वैश्विकी : पाकिस्तान का सेक्युलर मजाक
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान का संयुक्त राष्ट्र महासभा में इस बार का संबोधन उनकी हताशा और विदेश नीति की असफलता को दर्शाता है।
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जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद इमरान खान ने कश्मीर मुद्दे को अपनी विदेश नीति का केंद्र विषय बना लिया था। अपने बड़बोलेपन में उन्होंने वैश्विक मंचों पर कश्मीरी आवाम के स्वयंभू प्रवक्ता की भूमिका अख्तियार कर ली थी। इसी के बाद उन्होंने पिछले वर्ष संयुक्त राष्ट्र महासभा में कश्मीर मुद्दे को जोर-शोर से उठाया था। एक साल बीतने के बाद कश्मीर के बारे में अपनी नीति का लेखा-जोखा लेने के बजाय इमरान खान ने अपना पुराना रवैया कायम रखा। इसमें सफलता मिलने के बजाय वह स्वयं हंसी के पात्र बन गए। भारत की घेरेबंदी में नाकाम रहने के साथ ही वह कश्मीर मुद्दे पर खुद अलग-थलग पड़ गए। इस्लामी देशों ने उनका साथ नहीं दिया बल्कि जब कुरैशी ने सऊदी अरब की भूमिका की आलोचना की तब इस सबसे बड़े अरब देश के साथ पाकिस्तान के संबंधों में कड़वाहट आ गई।
महासभा के अधिवेशन में केवल तुर्की था, जिसने कश्मीर का मुद्दा उठाया। हालांकि इस बार उसका रवैया अपेक्षाकृत नरम था, लेकिन इमरान खान महासभा में भारत के विरुद्ध जहर उगलने से बाज नहीं आए। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी, आएसएस और भारतीय सेना पर मनगढ़ंत आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि आरएसएस गांधी और नेहरू के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को पीछे छोड़कर भारत को हिंदू राष्ट्र बनाना चाहता है। इमरान खान ने यह भी कहा कि भारत ने कश्मीर पर अवैध कब्जा कर रखा है और वहां मानवाधिकार का उल्लंघन हो रहा है। इमरान खान के भाषण के दौरान संयुक्त राष्ट्र महासभा के सभागार में उपस्थित भारतीय प्रतिनिधिमंडल के सदस्य सभा से उठकर बाहर चले गए। दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) में भी कोई देश पाकिस्तान का साथ देने के लिए तैयार नहीं है। सार्क विदेश मंत्रियों की बैठक में कुरैशी ने कश्मीर का मुद्दा उठाया, लेकिन अन्य देशों ने इसे प्राय: नजरअंदाज कर दिया। पाकिस्तान इस समय सार्क का अध्यक्ष है तथा उसे इस संगठन की शिखर वार्ता की मेजबानी करनी है। पाकिस्तान इस अवसर का उपयोग कूटनीतिक क्षेत्र में अपने महत्त्व को साबित करने के लिए उतावला है, लेकिन इसमें भी उसे फिलहाल सफलता नहीं मिली है। अधिकतर सार्क देशों का मानना था कि शिखर वार्ता आयोजित करने के लिए यह उचित समय नहीं है। सभी देश इस समय कोरोना महामारी से जूझ रहे हैं। इस्लामाबाद में शिखर वार्ता आयोजित करने के संदर्भ में यह सवाल उठेगा कि क्या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इसमें भाग लेने के लिए पाकिस्तान जाएंगे? इस बात की संभावना बहुत कम है कि मोदी इस्लामाबाद की यात्रा करेंगे। मोदी की गैरमौजूदगी में पूरी शिखर वार्ता ही निष्प्रभावी हो जाएगी।
इमरान खान की कश्मीर नीति भारत में मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा करने की है। इससे मोदी को कोई राजनैतिक नुकसान नहीं पहुंचता। इसके विपरीत घरेलू मोच्रे पर यह मोदी के लिए फायदा पहुंचाने वाला साबित होता है। मोदी सरकार, आरएसएस और हिंदू राष्ट्र के बारे में इमरान खान ने जो जहर उगला है, उससे अंतरराष्ट्रीय बिरादरी प्रभावित होने वाली नहीं है। घरेलू मोच्रे पर जो राजनीतिक दल, बुद्धिजीवी और सिविल सोसाइटी के लोग मोदी सरकार पर इन्हीं आधारों पर टीका-टिप्पणी करते हैं; उन्हें मदद मिलने की बजाय उनके लिए धर्मसंकट पैदा होता है। उनकी तकरे पर आधारित आलोचना भी इमरान खान के पल्राप के कारण कमजोर पड़ती है।
जहां तक जम्मू-कश्मीर की राजनीति का सवाल है, वहां के गैर भाजपा राजनीतिक दल अनु. 370 हटाए जाने और विभिन्न प्रतिबंधात्मक उपायों के विरुद्ध एकजुट हो रहे हैं। देश की लोकतात्रिक व्यवस्था के अंतर्गत उन्हें जो अधिकार हैं, उनका प्रयोग करते हुए वे मोदी सरकार पर अपने फैसले पलटने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। कश्मीरी अवाम और नेताओं को इमरान खान जैसे नकारा और पाखंडी नेताओं के समर्थन की दरकार नहीं है। इमरान पाकिस्तान में अनेक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। विपक्ष उनके खिलाफ एकजुट हो रहे हैं। वहां की सेना इमरान की कश्मीर नीति को जमीन पर उतारने का जोखिम नहीं उठा सकती। संभावना है कि घटती लोकप्रियता और सरकार की नाकामी के कारण इमरान सेना का ही समर्थन खो बैठें।
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