ की वजह से लाखों हिंदुओं को अपनी जमीनें गंवानी पड़ी थीं। प्रो. अबुल बरकत के अनुसार, वेस्टेड प्रॉपर्टी एक्ट की वजह से बांग्लादेश में 1965 से 2006 के दौरान अल्पसंख्यक हिंदुओं के स्वामित्व वाली 26 लाख एकड़ भूमि दूसरों के कब्जे में चली गई। 2001 में अवामी लीग की सरकार ने ‘वेस्टेड प्रॉपर्टी एक्ट’ में बदलाव कर इसे ‘वेस्टेड प्रॉपर्टी रिटर्न एक्ट’ कर दिया। इस फैसले का मकसद बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों को उनकी अचल संपत्तियों का लाभ दिलाना था। लेकिन इसका दूसरा पहलू यह भी है कि अदालत के निर्णय के बाद भी संपत्ति का शांतिपूर्ण हस्तांतरण मुमकिन नहीं होता।
इस समय ईशनिंदा की अफवाह फैला कर अल्पसंख्यक हिंदुओं को बांग्लादेश से भागने को मजबूर करने की सुनियोजित साजिश को बड़े पैमाने पर अंजाम दिया जा रहा है, और इसमें सबसे बड़ा मददगार बांग्लादेश का प्रतिबंधित राजनीतिक संगठन जमात-ए-इस्लामी है। यह दल बांग्लादेश में इस्लामी शासन  स्थापित करना चाहता है, इसे पाकिस्तान का हिमायती माना जाता है। यहां तक कि 1971 में जब बांग्लादेशी पाकिस्तानी सेना के अत्याचारों का सामना कर रहे थे तब भी यह दल पाकिस्तान का समर्थन कर रहा था। हाल में तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जे का भी इस संगठन ने समर्थन किया था।
इस साल मार्च में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब बांग्लादेश की यात्रा पर गए थे तब भी उनकी यात्रा का विरोध बड़े पैमाने पर हुआ था और इसमें जमात-ए-इस्लामी की भूमिका खास मानी जाती है। देश में प्रतिबंध लगने के बाद यह अन्य कट्टरपंथी ताकतों को मजबूत करने में जुटा है, और इस्लामीकरण को बढ़ावा दे रहा है।  2010 में जमात-ए-इस्लामी समर्थित संगठन  हिफाजत-ए-इस्लाम ने बांग्लादेश में महिलाओं की शिक्षा का विरोध बड़े पैमाने पर किया था। इस समय बांग्लादेश में तकरीबन पौने दो करोड़ हिंदू हैं, और इन्हें देश के संपूर्ण इस्लामीकरण में कट्टरपंथी बड़ी बाधा समझ रहे हैं। अफगानिस्तान में तालिबान के मजबूत होने से इस्लामिक कट्टरतावाद को बढ़ावा मिला है, बांग्लादेश का हालिया घटनाक्रम इसी का उदहारण है। आतंकी संगठन आईएसआईएस को विश्वास है कि दक्षिण एशिया में उसका प्रभाव मजबूत करने में दुनिया का सबसे घनी आबादी वाला देश बांग्लादेश खास मददगार हो सकता है। 2015 में शियाओं के जुलूस और विदेशी नागरिकों पर ढाका में जो हमले हुए थे, उसमें इस्लामिक स्टेट का हाथ होने की बात सामने आई थी। बहरहाल, बांग्लादेश में हिंदुओं का उत्पीड़न समूचे दक्षिण एशिया के लिए नये खतरे का संकेत है।

डॉ. ब्रह्मदीप अलूने


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