छोटे किसान : इनके योगदान की समझ जरूरी
देश व दुनिया दोनों स्तरों पर छोटे किसानों की खाद्य उत्पादन व कृषि विकास में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।
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पर अनेक अन्तरराष्ट्रीय संस्थानों व बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा उनकी बहुमूल्य भूमिका की उपेक्षा की जाती है व इसके स्थान पर महंगी मशीनों, महंगी तकनीकों के उपयोग वाली खेती की पैरवी की जाती है। इन तत्वों की पहुंच अनेक देशों में नीति-निर्धारकों तक होती है व उनके द्वारा प्रसारित नीतियों के कारण बड़े पैमाने पर छोटे किसानों का विस्थापन हो रहा है। इतना ही नहीं, इन्होंने नया भ्रम भी फैला दिया है कि विकास के लिए बहुत से छोटे किसानों को खेती से हटा कर भीड़ कम करनी चाहिए। यह बहुत भ्रामक व हानिकारक सोच है पर इसे धड़ल्ले से फैलाया जा रहा है। नतीजातन अनेक देशों में छोटे किसानों के हितों के विरुद्ध नीतियां खुलेआम अपनाई जा रही हैं।
अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन के राष्ट्रपति काल के बारे में अनुमान लगाया गया था कि प्रति 8 मिनट एक किसान परिवार (फैमली फार्म) का विस्थापन हुआ व इसे विकास का ढोल बजाते हुए मान्यता भी दिलवाई गई। सबसे अधिक दुख तो तब होता है जब ऐसी ही सोच भारत जैसे देशों में भी फैलाई जाती हैं, जहां मूलत: छोटे व मध्य किसानों ने अपनी कड़ी मेहनत के बल पर देश को अनाज में आत्मनिर्भर बनाया और बहुत प्रतिकूल परिस्थितियों में भी उन्होंने अपना योगदान बनाए रखा। छोटे किसानों के विरुद्ध प्रचार का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष यह है कि उनकी उत्पादकता कम होती है। पर हकीकत यह है कि जब भली-भांति आकलन किया गया है तो प्राय: छोटे किसानों के खेतों पर उत्पादकता ज्यादा पाई गई है।
इसकी एक बड़ी बजह यह है कि प्राय: छोटे किसान मुख्य फसल के साथ अन्य खाद्य भी छोटे स्तर पर उगा लेते हैं व आकलन भी इन विविध छोटे स्तर पर उगाए गए खाद्यों का आकलन नहीं होता है। कभी मेढ़ पर तो कभी बेलों पर या कभी मुख्य फसल के बीच छोटे किसान अन्य उपयोगी खाद्य या अन्य उपज भी साथ-साथ प्राप्त कर लेते हैं। दूसरी ओर बड़े फार्मो के मशीनीकृत तौर-तरीकों में प्राय: एक ही फसल बड़े क्षेत्रफल में उगाई जाती है ताकि मशीनें अपने विभिन्न कार्य भली-भांति कर सकें। इसका एक दुष्परिणाम यह होता है कि एक ही फसल के बड़े क्षेत्र में फैले रहने के कारण उस फसल पर क्षति करने वाले कीड़ों, बीमारियों आदि का प्रकोप होता है। दूसरी ओर छोटे किसानों में मिश्रित खेती की कहीं अधिक क्षमता है व विभिन्न क्यारियों में, खेत के विभिन्न भागों में एक-दूसरे के अनुकूल विविध फसल उगा सकते हैं, जिससे कीड़ों व बीमारियों के प्रकोप की संभावना को कम करने में मदद मिलती है। एक छोटे क्षेत्र में विविध तरह की फसल, फल-फूलों से विविध तरह के कीट व जंतु आते हैं, जो एक-दूसरे को नियंत्रित करने में भी मदद करते हैं। इससे मिली-जुली छोटे किसान का अति महत्त्वपूर्ण व ऐतिहासिक भूमिका यह भी रही है कि छोटे किसानों ने कृषि भूमि के प्राकृतिक उपजाऊपन को बचाए रखना का कार्य किया है। मानव इतिहास में छोटा किसान धरती मां की रक्षा, मिट्टी की रक्षा के सतत् प्रयासों के लिए ही पूजनीय रहा है। पर हाल के समय में बड़े फार्मो की अधिक मशीनीकृत खेती का प्रसार करने वाली कंपनियों के दबाव में विभिन्न सरकारों ने ऐसी नीतियां अपनाई, जिनसे छोटे किसानों की इस ऐतिहासिक भूमि को भी बहुत क्षति पंहुची है। दुष्प्रचार द्वारा उनसे भी ऐसी तकनीकें अपनाने के लिए दबाव डाला गया, जिससे मिट्टी के प्राकृतिक उपजाऊपन को क्षति पहुंची व किसान के मित्र-जीवों जैसे केंचुवों, मधुमक्खियों आदि को भी क्षति पंहुची।
इसके बावजूद आज भी छोटे किसान धरती के प्राकृतिक उपजाऊपन तथा स्वास्थ्य के अनुकूल खाद्यों के उत्पादन में बड़े मशीनीकृत फार्मो से कहीं अधिक सशक्त हैं। छोटे किसान ऐसी मिश्रित खेती कर सकते हैं, जो असंख्य सूक्ष्म जीवों व प्रकृति के लिए हितकारी है। किसान के मित्र केंचुवों व अन्य जीवों को छोटे किसान ही नया जीवन दे सकते हैं और पनपा सकते हैं। अत: यह सरकारी नीतियों का कर्तव्य है कि न केवल छोटे व मध्यम किसानों को सशक्त करें अपितु साथ में उन्हें अपनी उन प्रकृति व धरती की रक्षा की उस भूमिकाओं को निभाने के लिए भी प्रेरित व प्रोत्साहित करें जिन्होंने मानव इतिहास में छोटे किसान को पूजनीय बनाया है। बड़े फार्मो की मशीनीकृति खेती बहुत फासिल फ्यूल (जीवाम ईधन) मांगती है, जिससे ग्रीनहाऊस गैसों का उत्सर्जन बढ़ता है, जबकि छोटे किसान ऐसी खेती करने में कहीं अधिक सक्ष्म हैं जो एक ओर ग्रीनहाऊस गैसों का न्यूनतम उत्सर्जन करती है व दूसरी ओर इन्हें मिट्टी में सोख कर इनका प्रदूषणकारी असर करने में भी अधिक सक्षम है।
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