कोरोना काल : असमानता की बढ़ती खाई
चर्चे कामयाबी के हों, हमेशा ये जरूरी तो नहीं/बरबादियां भी वक्त को मशहूर किया करती हैं।
![]() कोरोना काल : असमानता की बढ़ती खाई |
यहीं से अपनी बात शुरू करते हैं। जब से कोरोना महामारी आई है, गरीब और गरीब होता जा रहा है और कुछ अमीर अपने खजाने में बेशुमार धन अर्जित करते जा रहे हैं। वर्तमान आर्थिक परिदृश्य में अमीरों से ज्यादा गरीबों की लाचारी के हृदयविदारक चर्चे हैं। कोरोना काल के पहले दुनिया में जिन तीन तरह की चुनौतीतियों पर चर्चा हो रही थी। उनमें गरीबी और अमीरी के बीच बढ़ती खाई सबसे बड़ी चुनौती थी। उसके बाद जलवायु परिवर्तन के चलते पर्यावरण का बढ़ता संकट और विकराल होती बेरोजगारी की समस्या से भी अपना देश दो-चार था।
कोरोना काल में लॉकडाउन की वजह से पर्यावरण संकट तो थोड़ा-बहुत कम हुआ, लेकिन बेरोजगारी का संकट सुरसा की तरह बढ़ रहा है। गरीबी और अमीरी की खाई भी लगातार चौड़ी हो रही है। दरअसल, आमदनी के लिहाज से इस दौरान वर्चुअल वर्ल्ड यानी आभासी दुनिया का सच रचने वाली कंपनियों की कमाई चकित करने वाला है। टेलीकॉम सेक्टर की दिग्गज कंपनी रिलायंस के मालिक मुकेश अंबानी ने अपना 33 फीसद शेयर बेचकर इस दौरान लगभग डेढ़ लाख करोड़ रु पये कमाये हैं। अब मुकेश अंबानी 89 अरब डालर सम्पति के साथ दुनिया के पांचवे सबसे अमीर व्यक्ति हैं। भारत सरकार ने कोरोना काल में पटरी से उतर चुकी अर्थव्यवस्था को गति देने और आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत करने के लिए 21 लाख करोड़ रु पये के आर्थिक पैकेज का एलान किया, जो लगभग 300 अरब डॉलर के बराबर है। 130 करोड़ की आबादी वाले देश की अर्थव्यवस्था की सेहत में अभी कुछ सुधार के संकेत तो मिल रहे हैं, पर यह दावा नहीं किया जा सकता कि अर्थव्यवस्था पूरी तरह से पटरी पर आ चुकी है। संकट की इस घड़ी में भी दुनिया के चंद अमीरों की संपत्ति में 439 अरब डॉलर की वृद्धि दर्ज की गई। अमेरिका जैसे देश में जहां लाखों लोग कोरोना महामारी की चपेट में आकर असमय ही काल कवलित हो गए, जहां लाखों लोग बेरोजगारी का दंश झेल रहे हैं, वहां भी अमीरों की कमाई आंखों को चौंधियाने वाली है। अमेजन के सीईओ जेफ बेजास की संपत्ति इस दरम्यान 34.6 अरब डॉलर बढ़ी।
गौर करने वाली बात यह भी है कि अमेरिका के पांच अरबपतियों जैफ बेजास, बिल गेट्स, मार्क जुकरबर्ग, वारेन बफेट और ओरेकल के लैरी एलिसन की संपत्ति में 75.5 अरब डालर की वृद्धि दर्ज हुई। इन अमीरों की ज्यादातर आमदनी आभासी दुनिया के सच को वास्तविक दुनिया की सच की तरह दिखाने और बताने की वजह से पैदा हुई है। विश्व बैंक की एक हालिया रिपोर्ट में बताया गया है कि पूरे दक्षिण एशिया में कुल 6220 करोड़ डॉलर का नुकसान हुआ है। यहीं नहीं दक्षिण एशियाई देशों के प्राथमिक और माध्यमिक स्तर के लगभग 39 करोड़ बच्चे स्कूल से बाहर हैं। ये बच्चे जब बड़े होकर रोजगार करने के काबिल होंगे तो ये लगभग 4400 डॉलर (मतलब 3.22 लाख रुपये) कम कमाएंगे।
इससे एक निष्कर्ष तो निकलता है कि दुनिया के अमीरों की आमदनी कोरोना संकट काल में भी बढ़ रही है, जबकि दक्षिण एशियाई मुल्कों के बच्चों की कमाई कोरोना संकट वजह से जवान होने तक और कम हो जाएगी। इसमें प्रकट रूप से इन बच्चों का अपना कोई दोष नहीं है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि कोरोना संकट की वजह से ही असंगठित क्षेत्र के 40 करोड़ से अधिक मजदूर प्रभावित हुए हैं। संगठन के दूसरी तिमाही रिपोर्ट में कहा गया है कि इस दौरान 6.7 फीसद कामकाजी घंटे और लगभग 29.5 करोड़ नौकरियां खत्म हो गई हैं। इसका मनोवैज्ञानिक असर यह हुआ है कि लोग भविष्य की अनिश्चितता, आमदनी कम होने से खानपान और रहन-सहन पर खचरे में या तो कटौती कर रहे हैं या इसे लेकर बेहद तनाव में हैं। नये किसान बिल के आने से किसानों के मन में कई तरह की आशंकाए पैदा हो रही हैं। गांव का किसान सोच रहा है कि अगर खेती पर भी पैसे वाले काबिज हो जाएंगे तो उनका जीना ही मुहाल हो जाएगा। लॉकडाउन से छुटकारा मिलते ही कोरोना संकट से बचने के लिए पैदल ही गांव आए मजदूर निश्चित आमदनी की उम्मीद में फिर शहरों की ओर कूच कर रहे हैं। अपने दोजख का इंतजाम करने और किसी अमीर की संपत्ति में अनजाने ही इजाफा करने। ताकि कुछ समय के लिए उसे भी अमीर होने की खुशफहमी में हाड़तोड़ मेहनत करने का जज्बा कायम रहे और वह स्वयं भी जिंदा रहे।
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