तनिष्क : मोहब्बत से नफरत

Last Updated 23 Oct 2020 02:38:14 AM IST

टाटा के आभूषण ब्रांड तनिष्क के सांप्रदायिक सद्भाव के और ठीक-ठीक कहें तो हिंदू-मुस्लिम मेल-जोल का संदेश देने वाले एक मिनट से कम समय के ऑडियो-विजुअल विज्ञापन पर उठे विवाद का चुनावी राजनीति के अर्थ में फौरी राजनीतिक कनेक्शन भी है।


तनिष्क : मोहब्बत से नफरत

इस संबंध में अगर किसी को संदेह रहा भी हो तो यह संदेह मोहब्बत का संदेश देने वाले इस भावस्पर्शी विज्ञापन के दबाव तथा धमकियों की वजह से वापस लिए जाने की तनिष्क की घोषणा के बाद के घटनाक्रम से दूर हो जाना चाहिए। इस घटनाक्रम में ऊपर से नीचे तक संघ-परिवार के मुखर या मौन समर्थन के चलते विभिन्न संघी कतारों का इस मुद्दे पर सड़कों पर उतरना भी शामिल है।
सड़कों पर अभियान की शुरुआत गुजरात से हुई, जहां से एक वापस लिए जा चुके विज्ञापन के लिए व्यावसायिक कंपनी से माफीनामा लिखवा कर दरवाजे पर चिपकवाने की भी शुरुआत हुई। लेकिन गुजरात के फौरन बाद यह ‘कार्रवाई’ मध्य प्रदेश तक पहुंच गई, जहां इंदौर में ‘जय श्रीराम’ के नारे लगाती भीड़ के तनिष्क शोरूम पर प्रदर्शन के बीच शोरूम मैनेजर को अगले दिन तक माफीनामा लिखकर दरवाजे पर लगा देने तथा उसे हफ्ते-दो हफ्ते तक लगाए रखने का फरमान दिए जाने के वीडियो वायरल हो चुके हैं। वास्तव में इंदौर में तीन-तीन शोरूमों पर यह कार्रवाई हुई। गुजरात के फौरन बाद मध्य प्रदेश में संघ से जुड़े संगठनों के इस ‘कार्रवाई’ को गले लगाने के इशारे स्वत:स्पष्ट हैं। मध्य प्रदेश में हो रहे दो दर्जन से ज्यादा विधानसभाई सीटों के अति-महत्त्वपूर्ण उपचुनाव के हवन में एक आहुति यह भी। जाहिर है कि यह समिधा बिहार के चुनाव में भी संघ परिवार के काम आएगी। याद रहे कि हिंदुत्ववादी चेहरा चमकाने के लिए उन्हें बार-बार और खास तौर पर चुनाव के मौके पर तथा अक्सर नये-नये बहानों से अपनी हिंदू ऑडिएंस को इसका भरोसा दिलाने की जरूरत होती है कि बाकी सब अपनी जगह, वे असली यानी मुस्लिमविरोधी हिंदूवादी हैं।

