खेती-किसानी : व्यापक हितों का भी ध्यान रहे

Last Updated 24 Sep 2020 01:18:03 AM IST

इन दिनों खेती-किसानी पर बहस जोर पकड़ रही है। जहां सरकारी पक्ष ने तीन नये कानूनों का भरपूर समर्थन किया है, वहीं अनेक किसान संगठनों ने इनका विरोध किया है।


खेती-किसानी : व्यापक हितों का भी ध्यान रहे

लोकतंत्र में इस तरह की बहस से ही नागरिकों की सही समझ बनती है और दोनों पक्षों को अपने विचार तथ्यात्मक और तर्कसंगत ढंग से लोगों के सामने रखने चाहिए। देश के लिए बहस की उपयोगिता तब और बढ़ जाएगी जब तीन नये कानूनों से आरंभ हुई इस बहस में कुछ अन्य मुद्दों को भी जोड़ दिया जाए।
अनेक किसान संगठन बहुत समय से यह कहते रहे हैं कि  देश की खेती-किसानी संकट में है। उनकी यह चिंता सही है। यह चिंता केवल उनकी ही चिंता नहीं है अपितु पूरे देश की चिंता है। इस संकट से खेती-किसानी और करोड़ों किसानों की रक्षा जरूरी है और इसके साथ यह भी स्पष्ट है कि जो भी उपाय हों, वे केवल अल्पकालीन न होकर टिकाऊ और दीर्घकालीन होने चाहिए। अल्पकालीन उपाय तो बहुत समय से चले आ रहे हैं। जैसे किसी कर्ज को रोकना या खाते में कुछ पैसे जमा करना। इन अल्प-कालीन उपायों का भी राहत के रूप में कुछ महत्त्व तो जरूर है पर इनसे कोई स्थायी समाधान या टिकाऊ समाधान नहीं निकलता है। खेती-किसानी के संकट में होने का अर्थ यह है कि मौजूदा व्यवस्था में भी कुछ कमियां तो जरूर हैं। सरकार का कहना है कि इन कमियों को दूर करने के लिए ही वह नये कानून बना रही है पर किसान संगठनों का कहना है कि इससे स्थिति सुधरने के स्थान पर और बिगड़ जाएगी। हमारे लोकतंत्र में किसानों को अपनी बात रखने का पूरा हक है पर इसके साथ उन्हें अपने विकल्प भी सामने रखने चाहिए। एक बड़ा मुद्दा यह है कि किसानों के कृषि-खर्च बहुत तेजी से बढ़े हैं और इन्हें कम कैसे किया जाए। दूसरी बड़ी बात यह है कि महंगे तौर-तरीके केवल जेब पर ही भारी नहीं पड़ रहे हैं अपितु पर्यावरण का भी भारी विनाश कर रहे हैं। अत: यदि खर्च न्यूनतम हो जाएं और पर्यावरण की रक्षा वाले तौर-तरीके अपना लिए जाएं तो किसानी और खेती-किसानी का संकट बहुत हद तक कम हो सकता है। इस समय विश्व स्तर पर सैकड़ों उदाहरण हैं, जहां ये दोनों उद्देश्य सफलतापूर्वक इस तरह प्राप्त किए गए कि उत्पादन में भी कमी नहीं आई। इसे प्राय: एग्री-इकॉलजी की राह कहा गया है।

क्यूबा का शानदार उदाहरण हमारे सामने है, जहां खर्च कम करने वाले और पर्यावरण की रक्षा वाली तकनीकें बहुत समझदारी से अपनाई गई तो खाद्य उत्पादन कम होने के स्थान पर बढ़ गया। हमारे देश में भी अनेक स्थानों पर ऐसे तौर-तरीके अपनाए गए हैं और उनके अच्छे परिणाम भी मिले हैं। दूसरी बड़ी बात यह है कि गांव में अधिक विविध रोजगार के स्त्रोत उपलब्ध होने चाहिए। और यह खाद्य कृषि उत्पाद और वन/वृक्ष उत्पाद प्रसंस्करण से संभव है और अन्य प्रदूषणरहित उद्योगों से भी संभव है। सूचना तकनीक का भी इसमें योगदान हो सकता है। यदि विविधता भरा रोजगार हो तो किसान, दस्तकार, भूमिहीन मजदूर सभी परिवारों को लाभ होगा।
जो सबसे निर्धन भूमिहीन गांववासी हैं, उन्हें भी खेती-किसानी और ग्रामीण हित के सभी कार्यक्रमों से जोड़ना चाहिए। उनके लिए भी कुछ कृषि भूमि और किचन गार्डन की व्यवस्था होनी चाहिए। इस तरह यदि सभी ग्रामीण परिवारों के पास कम से कम कुछ भूमि होगी तो इस तरह गरीबी दूर करने के प्रयास, खाद्य-सुरक्षा को मजबूत करने के प्रयासों में सफलता मिलेगी और किसान संगठनों में लगभग सभी ग्रामीण परिवार शामिल हो जाने से ये संगठन भी बहुत मजबूत हो जाएंगे।
गांवों के व्यापक हितों के लिए इन संगठनों को हर तरह के नशे की समस्या को दूर करने के लिए भी बहुत सक्रिय होना चाहिए क्योंकि शराब और अन्य नशों की समस्या सबसे बड़ी सामाजिक समस्या के रूप में बढ़ती जा रही है। इस तरह के समाज सुधारों को खेती-किसानी सुधार से जोड़ते हुए महिलाओं को किसान संगठनों में महत्त्वपूर्ण स्थान मिलना चाहिए। वैसे भी अधिकांश छोटे किसान परिवारों में महिलाएं खेती-किसानी के कार्यों में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। सभी किसान संगठनों में महिलाओं के नेतृत्व में नशा-विरोधी समिति बना देनी चाहिए और इस समिति के प्रयासों का समर्थन पूरे किसान संगठनों को करना चाहिए। यदि इस तरह के ग्रामीण विकास के व्यापक मुद्दों को लेकर किसान संगठन आगे बढ़ें तो गांवों की खुशहाली को टिकाऊ और दीर्घकालीन तौर पर बढ़ाने में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी।

भारत डोगरा


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