मीडिया : बॉलीवुड और मीडिया
बॉलीवुड के नशे की समकालीन कहानी ऐसी ‘ट्रैजिक’ कहानी है जो दर्शकों तक लाइव ‘कॉमेडी’ की तरह पहुंचती है।
मीडिया : बॉलीवुड और मीडिया |
बड़े हीरो-हीरोइनों के पतन को देख हम दुखी न होकर सुखी महसूस करते हैं। यह दौर भी ‘खुंदकवादी कल्चर’ का दौर है। अधिकांश लोग अपने अलावा बाकी सबको ‘गिरते’ देखना पंसद करते हैं।
यों भी, जो ‘देव-दुर्लभ’ सुख नामी हस्तियों को गिरता देखने में है, वह कोरोना महामारी के दूसरे राउंड, किसानों को बड़े कॉरपोरेट का भावी गुलाम बना देने वाले ‘क्रांतिकारी कानून’ या बढ़ती बेरोजगारी की समस्या या गहराते आर्थिक संकट आदि को समझने-समझाने वाली शुष्क और तकलीफदेह कहानियों में कहां? बड़े लोग गिरें। बड़े नामों की शेम-शेम हो। जो चमकते व ग्लैमररहित चेहरे हमें चकाचौंध करते थे और जिनको दिखा-दिखाकर अपना मीडिया अपनी जेबें भरता था और प्रिंट मीडिया उनके फोटो फीचर छापकर कमाई करता था, वही अब उनको शिखर से गिरता दिखाकर कमाई कर रहा है। बड़े हीरो-हीराइनों की अंदर की गोपनीय लीलाओं को उजागर करना, एक ऐसा ‘स्टारडस्टी लाइव पीप शो’ है जो मीडिया को ‘सत्य हरिश्चंद्र’ का ‘अवतार’ बनने का अवसर देता है तो दूसरी ओर दर्शकों को ‘सेक्सिस्ट’ और ‘सेडिस्ट’ बनाता है।
फिर, इस कहानी में हिट होने के सारे नुस्खे हैं। एक से एक ‘सेक्सिस्ट सीन’ हैं। टीवी स्क्रीन में एक ओर हीरो-हीरोइनें पार्टी कर रहे हैं, नशेडी से दिख रहे हैं, एक से एक सेक्सी ड्रेस में नाच-गा रहे हैं, दूसरी ओर एंकरों-रिपोर्टरों की लाइव कमेंटरी चल रही है कि ये आ रही है रिया, वो आ रही है सारा अली, श्रद्धा कपूर और दीपिका पादुकोण और कल आंएगे बड़े- बड़े नाम जैसे जौहर, रनबीर कपूूर, शाहिद कपूर। ये वो वो वो..चालीस-पचास नाम सब लाइन हाजिर होंगे। एनसीबी सबसे नशे के बारे में सवाल करेगी कि कब लिया? कहां लिया? किसने दिया और फिर-फिर पूछताछ पर पूछताछ। सब कुछ लाइव लाइव दिखता है। कानून व अपराध विशेषज्ञों की कमेंटरी भी चलती रहती है, जनता नशेड़ियों के दंडित होने का सुख लेने के लिए इंतजार करती रहती है और हर एंकर, हर शाम जनता के इंतजार को बढ़ाता रहता है। ज्यों ही कोई ग्लैमररहित चेहरा जांच एजेंसी के दफ्तर में आता और दफ्तर से जाता है तो दर्जनों रिपोर्टर टूट पड़ते हैं और जोर-जोर से बताने लगते हैं कि आज उससे क्या पूछा गया है? वो ड्रग्स लेती थी कि नहीं? और कौन-कौन लेता था और कि वो तब रो पड़ी और वह गुस्से में आ गई..सदा मुस्कुराते चेहरों को परेशानी में पड़ता देख ऐसा ‘आनंद’ बरसता है कि दर्शक चैनल पलट-पलट कर नये-नये सीन देखने को मचल उठते हैं।
एक तरह का ‘विरेचन’ होता है: इन बड़े ताकतवर नामों की फजीहत होती देख हम पहली बार इनके ग्लैमर के आतंक से मुक्ति का अनुभव करते हैं और ग्लैमर की इस दुनिया की अंदरूनी ‘गंदगी’ पर नोक भौं सिकोड़ कर अपने को श्रेष्ठ समझने का सुख पाते हैं। एंकर, रिपोर्टर व विशेषज्ञ इसी विंदु से कहानी को नैतिक मोड़ देकर कहने लगते हैं कि युवा जिनको देवता की तरह पूजते हैं, वही इनके प्रभाव से नशे में फंसकर ‘देश विरोधी’ हो सकते हैं क्योंकि यह नशा देश विरोधी बनाता है..इसलिए जरूरी है कि बॉलीवुड को नशे से मुक्त किया जाए। उसकी सफाई की जाए ताकि युवा पीढ़ी नशे के जाल में न फंसे।
मीडिया ने जब से कहानी को नशे की ओर मोड़ा है तभी से मीडिया समेत कुछ नेताओं द्वारा मांग की जा रही है कि अब बॉलीवुड की ‘सफाई’ जरूरी है जबकि यही मीडिया था जो इन्हीं बड़े हीरो-हीरोइनों की हर फिल्म के प्रोमो दिया करता था, उनके पहले शोज के ‘दर्शकों’ से फिल्मों की तारीफें करवाया करता था और दो सौ करोड़, तीन सौ करोड़ क्लब वाले हीरोज को देवता की तरह पूजता था। तब ऐसा क्या हुआ कि मीडिया की नजर में बॉलीवुड अचानक ‘गांजापुर’, ‘गजेंड़ीपुर’ बन गया और वह सफाई की मांग करने लगा? कई अन्य कारणों के अलावा, बॉलीवुड से मीडिया के इस ‘लव हेट’ का एक बड़ा कारण मीडिया और बॉलीवुड के बीच की अनकही स्पर्धा व ईष्र्या भी है। मीडिया जानता है कि बॉलीवुड के पास सिर्फ ग्लैमर है, जबकि मीडिया के पास न केवल ग्लैमर है, बल्कि उसके पास सत्ता की ‘पावर’ भी है, वह सत्ता का ‘चौथा पाया’ जो है, जो कि बॉलीवुड नहीं है। इसलिए भी मीडिया बॉलीवुड का ‘मैकअप मैन’ होकर भी उसके ग्लैमर से ईष्र्या का भाव रखता है। इसीलिए मौका मिलते ही उसकी ‘सफाई’ कराने में लग गया है। यह और बात है कि ये खबर चैनल और उनके एंकर भी कोई दूध के धुले नहीं।
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