गांधीवाद : सर्वोत्तम और सतत राह

Last Updated 02 Oct 2020 03:32:50 AM IST

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचार आज पूरी दुनिया में अपना लोहा मनवा रहे हैं।


गांधीवाद : सर्वोत्तम और सतत राह

हथियारों की होड़ में धंसती जा रही दुनिया का भरोसा अब गांधीवाद पर और ज्यादा मजबूत होता जा रहा है। लोग समझने पर मजबूर हो रहे हैं कि युद्ध किसी भी समस्या का हल नहीं हैं। दुनिया  में हिंसक क्रांतियां विफल हुई हैं। समय ने समझाया है कि सत्याग्रह और अहिंसा ही अपनी बात कहने का सबसे अच्छा रास्ता है।   
गांधी जी के विचारों की प्रासंगिकता समय के साथ-साथ और भी बढ़ती जा रही है। विश्व में पर्यावरण संरक्षण का मुद्दा इन दिनों तेजी से समाज की प्राथमिकता बनता जा रहा है। महात्मा गांधी ने भी पर्यावरण पर समग्र चिंतन किया है। यद्यपि बापू के जीवनकाल में पर्यावरण शब्द चलन में नहीं था, लेकिन युगद्रष्टा गांधी की सोच इतनी दूरदर्शी थी कि उन्होंने उस समय में आज की स्थिति पर चिंता और चिंतन आरंभ कर दिया था। गांधी जी का मानना था कि ‘विश्व के पास सबकी जरूरतों को पूरा करने के लिए कुछ न कुछ है पर किसी के लालच की पूर्ति के लिए कुछ भी नहीं है।’ अपने लेख ‘स्वास्थ्य की कुंजी’ में उन्होंने स्वच्छ वायु पर अपने विचार व्यक्त किए हैं। कहा है कि तीन प्रकार के प्राकृतिक पोषण की आवश्यकता होती है-हवा, पानी और भोजन, लेकिन स्वच्छ वायु सबसे आवश्यक है। गांधी जी ने भारतवासियों को चरखे से सूत कातने व उससे बुने कपड़े पहनने के लिए प्रेरित किया। उनका उद्देश्य स्वदेशी के प्रति अलख जगाना तो था ही, साथ ही कपड़ा मिलों से निकलने वाले अपशिष्ट पदाथरे और कचरे को कम करना भी था। गांधी जी ग्राम्य विकास के बड़े पक्षधर थे। गांधी जी 1946 में हरिजन सेवक में लिखते हैं, ‘देहात वालों में ऐसी कला और कारीगरी का विकास होना चाहिए, जिससे बाहर उनकी पैदा की हुई चीजों की कीमत की जा सके।’ गांधी जी एक तरफ स्वतंत्रता के लिए अहिंसक संघर्ष कर रहे थे, तो वहीं अपने रचनात्मक कार्यक्रमों के जरिए भारतीय समाज के बिखरे ताने-बाने को सहेजने की भी कोशिश कर रहे थे।

गांधी जी शिक्षा को प्रमुख कारक मानते थे, बेहतर समाज निर्माण के लिए। उन्होंने 1917 में चम्पारण सत्याग्रह के दौरान पहला बुनियादी विद्यालय बड़हरवा लखनसेन में स्थापित किया। शिक्षा के महत्त्व के संदर्भ में 8 मई, 1937 को वे हरिजन में लिखते हैं, ‘मनुष्य न तो कोरी बुद्धि है, न स्थूल शरीर है और न केवल हृदय या आत्मा ही है। संपूर्ण मनुष्य के निर्माण के लिए तीनों के उचित और एकरस मेल की जरूरत होती है। यही शिक्षा की सच्ची व्यवस्था है। स्वदेशी के जरिए ही भारत आत्मनिर्भर और मजबूत देश बन पाएगा।’ आज भारत में स्वदेशी के प्रति लोगों में ललक बढ़ी है। इससे अवसर मिलता है, छोटे-छोटे उद्योगों को फलने-फूलने का। दूर-दराज के ग्रामीण लोगों को इसके जरिए मौका मिल पाता है आर्थिक रूप से सक्षम हो पाने के लिए। गांधी जी चाहते थे कि स्वदेशी के जरिए देश स्वावलंबी बने। उस दिशा में हमने लंबे अरसे बाद कदम बढ़ा दिया है, जिसके सकारात्मक परिणाम मिलने शुरू हो गए हैं। आज स्वदेशी के लिए लोगों में जागृति आई है, जो संतोष की बात है।
गांव स्वस्थ और स्वच्छ बनें। इस कार्य को करने के लिए सरकार ने एक जन आंदोलन छेड़ा है। सफाई जैसे कार्यक्रमों से गांव और शहरों का कायाकल्प होने लगा है।  गांधी कहते हैं-‘ग्राम उद्धार में सफाई अगर न आवे तो हमारे गांव कचरे के घूरे जैसे ही रहेंगे। ग्राम-सफाई का सवाल प्रजा के जीवन का अविभाज्य अंग है। यह प्रश्न जितना आवश्यक है, उतना ही कठिन भी है। दीर्घकाल से जिस अस्वच्छता की आदत हमें पड़ गई है, उसे दूर करने के लिए महान पराक्रम की आवश्यकता है।’ गांव की चिंता के साथ-साथ गांधी शहरों में गंदगी से भी चिंतित थे। उन्होंने शहरों की सफाई के संदर्भ में कहा है-‘पश्चिम से हम एक चीज जरूर सीख सकते हैं और हमें सीखनी चाहिए-वह है शहरों की सफाई का शास्त्र।’ हमें आज गांधी के इस कथन को आत्मसात करने की आवश्यकता है। गांधी जी के विचार शात हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह है कि उनके विचार व्यवहार की कसौटी पर उनके द्वारा आजमाए गए हैं। समय के सापेक्ष, उनकी प्रासंगिकता बनी हुई है। आज दुनिया के सामने गांधी का रास्ता सवरेत्तम और सतत है।
 

प्रह्लाद सिंह पटेल
केंद्रीय राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) संस्कृति एवं पर्यटन


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