कोरोना से जंग : सरकार और अवाम संजीदा बने
जब मार्च के आखिरी हफ्ते में पूरे भारत में लॉकडाउन लागू हुआ, तब लगा था कि कोरोना महामारी के खिलाफ लड़ाई आसानी से जीत ली जाएगी।
कोरोना से जंग : सरकार और अवाम संजीदा बने |
उम्मीद थी कि लॉकडाउन के दौरान मिले समय में सरकार स्वास्थ्य संबंधी सभी तैयारियों को पुख्ता कर लेगी, फिर इस वायरस के खिलाफ मजबूती से लड़ा जाएगा, लेकिन संक्रमण के मामलों में कमी आने के बाद अचानक बढ़ोतरी ने सरकारिया दावों की पोल खोल दी है। कई राज्यों में मामले इस कदर बढ़ने लगे हैं कि वहाँ फिर से लॉकडाउन का खतरा मंडराने लगा है। अहमदाबाद में 60 घंटे के लिए कर्फ्यू लगा दिया गया है, वहीं कई राज्यों में रात का कर्फ्यू लागू किया गया है। मध्य प्रदेश, राजस्थान और गुजरात जैसे राज्य कई जिलों में नाइट कर्फ्यू का ऐलान कर चुके हैं।
इससे इतर, दिल्ली में कोरोना के मामले में बेतहाशा वृद्धि ने सबकी धड़कनें बढ़ा दी है। पिछले दो हफ्ते में दिल्ली में कोरोना के मामले इतनी तेजी से बढ़े हैं कि इसने न्यूयार्क और साओ पोलो जैसे शहरों को भी पीछे छोड़ दिया है। सवाल है कि एक ठहराव के बाद कोरोना के मामले यकायक कैसे बढ़ने लगे? गौर करें तो इस बाबत सरकार की नाकामी साफ तौर पर नजर आती है। लॉकडाउन के दौरान इलाज से जुड़ी तैयारियों को मुकम्मल न कर पाना सरकार की सबसे बड़ी नाकामी थी। फिर, मामलों में कमी आने पर सरकारों का लापरवाह हो जाना किसी बड़ी गलती से कम नहीं था। हालांकि ऐसा कम टेस्टिंग के कारण हुआ था, लेकिन हमारी सरकारें खुशफहमी में रहीं। इस दौरान न सिर्फ लोगों ने सामाजिक दूरी और मास्क लगाने के नियमों को ताक पर रखा, बल्कि हमारी सरकारों और राजनीतिक दलों ने भी इसे खूब बढ़ावा दिया। वैसे प्रदूषण और मौसम के ज्यादा सर्द होने के चलते भी कोरोना के मरीज तेजी से बढ़े हैं। इसलिए सिर्फ सरकार की नाकामी की बात गलत है। गौर करने लायक बात है कि जिन राज्यों में कोरोना के मामलों में तेजी से वृद्धि देखी जा रही है, उनमें ज्यादातर वे राज्य हैं, जहां अभी हाल ही में उपचुनाव हुए हैं। इन राज्यों में ऐसी चुनावी सभाओं को संबोधित किया गया, जहां अधिकांश लोगों ने न मास्क लगाया था और न ही सामाजिक दूरी का ठीक से पालन किया।
बिहार चुनाव में तो प्रधानमंत्री तक की सभाओं में इस तरह की लापरवाही देखी गई। लिहाजा, जरूरत इस बात की है कि हमारी सरकारें इस पर संजीदगी दिखाएं। मरीजों के इलाज के लिए महाराष्ट्र का उस्मानाबाद जिला एक नजीर पेश करता हुआ दिख रहा है। यहां आशा कार्यकर्ताओं के जरिये घर-घर स्क्रीनिंग करवा कर मरीजों का पता लगाया गया और समय रहते इनका इलाज हुआ। दूसरा, समय पर मरीजों को अस्पताल पहुंचाने की व्यवस्था कर मृत्युदर में खासी कमी लाई गई। फिर, बीमारी की गंभीरता के अनुसार मरीजों का वर्गीकरण कर जिला प्रशासन से लिस्ट साझा किया जाता है ताकि हर मरीज की मॉनिटरिंग बेहतर तरीके से हो सके। इतना ही नहीं, बुनियादी अवसंरचना में भी काफी सुधार किया गया है।
शुरुआती दौर में महज 45 आईसीयू बेड वाले अस्पताल में अब 1000 से ज्यादा ऐसे बिस्तर हैं। डॉक्टरों और नसरे की संख्या में इजाफा किया गया है। यही कारण है कि 17 लाख वाले इस जिले में महज एक फीसद लोग ही संक्रमित हो सके हैं। दरअसल, कोरोना से संबंधित सबसे बड़ी गलती यह हो रही है कि इसकी टेस्टिंग को लेकर लापरवाही बरती जा रही है। एक महीने पहले जहां लगभग 14 लाख से ज्यादा टेस्टिंग हुआ करती थी, वहीं अब रोजाना 8-9 लाख टेस्टिंग ही हो रही है, जबकि पूरी दुनिया के विशेषज्ञ ज्यादा-से-ज्यादा टेस्टिंग पर जोर दे रहे हैं। दिल्ली में मौत की बढ़ती संख्या का एक कारण कम टेस्टिंग भी है, जिससे संक्रमित व्यक्ति की जल्दी पहचान सुनिश्चित नहीं हो पाती है। दूसरा, अस्पतालों में बुनियादी अवसंरचना को लेकर हमेशा बातें होती हैं, लेकिन पिछले 8-9 महीने में भी इसे बेहतर नहीं किया जा सका है।
अब जरूरत इस बात की है कि अब इस बिंदु पर ईमानदारी से काम किया जाए। एक अहम बात यह भी है कि लोग भी अपनी जिम्मेदारी को समझें। बढ़ते मामलों को देखते हुए दिल्ली में मास्क न लगाने पर अब दो हजार रु पये का जुर्माना जरूर कर दिया गया है, लेकिन किसी भी राज्य में यह सख्ती तब तक कारगर नहीं होगी, जब तक नागरिक खुद इसमें सहयोग न करें। बहरहाल, कोरोना के खिलाफ जंग में न केवल हुकूमत को अपनी जवाबदेही समझने की जरूरत है, बल्कि अवाम को भी जागरूकता और सतर्कता के साथ आगे बढ़ना होगा।
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