नई शिक्षा नीति ? कितनी रोजगारपरक?

Last Updated 26 Aug 2020 12:50:24 AM IST

लगभग 32 सालों बाद नई शिक्षा नीति नये कलेवर के साथ तैयार है। अनपेक्षित बदलावों ने नये विमर्श को जन्म दिया है।


नई शिक्षा नीति ? कितनी रोजगारपरक?

साथ ही इसके दूरगामी प्रभावों को लेकर पड़तालों और विश्लेषण का अंतहीन दौर भी शुरू हो गया है। तमाम बड़े बदलावों और अभिनव प्रयोगों ने मौजूदा शिक्षा नीति को सबसे अलहदा बनाया है।
छठी कक्षा से व्यावसायिक शिक्षा को पाठ्यक्रम के एक अनिवार्य हिस्से के रूप में लागू किए जाने की अनुशंसा ने सहज ही बुद्धिजीवियों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया है। भारत में व्यावसायिक शिक्षा अर्थात वोकेशनल एजुकेशन कभी भी स्कूली स्तर पर शैक्षिक पाठ्यक्रम का हिस्सा नहीं रहा। हालांकि इंटरमीडिएट स्तर पर कुछेक जगहों पर भले ही इसे ऐच्छिक विषय की श्रेणी में रखा गया, लेकिन इसे कभी अनिवार्य विषय का दरजा प्राप्त नहीं हुआ। इसके चलते छात्रों में इसके चयन को लेकर कोई प्रवृत्ति विकसित नहीं हो पाई। इसे स्कूली स्तर पर अनिवार्य करने के पीछे एक आम धारणा यह है कि इससे छात्रों में कौशल और हुनर को लेकर सहजबोध होगा, जिससे उनमें सीखने और समझने की संस्कृति पनपेगी और कालक्रम में  रोजगार का  सृजन होगा और नये अवसर भी युवाओं को मिलेंगे। हालांकि इस प्रचलित धारणा के अन्य स्याह पक्ष भी है जिस पर गहन चिंतन की दरकार है।

इस नीति की सबसे क्रांतिकारी विशेषता यह है कि कम-से-कम 5 ग्रेड तक की पढ़ाई स्थानीय क्षेत्रीय भाषा में होगी, जिसे ग्रेड 8 तक भी बढ़ाया जा सकता है। अंग्रेजी अब सिर्फ  एक विषय के तौर पर पढ़ाई जाएगी। इस परिवर्तन को एक बड़ी युवा आबादी के स्वावलंबन के आलोक में देखा जाना चाहिए। निश्चित ही देश की आबादी में युवाओं की बड़ी भूमिका है। लगभग 51 फीसद युवा आबादी वाले इस देश में  12 से 14 फीसद युवा ही ऐसे  हैं, जो उच्च शिक्षा के विभिन्न पाठ्यक्रमों में प्रवेश ले पाते हैं। इसके लिए  कुछ ऐसी व्यवस्था हो, जिसमें  छात्रों के पास अपने अकादमिक कॅरियर के दौरान व्यावसायिक शिक्षा को चुनने का विकल्प हो और वे इस चुने गए विकल्प पर एक उचित समयावधि तक काम कर सकें। इससे  उन्हें अधिक व्यापक कोर्स का  लाभ मिलेगा और आगे चल कर उनके पास यह विकल्प रहेगा की वे उच्च व्यावसायिक डिग्री ले सकेंगे या फिर किसी अन्य विषय/संकाय के प्रोग्राम में पढ़ाई जारी रख सकेंगे। हालांकि नई शिक्षा नीति के प्रारूप में व्यावसायिक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए स्किल गैप एनालिसिस, स्थानीय अवसरों का पता लगाना, सभी शैक्षिक संस्थानों के साथ व्यावसायिक शिक्षा एकीकरण के लिए वित्तीय सहयोग, बुनियादी संरचना एवं व्यावसायिक शिक्षा को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए लोगों की भर्ती, तैयारी और सहयोग के लिए पर्याप्त निवेश, अप्रेंटिसशिप को प्रोत्साहित करने जैसे कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाये जाने की बात की गई है। बहुत संभव है इससे छात्रों के लिए नई राह खुले और बेरोजगारी की जड़ता भी कुछ हद तक खत्म हो। इसके अतिरिक्त सभी शैक्षिक संस्थानों द्वारा उनके पाठ्यक्रम में व्यावसायिक कोर्स को शामिल करना इस दिशा में एक अहम कड़ी साबित हो सकती है। तथपि छात्रों को आत्मनिर्भर और स्वावलम्बी बनाने की दिशा में बहुत कुछ किया जाना अभी शेष है।
विभिन्न स्कूलों और कॉलेजों के स्नातकों को शिक्षा पूर्ण करने के उपरांत रोजगार के पर्याप्त मौके मिल सके  इसके लिए मानक उद्योग संस्थानों और भावी नियोक्ताओं को साथ मिलकर काम करना होगा। आईटीआई, पॉलिटेक्निक, स्थानीय उद्योगों और कारोबार, खेतों, अस्पतालों और गैर सरकारी संस्थानों और ऐसी अन्य सुविधाओं के साथ समन्वय करना होगा, जहां छात्रों को व्यावहारिक कौशलों का प्रशिक्षण  दिया जा सके।
साथ ही ऐसे शिक्षा कार्यक्रमों को विकसित करना होगा जो मुख्यधारा की शिक्षा से एकीकृत हो और जिनसे प्राप्त व्यावहारिक प्रशिक्षण को, उससे  संबद्ध सैद्धांतिक ज्ञान से पूरा किया जा सके। इन कार्यक्रमों में महत्त्वपूर्ण जीवन कौशल जैसे-सम्प्रेषण, कौशल, डिजिटल और वित्तीय साक्षरता, उद्यमिता आदि से संबंधित कोर्स भी शामिल होने चाहिए। नई शिक्षा नीति उम्मीदों के साथ एक नई उड़ान है। युवा आबादी इसके बूते अपने सपनों को नया रंग और नई जमीन दे पाएगी। बशर्ते क्रियान्वयन और निगरानी स्तर पर कोई कोताही ना हो। साथ ही यह सरकार और शिक्षा विशेषज्ञों के लिए भी अहम मौका है, जहां उनके प्रस्तावों की बड़े पैमाने पर परख भी होगी।

डॉ. दर्शनी प्रिय


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