ओजोन दिवस : ..ताकि बची रहे पृथ्वी
धरती से 10-40 किलोमीटर की ऊंचाई पर समताप मंडल में मौजूद ओजोन परत को पृथ्वी का रक्षक इसलिए माना जाता है कि यह सूर्य के अल्ट्रावॉयलेट विकिरण से इंसानों और अन्य जीवों को बचाने में काफी मददगार है।
ओजोन दिवस : ..ताकि बची रहे पृथ्वी |
चूंकि ग्रीन हाउस गैसों, खासकर रेफ्रीजरेटर्स और एयर कंडीशनरों में इस्तेमाल होने वाली क्लोरो-फ्लोरो गैसें रिसाव के कारण पृथ्वी की ऊपरी सतह में पहुंच कर ओजोन के कणों को विघटित कर देती हैं, इसलिए यह घटना चिंता का कारण मानी जाती रही है। साफ है, ओजोन की परत में कोई छेद (ओजोन होल) हो जाता है, तो खतरनाक अल्ट्रावॉयलेट किरणों तबाही मचा सकती हैं।
इस साल लॉकडाउन की शुरु आत में इसके बारे में कुछ अच्छी खबरें आई थीं। अप्रैल में ‘कॉपरनिक्स एटमॉस्फियर मॉनिटिरंग सर्विस’ के वैज्ञानिकों ने जानकारी दी थी कि इस साल मार्च में उत्तरी गोलार्ध के आर्कटिक इलाके में ओजोन परत में जो अभूतपूर्व छेद दिखा था, लॉकडाउन की शुरुआती अवधि में ही वह बंद हो गया। ग्रीनलैंड के आकार के बराबर इस छिद्र के बंद होने से काफी राहत मिली थी, लेकिन यह राहत शायद हमारे शहरों के लिए उतनी बड़ी नहीं है क्योंकि यहां ओजोन का एक नया ही चेहरा हमारे सामने है। दिल्ली जैसे बड़े शहरों में अब पता चल रहा है कि वहां की हवा में ओजोन की मात्रा खतरनाक ढंग से बढ़ रही है। इस खतरे के बारे में ‘सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट’ (सीएसई) जैसी संस्थाएं काफी पहले आगाह कर चुकी हैं। दो साल पहले 2018 में सीएसई ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के दिल्ली स्थित 31 निगरानी केंद्रों से वायु प्रदूषण के मिले आंकड़ों को देखा तो एक चौंकाने वाली बात पता चली। देखा गया कि दिल्ली में फरवरी-मई के बीच चार महीनों के दौरान कम से कम 23 दिन हवा में जहर घोलने के मामले में ओजोन को प्रमुख प्रदूषक पाया गया। शहरों में यह एक बड़े खतरे के शुरु आत है, क्योंकि हवा में बढ़ती ओजोन दिल की बीमारियों के अलावा सांस संबंधी रोगों, दमा और फेफड़ों की तकलीफों से पीड़ित मरीजों के लिए बहुत खतरनाक है। सेहत के लिए नया विलेन बन रही ओजोन गैस की मात्रा में खतरनाक इजाफे के संकेत शहरों में रोजाना दर्ज किए जा रहे वायु गुणवत्ता सूचकांक (एयर क्वॉलिटी इंडेक्स- एक्यूआई) के जरिए मिल रहे हैं। सीएसई के अध्ययन में बताया गया कि वर्ष 2018 में फरवरी से मई के दौरान एक्यूआई में ओजोन की मात्रा में बढ़ोतरी पाई गई जो सूक्ष्म कणों के साथ प्रमुख प्रदूषक रही है।
सवाल है कि हवा में यह ओजोन गैस कहां से आ रही है। असल में ओजोन काफी प्रतिक्रियाशील तत्व है, जो नाइट्रोजन ऑक्साइड से पैदा हुई गर्मी, सूरज की रोशनी और अन्य वाष्पशील गैसों के साथ प्रतिक्रया से बन रही है। ये गैसें वाहनों से निकलने वाले धुएं और अन्य स्रोतों से शहरी हवा में आकर मिलती हैं, जिनसे खतरनाक ओजोन पैदा होती है। खास बात यह है कि घनी बस्तियों में ओजोन की मौजूदगी ज्यादा बड़े संकट पैदा कर रही है। सीएसई ने अपने अध्ययन में पटपड़गंज, आरके पुरम, नेहरू नगर, नजफगढ़ और सोनिया विहार के औद्योगिक व निम्न आय वाले लोगों की आबादी वाले इलाकों में प्रदूषण की स्थिति सबसे खतरनाक पाई गई। ये सारे इलाके काफी घने बसे हैं और यहां वाहनों की रेलमरेल इस कोरोना काल में अनलॉक की प्रक्रिया के बाद पहले जैसी ही हो गई है। ओजोन और अन्य खतरनाक प्रदूषक गैसों से हवा में घुली जहर का मुकाबला मास्क और एयर प्यूरीफायर जैसे उपायों से कर भी लें, तो उस पर संकट यह है कि ये गैसें शहरों में हर वक्त भयानक गर्मी का अहसास भी करा रही हैं।
दो साल पहले 2018 में अमेरिकन जियोफिजिकल यूनियन के जियोफिजिकल रिसर्च लेटर जर्नल में प्रकाशित एक रिसर्च पेपर ‘अर्बन हीट आईलैंड ओवर दिल्ली पंचेज होल्स इन वाइडस्प्रेड फॉग इन द इंडो-गैंगेटिक प्लेन्स’ में इसी बदलाव का खुलासा किया गया था। यह अध्ययन बताता है कि वाहनों के धुएं के अलावा शहरों में तेजी से हो रहे हर किस्म के निर्माण कार्यों, बढ़ रहे शहरीकरण, हरित पट्टी (ग्रीन लेयर) में तेज गिरावट और कंक्रीट से तैयार हो रही संरचनाओं के कारण जमीन के अंदर की गर्मी सतह में या सतह के करीब फंसकर रह जाती है। इससे यह शहरों की गर्मी सर्दियों में ठंडक लाने वाले प्राकृतिक कोहरे तक को जला देती है। इसकी वजह से ग्रामीण इलाकों के मुकाबले शहरों का तापमान 4 से 5 डिग्री ज्यादा हो जाता है। यूं बात चाहे जहरीली हो रही ओजोन की हो या अर्बन हीट की, इन सभी के पीछे इंसानी लिप्सा है, जिसमें विकास के नाम पर प्रकृति को छिन्न-भिन्न किया जा रहा है।
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