सभी जानते हैं कि साफ तौर पर मोहम्मद के संदेश पर इस हमले की शुरुआत सोशल मीडिया पर हुई थी। इस हमले में संबंधित विज्ञापन में हिंदू परिवार से आई बहू की उसकी मुस्लिम ससुराल में गोदभराई की रस्म बड़े संवेदनशील तरीके से दिखाए जाने के संदेश को ‘हिंदू विरोधी’, ‘लव जेहाद’ तथा ‘हिंदुओं की भावनाओं को चोट पहुंचाने वाला’ सिद्ध करने की कोशिश की जा रही थी और इस निंदा-प्रचार से आगे जाकर तनिष्क को ऐसा विज्ञापन बनाने का दुस्साहस करने के लिए सजा देने के लिए उसका बहिष्कार करने का आह्वान भी किया जा रहा था। बहरहाल, संघी ट्रोल सेना इतने पर भी नहीं रुकी। हार्दिक भवसार नाम के एक ट्रोल, जो अपने परिचय में इसकी शेखी मारता है कि ट्विटर पर प्रधानमंत्री उसे फोलो करते हैं, ने तनिष्क के ब्रांड मैनेजर (मीडिया एंड कम्युनिकेशन) की, जिसका नाम उसके मुसलमान होने का इशारा करता था, लिंक्ड इन प्रोफाइल का स्क्रीन शॉट इस आशय की टिप्पणी के साथ ट्विटर पर डाल दिया कि, ‘यही शख्स है जो इस हिंदू विरोधी विज्ञापन कैंपेन के पीछे है। वह तनिष्क ज्वैलरी का ब्रांड मैनेजर है। आप सब जानते ही हैं क्या करना है-बॉयकॉट तनिष्क।’ इतना ही नहीं, जब संबंधित व्यक्ति ने भारी ट्रोलिंग से पीछा छुड़ाने के लिए अपने लिंक्ड इन एकाउंट को डिलीट कर दिया, एक और दक्षिणपंथी ट्रोल ने संबंधित ब्रांड मैनेजर की रॉकेटरीच प्रोफाइल ट्वीट कर दी, जिसमें उसका फोन नम्बर तथा ई-मेल एड्रेस भी मौजूद था। फिर क्या था, हजारों संघी ट्रोल सैनिक गालियों तथा धमकियों के हथियार लेकर उस पर टूट पड़े और बॉयकॉट तनिष्क  करीब दो दिन तक ट्विटर पर एक टॉप ट्रेंड बना रहा, वह अलग। धौंसबाजी और धमकियों की वजह से और जैसा कि खुद तनिष्क के बयान में कहा गया कि अपने कर्मचारियों तथा पार्टनरों की सुरक्षा की चिंता से संबंधित विज्ञापन को वापस लेना पड़ा। वास्तव में गुजरात से लेकर मध्य प्रदेश तक इस विज्ञापन के वापस लिए जाने के बाद भी तनिष्क के शोरूमों पर किए गए प्रदर्शन, सुरक्षा के डर तथा आशंकाओं के सच होने की ही पुष्टि करते हैं।
इस सब को सत्ताधारी दल का समर्थन हासिल होने का पता चला जब गुजरात में कच्छ के गांधीधाम शहर में तनिष्क के शोरूम पर आधा दर्जन से ज्यादा लोगों का दल अचानक शोरूम में चढ़ आया और उन्होंने शोरूम के मैनेजर को उक्त विज्ञापन के लिए माफीनामा शोरूम के दरवाजे पर चिपकाने के लिए मजबूर कर दिया। बाद में पुलिस ने सुरक्षा मजबूत करने के कदम भी उठाए।
बहरहाल, जब इस घटना की खबर फैल गई तो गुजरात के गृह मंत्री प्रवीण सिंह जडेजा ने न सिर्फ हमले की बात से इंकार कर दिया, बल्कि खबरों में ‘हमला’ शब्द के प्रयोग को निशाना बनाकर, ‘फेक न्यूज’ फैलाने वाले समाचार माध्यमों के खिलाफ कार्रवाई करने की धमकी भी दे डाली। इस उपद्रवलीला की किसी भी तरह से निंदा करने की जगह उन्होंने वास्तव में पूरी घटना पर ही परदा डालने की कोशिश की। बाद में जैसे उन्हीं के इशारे पर एक चैनल के खिलाफ इन प्रदर्शनकारियों में से एक की एफआईआर भी दर्ज कर ली गई।
बेशक, गुजरात के गृह मंत्री के विपरीत केंद्र सरकार के शीर्ष नेतृत्व ने ऐसे अन्य अनेक मामलों की तरह इस मामले में भी बहुत ही मुखर चुप्पी साधे रखी है। इसी चुप्पी का दूसरा पहलू यह है कि हार्दिक भवसार जैसे लोगों को प्रधानमंत्री फोलो करते रहे हैं और आज भी फोलो कर रहे हैं। एक तरफ प्रतिक्रिया के नाम पर चुप्पी और दूसरी ओर फोलो करना, दोनों का योग ऐसे तत्वों के पक्ष में झुकाव का ही इशारा करता है। प्रधानमंत्री या अमित शाह जैसे उच्च पदों पर बैठे लोगों की इस संदर्भ में चुप्पी मौनम् स्वीकृति लक्षणम् बन जाती है। याद रहे कि यह मौन इसके बावजूद है कि इसी विज्ञापन के संबंध में संघ की ही कतारों में से आई आपत्तियों को एक सिरे से खारिज करते हुए एडवरटाइजिंग काउंसिल ऑफ इंडिया दो-टूक नतीजे पर पहुंची थी कि विज्ञापन में ऐसा कुछ भी नहीं था, जो बुरा या किसी भी लिहाज से आपत्तिजनक कहा जा सकता हो।
इस विज्ञापन पर आपत्ति करने वाले संघ परिवारियों को आपत्ति वास्तव में मुसलमान परिवार में हिंदू बहू या हिंदू परिवार में मुस्लिम बहू की मौजूदगी की सचाई को रेखांकित किए जाने पर ही है। बेशक, अंतर्धार्मिक संबंध हमारे देश में सामान्य बात नहीं हैं, लेकिन वे कोई असंभव कल्पना भी नहीं हैं। अपेक्षाकृत दुर्लभ हैं, फिर भी ये भी हमारे ही समाज और देश की सचाई का ही हिस्सा हैं और यह सचाई धार्मिक मेलजोल के सबसे गहरे रूप के उदाहरण के जरिए मेलजोल की व्यापक संभावनाओं को ही रेखांकित नहीं करती है, गर्भस्थ शिशु के माध्यम से इस मेलजोल से नये सृजन के महत्त्व को भी रेखांकित करती है, जो अपने जन्म से ही धर्म के इन विभाजनों से ऊपर होगा। हिंदुत्ववादी ताकतें इसी सारी सचाई को सबकी नजरों से दूर करके खत्म कर देना चाहती हैं, ताकि शात रूप से परस्पर युद्धरत समुदायों पर टिका एक झूठा, बर्बर प्रति-इतिहास रच सकें। वे हमारे यथार्थ को ही मिटाना चाहते हैं, ताकि हमारे वर्तमान को विकृत कर सकें और भविष्य को बर्बर बना सकें। इसीलिए वे मोहब्बत से नफरत करते हैं और नफरत से इतनी मोहब्बत करते हैं।

राजेंद्र शर्मा


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