अर्थव्यवस्था : मांग में जान फूंकने की जरूरत

Last Updated 01 Oct 2020 04:27:27 AM IST

यकीनन कोविड-19 की चुनौतियों के बीच अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए मांग (डिमांड) में नई जान फूंकने की जरूरत स्पष्ट दिखाई दे रही है।


अर्थव्यवस्था : मांग में जान फूंकने की जरूरत

स्थिति यह है कि देश की अर्थव्यवस्था में भविष्य की अनिश्चितताएं दिखाई देने के कारण लोग खर्च करने से बच रहे हैं। सरकार ने आर्थिक प्रोत्साहन के तहत जिन करोड़ों लाभार्थियों को नकदी हस्तांतरित की है, वे भी खर्च की बजाय बचत सहेज रहे हैं।  
ऐसे में सरकार द्वारा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में वृद्धि तथा अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए उपभोक्ताओं को खर्च के लिए प्रेरित करना होगा। सरकार द्वारा नई मांग के निर्माण के लिए उन क्षेत्रों पर व्यय बढ़ाना होगा जो निवेश और वृद्धि को तत्काल गतिशील कर सकें। साथ ही, आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए रोजगार बढ़ाने, उद्योग-कारोबार को गतिशील करने और निर्यात वृद्धि के लिए नये प्रोत्साहन पैकेजों का ऐलान भी किया जाना जरूरी दिखाई दे रहा है।
हाल ही में सितम्बर, 2020 में प्रकाशित हुई विभिन्न वैश्विक क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों की रिपोटरे में भारत में वित्त वर्ष 2020-21 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में भारी गिरावट के अनुमान प्रस्तुत किए गए हैं। एशियाई विकास बैंक (एडीबी) ने चालू वित्त वर्ष 2020-21 में भारतीय अर्थव्यवस्था में 9 फीसदी की गिरावट का अनुमान पेश किया है, तीन माह पहले जून माह में एडीबी ने भारतीय अर्थव्यवस्था में 4 फीसदी गिरावट का अनुमान लगाया था। जिस तरह से वैश्विक क्रेडिट रेंटिंग एजेंसियां भारत की जीडीपी में बड़ी गिरावट के अनुमान प्रस्तुत कर रही हैं, उसी तरह भारत में भी राष्ट्रीय और सरकारी एजेंसियों द्वारा प्रस्तुत नई रिपोटरे में कोविड-19 के कारण जीडीपी में भारी गिरावट का परिदृश्य बताया जा रहा है। केंद्रीय सांख्यिकीय कार्यालय के मुताबिक चालू वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही अप्रैल से जून के महीनों में जीडीपी में 23.9 फीसदी की गिरावट आई है। अब दूसरी तिमाही में भी जीडीपी में गिरावट का परिदृश्य दिखाई दे रहा है।

