कश्मीरी पंडित : घर वापसी अभी दूर है

Last Updated 25 Aug 2020 01:24:37 AM IST

पिछले 30 साल से अपनी जन्मभूमि से बिछड़ने की पीड़ा झेल रहे कश्मीरी पंडित समुदाय के लिए अनुच्छेद 370 के हटने के बाद का साल भी कुछ खास उम्मीद नहीं लेकर आया है।


कश्मीरी पंडित : घर वापसी अभी दूर है

यह 31वां साल भी इस निष्कासित समुदाय के लिए निराशा भरा ही बीतता प्रतीत हो रहा है।
ज्यादातर कश्मीरी पंडितों का मानना है कि धारा 370 के हटने से उनकी घर वापसी के संभव होने के बीच कोई संबंध नहीं है। इसके हटने से घर वापसी का रास्ता अभी नहीं खुला है। अगस्त 5, 2019 से अब तक केंद्र सरकार की तरफ से ऐसा कोई आश्वासन या कदम नहीं उठाया गया है, जिससे उनको वापसी का सकारात्मक प्रयास का भरोसा मिले। ज्यादातर कश्मीरी पंडितों का मानना है कि अनुच्छेद 370 हटाने के दौरान केंद्र सरकार ने उनकी घर वापसी पर कोई विचार ही नहीं किया। राज्य का विशेष दरजा हटा, लद्दाख को अलग किया गया, लेकिन आतंकवाद के सीधे तौर पर शिकार हुए इस चार लाख से ज्यादा समुदाय के लिए कुछ ठोस न तो सोचा गया ना ही कुछ किया गया। और ना ही पिछले एक साल में कोई रणनीति बनाई गई समुदाय के घर वापसी के लिए,  शैक्षिक और संवैधानिक  अधिकारों की रक्षा के लिए या उनके उत्थान के लिए। कश्मीरी पंडितों की निराशा का कारण यह भी है कि केंद्र सरकार ने कई बार कहा है कि जब तक कि घाटी में सुरक्षित वातावरण नहीं बनता है तब तक घर वापसी कठिन है।

