आईएनएस विराट : ऐसा बर्ताव ठीक नहीं

Last Updated 19 Feb 2021 02:00:28 AM IST

नौसेना के अधिकारियों, जवानों के साथ-साथ हजारों भारतीयों के लिए भी सुप्रीम कोर्ट का फैसला दिल को सकून देने वाला है, जिसके द्वारा तत्कालिक प्रभाव से आईएनएस विराट को तोड़ने पर रोक लगा दी गई है।


आईएनएस विराट : ऐसा बर्ताव ठीक नहीं

6 मार्च 2017 को आईएनएस विराट युद्वपोतके नौसेना से रिटायरमेंट के बाद सरकार के पास इसे संग्रहालय बनाने की कोई ठोस नीति न होने के कारण लोगों की मांग के बावजूद सरकार ने असंवेदनशीलता का परिचय देते हुए इसे कबाड़ में 38.54 करोड़ रुपये में बेच दिया था।
आईएनएस विराट सिर्फ एक युद्धपोत ही नहीं है बल्कि भारतीय नौसेना के गौरवाली इतिहास की पहचान और संस्कृति का अहम हिस्सा भी है। इसके बिना हिंदुस्तान के नौसेना के इतिहास की गाथा अधूरी ही रहेगी। आज से चार माह पूर्व जब यह युद्वपोत आईएनएस विराट को रिसाइकलिंग के लिए गुजरात के अलंग यार्ड में ले जाया जा रहा था तो यह घटना हजारों भारतीयों के साथ-साथ नौसेना से जुड़े लोगों को बहुत अधिक विचलित कर रही थी, जिन्होंने अपने जीवन के अहम वर्ष इसके साथ सांझा किए थे। उनके लिए यह सिर्फ एक वाटॅरशिप ही नहीं थी बल्कि यह उनकी अपनी पहचान थी। उनकी हजारों यादें और अनेकों कहानियां इससे जुड़ी हुई हैं। भारतीय नौसेना में 30 वर्षो की सेवाएं देने वाले आईएनएस विराट ने भारतीय नौसेना में शामिल होने से पहले 27 वर्ष ब्रिटिश नौसेना के लिए भी कार्य किया था।

57 वर्ष का सेवाएं देने के कारण इस उम्रदराज जहाज का नाम गिनीज र्वल्ड बुक में भी दर्ज है। ऑपरेशन जुपिटर के अंतर्गत श्रीलंका में शांति स्थापना एवं ऑपरेशन पराक्रम में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला यह विमान वाहक जहाज दुनिया का ऐसा पहला जहाज है, जिसे सर्वाधिक नौसेना आपरेानों में शामिल होने का गौरव प्राप्त है। अनेक सुविधाओं से लैस 740 फीट लंबा एवं 160 फीट चौड़ा आईएनएस विराट वास्तव में एक चलता-फिरता शहर ही था। इसके रिटायरमेंट के बाद नौ सेना से जुड़े अधिकारी एवं जवान इसे संग्रहालय बनाने के पक्ष में थे, जिसके माध्यम से इसे आम लोगों को एवं आने वाली पीढ़ियों के लिए इतिहास के जीते-जागते प्रमाण दिखाये जा सके, परन्तु सरकार ने इस पर आने वाले व्यय का हवाला देते हुए इसे बेच दिया। ऐतिहासिक युद्धपोत आईएनएस विराट को संग्रहालय के रूप में संरक्षित करने की मांग करते के लिए मुम्बई की कंपनी एनविटेक मरीन कंसल्टेट्स प्राइवेट लिमिटेड ने मुम्बई उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था कि आईएनएस विराट देश और नौसेना का गौरव रहा है। नौसेना की विरासत को कबाड़ में बदलने से हमारी धरोहर नष्ट हो जाएगी। इसके लिए उसने 100 करोड़ रुपये का भुगतान करने की पेशकश भी की। रक्षा मंत्रालय ने कोर्ट में दाखिल अपने जवाब में कहा कि विराट को संग्रहालय में बदलने के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) नहीं दी जा सकती है। लोगों की भावनाओं का सम्मान करते हुए सर्वोच्च अदालत ने विमान वाहक जहाज आईएनएस विराट को तोड़ने पर रोक लगा दी गई है। उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र सरकार भी लोगों के आर्थिक सहयोग से इसे म्यूजियम बनाने के इच्छुक थी परन्तु केन्द्र सरकार की उदासीनता का परिचय देते हुए संग्रहालय बनाने के लिए आवश्यक धन का अभाव का कारण बताते हुए इसे तोड़ने का फरमान जारी कर दिया था। जब देश की एक निजी कंपनी आईएनएस विराट जैसी ऐतिहासिक धरोहरों को संग्रहालय में बदलने का जज्बा रख सकती है तो सरकार का दायित्व बनता है कि वह भी लोगों की भावनाओं का सम्मान करते हुए देश की विरासतों को सहेजने के लिए एक स्पष्ट एवं ठोस नीति बनाए, जिसके लिए आवश्यक धन के लिए निजी क्षेत्र, निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र की सहभागिता अथवा जनता के आर्थिक सहयोग के माडॅल को विकसित किया जा सकता है।
रक्षा मंत्रालय के उन सभी पुराने कानूनों में भी संशोधन होना चाहिए जो ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण में बाधा खड़ी करते हैं। इसका सुखद परिणाम यह होगा कि आईएनएस विराट जैसी विरासतों को सहेजने में मदद मिलेगी, जिससे यह विरासतें प्रदर्शन, शिक्षा, अध्ययन और मनोरंजन के साथ-साथ लोगों के आकषर्ण का केंद्र के रूप में भी विकसित होगी। साथ ही इससे पर्यटन क्षेत्र को भी बढ़ावा मिलेगा एवं देश आत्मनिर्भरता की तरफ एक कदम और बढ़ेगा।

डॉ. सुरजीत सिंह गांधी


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