इस समय अर्थव्यवस्था के धीमा होने के पीछे कई कारण हैं। देश में लॉकडाउन के कारण आपूर्ति क्षेत्र को बड़ा झटका लगा है। अब सितम्बर, 2020 में कोरोना के फिर से बढ़ने से देश के कई प्रदेशों और कई शहरों में प्रशासन और उद्योग के बीच सामंजस्य से फिर से आंशिक लॉकडाउन हो रहे हैं। लॉकडाउन ने केंद्र और राज्य सरकारों की पहले से खस्ता हालत को और कमजोर बना दिया है। आयकर विभाग के मुताबिक देश के प्रमुख कर क्षेत्रों में चालू वित्त वर्ष 2020-21 में अप्रैल से जून की पहली तिमाही में करीब 40 प्रतिशत की कमी आई है। वाणिज्यिक बैंक तथा नॉन-बैंकिंग फायनेंस कंपनियों (एनबीएफसी) सहित विभिन्न वित्तीय संस्थाएं अभी भी मुश्किल में हैं। इससे नया ऋण प्रभावित हो रहा है।
फिर भी सरकार की ओर से जून, 2020 के बाद अर्थव्यवस्था को धीरे-धीरे खोलने की रणनीति के साथ राजकोषीय और नीतिगत कदमों का अर्थव्यवस्था पर कुछ अनुकूल असर अवश्य पड़ा है। दूरसंचार, ई-कॉमर्स, आईटी और फार्मास्यूटिकल्स जैसे क्षेत्रों में मांग बढ़ने लगी है। लोगों के घरों में रहने की वजह से सभी तरह के सामानों के ऑनलाइन ऑर्डर भी बढ़े हैं। घर से दफ्तर का काम करने के साथ-साथ, स्टूडेंट्स की स्कूल-कॉलेज की ऑनलाइन पढ़ाई, घरों में ही मनोरंजन कार्यक्रमों के फैलाव से डेटा इस्तेमाल में भारी वृद्धि हुई है। भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के हाल के कारोबारी विश्वास सूचकांक (बीसीआई) से पता चलता है कि आर्थिक गतिविधियां सामान्य की ओर बढ़ने से कुल मिलाकर कारोबारी धारणा में सुधार हुआ है।  
ऐसे में कोविड-19 की चुनौतियों के बीच देश की जीडीपी बढ़ाने और अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए नई मांग के निर्माण, उपभोग बढ़ाने, रोजगार बढ़ाने तथा कारोबार और वित्तीय प्रोत्साहन के नये रणनीतिक कदम जरूरी दिखाई दे रहे हैं। आम आदमी की क्रयशक्ति बढ़ाने के साथ-साथ कोविड-19 के कारण खोए हुए रोजगार अवसरों को लौटाया जाना जरूरी है। सरकार द्वारा बड़े स्तर पर रोजगार पैदा कर सकने वाली परियोजनाओं के बारे में नये सिरे से सोचने की जरूरत है। ग्रामीण क्षेत्रों में चलने वाली रोजगार योजना मनरेगा पर और अधिक ध्यान देने की जरूरत दिखाई दे रही है। शहरी भारत में सरकार द्वारा मनरेगा की तर्ज पर अतिरिक्त रोजगार प्रयासों की आवश्यकता अनुभव की जा रही है।
इस समय कोरोना महामारी के कारण आर्थिक हाशिये पर आ चुके परिवारों और छोटे कारोबारियों को वित्तीय समर्थन बढ़ाने की जरूरत है। यद्यपि सरकार ने एमएसएमई की इकाइयों के लिए आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत बैंकों के जरिए बगैर किसी जमानत के आसान ऋण सहित कई राहतों के पैकेज घोषित किए हैं, लेकिन अधिकांश बैंक ऋण डूबने की आशंका के मद्देनजर ऋण देने में उत्साह नहीं दिखा रहे हैं।  
निस्संदेह देश के उद्योग-कारोबार सेक्टर को कम ब्याज दर पर ऋण एवं वित्तीय सुविधा तथा जीएसटी संबंधी रियायत और निर्यात को बढ़ाने के लिए विभिन्न प्रोत्साहन और सुविधाएं देकर कारोबार माहौल बेहतर बनाना होगा।  चूंकि इस समय घरेलू मांग कमजोर बनी हुई है, इसलिए देश में विकास को गति देने के लिए निर्यात बढ़ाने पर जोर देना होगा। ऐसे में निर्यात को बढ़ावा देने के लिए सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक, दोनों को नीतिगत हस्तक्षेप करना होगा।
अब सरकार द्वारा आर्थिक सुधारों के तहत स्वास्थ्य, श्रम, भूमि, कौशल और वित्तीय क्षेत्रों में घोषित किए गए सुधारों को आगे बढ़ाना होगा। इसके अलावा, सरकार को सब्सिडी, कर्ज, गैर-कर राजस्व वसूली बढ़ाने, नये कर्ज के पुनर्भुगतान और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की ओर ध्यान देना होगा। बड़े पैमाने पर धन जुटाने के लिए सार्वजनिक उपक्रमों के तेजी से विनिवेश लक्ष्यों की पूर्ति पर भी ध्यान देना होगा। कृषि सुधारों से संबंधित नये कानूनों से कृषि क्षेत्र की विकास दर चार फीसदी तक ले जाने के हरसंभव प्रयास करने होंगे। निश्चित रूप से ऐसा किए जाने से ही देश की जीडीपी बढ़ेगी और आगामी वित्तीय वर्ष 2021-22 में भारत विश्व बैंक द्वारा ‘इंडिया डवलपमेंट अपडेट’ रिपोर्ट के तहत अनुमानित की गई सात फीसदी की विकास दर हासिल करने की संभावनाओं को मुट्ठियों में लेते हुए दिखाई दे सकेगा।

जयंतीलाल भंडारी


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