कश्मीर में सुरक्षा व्यवस्था कब सुधरेगी इसका भरोसा किसी के पास नहीं है। सरपंच अजय पंडिता की हत्या के बाद असुरक्षा के भाव फिर से समुदाय में बढ़ गए हैं। अजय पंडिता की सुरक्षा मांग को अनदेखा करने से समुदाय में कई प्रश्न फिर से खड़े हुए हैं। जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित राज्य होने के कारण सुरक्षा का दायित्व सीधे केंद्रीय गृह मंत्रालय पर होता है। जब धारा 370 को हटाया गया, तब केंद्र सरकार ने कुछ ऐसे फैसले लिये, जिनसे जम्मू में पिछले 7 दशक से बस रहे पाकिस्तान से आये शरणार्थियों तथा वाल्मीकि समुदाय (दलित वर्ग) को तुरंत उनके अधिकार मिल गए और साथ ही वित्तीय मदद भी दी गई, लेकिन घाटी के मूल निवासी विस्थापित कश्मीरी पंडितों के लिए कुछ भी नहीं किया गया। सन 1927 में जम्मू-कश्मीर में ‘स्टेट सबजेक्ट लॉ’ अमल में आया तो इसके बनने में कश्मीरी पंडितों का बहुत बड़ा योगदान रहा था। उस समय इस कानून के पीछे उनका मकसद यही था कि राज्य में कश्मीरी पंडितों का हक सुनिश्चित रहे, लेकिन आज 93 साल के बाद कश्मीरी पंडितों के पास न तो घाटी है, न कोई अधिकार और ना ही कोई आश्वासन।  दशकों पहले जिस कानून का उन्होंने इसलिए समर्थन  किया था कि गैर राज्य वाले उनकी नौकरियां न छीन ले, आज उसी कानून के हटने से उनको न तो दुख है और ना ही खुशी।
अनुच्छेद 370 के हटने के एक साल बाद भी उन्हें अपनी जमीन, संस्कृति, भाषा, रीति-रिवाज बिखरते दिख रहे हैं और सरकार की तरफ से इससे बचाने के लिए कोई मदद नहीं दी जा रही है। यहां तक कि सूबे में हिंदुओं को अल्पसंख्यक होने का दरजा भी नहीं दिला पाई है। 2017 में केंद्रीय अल्पसंख्यक आयोग के  अध्यक्ष सैयद गैरुल हसन रिजवी ने कहा था कश्मीरी पंडितों को कश्मीर में अल्पसंख्यक होने का दरजा मिलना चाहिए। सर्वोच्च अदालत में भी यह मामला सामने आया है, लेकिन केंद्र सरकार ने इस मामले पर कोई ठोस कदम नहीं उठाए हैं। इस कारण कश्मीरी पंडित घाटी में अल्पसंख्यक होने के बावजूद प्रधानमंत्री और सरकारी योजनाओं के तहत सुविधाएं लेने में असमर्थ है। अनुछेद 370 के खत्म होने से पहले और बाद भी केंद्र सरकार ने कहा था कि घाटी के दस जिलों में विस्थापित कश्मीरी पंडित समुदाय को बसाया जाएगा। यह भी कहा गया की जम्मू-कश्मीर में 50,000 मंदिरों की  पुन:स्थापना की जाएगी, लेकिन अभी तक घाटी में एक भी मंदिर का पुनर्निर्माण नहीं किया गया है। समुदाय ने केंद्र सरकार की ओर से अभी तक एक भी ठोस नीति नहीं देखी है, जो उनके आर्थिक उत्थान, शैक्षिक, संवैधानिक गारंटी और घाटी में वापसी के बारे में बात करती हो। यहां तक कि इस साल के जम्मू-कश्मीर बजट में भी पंडितों के वापसी, पुनर्वास, राहत और भलाई से जुड़ा कुछ नहीं है।
धारा 370 खत्म होने का बाद घाटी में दो अहम कदम उठाए जा रहे हैं डोमिसाइल और  डिलिमिटेशन का। विस्थापित पंडितों को स्थानीय नागरिकता प्राप्त करने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ रही है। वहीं पर डिलिमिटेशन और चुनावी प्रक्रिया में खुद को यह समुदाय असहाय महसूस कर रहा है। पिछले तीन दशकों में घाटी में हजारों विस्थापित कश्मीरी पंडितों के नाम मत सूची से गायब कर दिए गए हैं। 2019 में लोक सभा चुनाव के दौरान पंडितों ने जम्मू में विरोध प्रदर्शन भी किया था कि उनके नाम मत सूची से हटा दिए गए हैं। कुछ पंडित संस्थानों के मुताबिक यह आंकड़ा लाखों में है। इस पर केंद्र सरकार का क्या रुख रहेगा और चुनाव आयोग किस तरह से इस मुश्किल से निपटेगा, कश्मीरी पंडितों की नजर रहेगी।
घाटी में 370 के हटने के बाद नये कश्मीर का नारा दिया गया, लेकिन इस नये कश्मीर में अल्पसंख्यक और निष्कासित कश्मीरी समुदाय के लिए अभी तक कोई खास जगह मिलती नहीं दिख रही है। तीस साल पहले हुए पलायन की परिस्थिति और अनगिनत हत्याएं, बलात्कार, अपहरण, लूटपाट, आगजनी, मंदिरों में तोड़फोड़, पंडितों के मकानों और जमीनों पर कब्जे, इन सारे अपराधों का हिसाब अभी भी बाकी है। मोदी सरकार ने कश्मीरी पंडितों की पीड़ा को पाकिस्तान के खिलाफ अतंरराष्ट्रीय स्तर पर कई बार उठाया है और बीजेपी ने पंडितों की पीड़ा को भी हर चुनाव में मुद्दा बनाया है, लेकिन जम्मू-कश्मीर में बदली हुई परिस्थिति में निष्कासित कश्मीरी पंडित समुदाय आज भी अपने को अलग-थलग और दिशाहीन पा रहा है।

दीपिका भान


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