बासमती : मध्य प्रदेश और पंजाब आमने-सामने

Last Updated 13 Aug 2020 03:11:06 AM IST

देश में बासमती चावल को लेकर बहस सी छिड़ गई है। मध्य प्रदेश में उगाए गए बासमती चावल के लिए जीआई टैग (भौगोलिक संकेत) की मांग ने बीजेपी शासित मध्य प्रदेश और कांग्रेस शासित प्रदेश पंजाब में बहस छेड़ दी है।


बासमती : मध्य प्रदेश और पंजाब आमने-सामने

मध्य प्रदेश में इसके भौगोलिक संकेत की मांग तेज हो गई है और पंजाब इसका विरोध कर रहा है। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने केंद्र को पत्र लिखकर मध्य प्रदेश में पैदा होने वाले बासमती चावल को जीआई (जियोग्राफिकल इंडिकेशन) टैग नहीं देने के लिए कहा है। कहा है कि इस व्यवस्था में छेड़छाड़ से पंजाब और अन्य राज्यों के हित प्रभावित होंगे, जिन्हें बासमती चावल को लेकर पहले से ही ‘जीआई टैग’ हासिल है।
गौरतलब है कि मध्य प्रदेश में 27 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हैं, किसानों की कर्जमाफी, बिजली बिल, यूरिया जैसे मुद्दे तो हैं ही, अब दोनों राज्यों के बीच चावल युद्ध से भी कांग्रेस-बीजेपी के बीच नई लड़ाई शुरू हो गई है। जीआई टैग उन चुनिंदा उत्पादों को दिया जाता है जो किसी विशेष क्षेत्र या जगह में पैदा होते हैं, या तैयार किए जाते हैं। गौरतलब है कि चावल में बासमती का अपना ठाठ है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा चावल निर्यातक है तो इसमें बड़ी हिस्सेदारी बासमती की है। पिछले साल भारत ने 70 लाख टन चावल का निर्यात किया। बासमती चावल के उत्पादन और निर्यात में बड़ी हिस्सेदारी देश के सात उत्तरी राज्यों पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड  दिल्ली और जम्मू-कश्मीर की रही है। मध्य प्रदेश के 13 जिलों में बासमती की खेती होती है, पिछले साल राज्य में 3 लाख टन बासमती की पैदावार हुई। लेकिन राज्य के पास जीआई टैग नहीं है। हालांकि निर्यातित कुल बासमती चावल में प्रदेश का हिस्सा 15 प्रतिशत से ज्यादा है। मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान का कहना है कि मध्य प्रदेश को जीआई टैगिंग से अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भारतीय बासमती की कीमतों को स्थिरता मिलेगी और देश के निर्यात को बढ़ावा मिलेगा। मध्य प्रदेश का बासमती चावल अत्यंत स्वादिष्ट माना जाता है और जायके तथा खुशबू के लिए यह देश-विदेश में प्रसिद्ध है।

यही वजह है कि प्रदेश सरकार अपने यहां पैदा होने वाले चावल को लंबे समय से जीआई टैग दिलाने की मांग कर रही है। पंजाब तथा अन्य राज्य इसका विरोध कर रहे हैं क्योंकि उन्हें डर है कि इससे अन्य देश भी इस छूट का इस्तेमाल करके बासमती के अंतरराष्ट्रीय बाजार में कूद जाएंगे। जियोग्राफिकल इंडिकेशन ऑफ गुड्स (रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन) एक्ट, 1999 के तहत जीआई टैग उन कृषि उत्पादों को दिया जाता है जो किसी क्षेत्र विशेष में विशेष गुणवत्ता और विशेषताओं के साथ पैदा होते हैं। इन विशेषताओं के चलते ही ऐसे उत्पादों को उनके भौगोलिक उत्पत्ति के आधार पर जीआई टैग दी जाती है। भारत में जीआई टैगिंग बासमती चावल को उसकी गुणवत्ता, स्वाद और खुशबू के लिए दी जाती है। मौजूदा समय में बासमती चावल के लिए भौगोलिक संकेत का स्वामित्व वाणिज्य मंत्रालय के तहत आने वाले कृषि एवं प्रोसेस्ड फूड एक्सपोर्ट डवलपमेंट अथॉरिटी (एपीडा) के तहत आता है। भौगोलिक संकेत बताता है कि बासमती चावल इंडो-गंगा के मैदानों में विशेष रूप से उगाए गए लंबे अनाज चावल के रूप में पाया जाता है।
बहरहाल, जीआई टैग की वजह से ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारत बासमती का सबसे बड़ा निर्यातक है क्योंकि  भारत और पाकिस्तान के अलावा अन्य किसी देश के बासमती के पास जीआई टैग नहीं है। भारत ज्यादा मात्रा में बासमती चावल पैदा करता है और पाकिस्तान उतना पैदा नहीं कर पाता। ऐसे में बासमती के अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारत र्वल्ड लीडर है। सालाना लगभग 40 लाख टन चावल का निर्यात करता है। खैर, बता दें कि इस बासमती प्रकरण का आर्थिक-राजनीतिक फायदा यह है कि जीआई टैग मिला तो शिवराज और बीजेपी की साख बढ़ेगी तो वहीं पंजाब को डर बादशाहत खत्म होने और आर्थिक नुकसान का है क्योंकि कुछ सालों से मप्र के किसान बासमती धान की ओर आकर्षित हो रहे हैं। साल दर साल इसका उत्पादन भी बढ़ा है। यहां सालाना 4 लाख मीट्रिक टन से अधिक बासमती चावल का उत्पादन होता है। विदेश निर्यात की मप्र को अनुमति मिल जाएगी तो लगभग 40 फीसदी बासमती अमेरिका और कनाडा जाएगा। इससे पंजाब को नुकसान है क्योंकि अभी पंजाब इन देशों में बासमती भेज रहा है।

रविशंकर


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