स्वाधीनता संग्राम : इनका योगदान भी अहम

Last Updated 11 Aug 2020 12:03:59 AM IST

भारत की आजादी के मुख्य संघर्ष का इतिहास प्राय: कांग्रेस की स्थापना के बाद से आरंभ होता है।


Freedom Struggle, Their contribution is also important, स्वाधीनता संग्राम, इनका योगदान भी अहम

लोकमान्य तिलक के आरंभिक आंदोलन व ‘बाल, लाल, पाल’ का नेतृत्व इसके आंरभिक अयाय की तरह है। पर इससे पहले अनेक शोषण विरोधी संघर्ष व समाज-सुधार प्रयासों ने इसके लिए जो पृष्ठभूमि तैयार की उसे प्राय: भुला दिया जाता है जबकि इस दौर में भी बहुत प्रेरणादायक कार्य हुए।
1859-60 में बंगाल में नील किसानों का महान आंदोलन हुआ। किसानों से जबरदस्ती नील की खेती करवाई जाती थी व नील बहुत सस्ते में बेचने को मजबूर किया जाता था। आनाकानी करने पर उन्हें बहुत मारा जाता था या जेल भेज दिया जाता था। इस समस्या पर दीनबंधु मित्र का नाटक नीलदर्पण 1860 में प्रकाशित होकर बहुचर्चित हुआ। लाखों किसानों ने नील की खेती करने से इनकार कर दिया। उन्हें बुद्धिजीवियों का समर्थन मिला। सरकार ने कुछ राहत देने के कदम उठाए। बिहार में दरभंगा और चम्पारन में 1866-68 में नील की खेती के शोषण के विरुद्ध विद्रोह हुए। सूदखोरी और वन-अधिकारों के हनन के खिलाफ आंध्र के गोदावरी राम्पा क्षेत्र में आदिवासियों ने फिर 1858, 1861 और 1862 में आवाज उठाई। 1879 में यह संघर्ष अपनी चरम सीमा पर पहुंच कर 5000 वर्ग मील के क्षेत्र में फैल गया व नवम्बर 1880 में 6 रेजीमेंटों को लगाने के बाद ही दबाया जा सका। पर 1886 में यहां विरोध फिर भड़का और जुल्म के खिलाफ लड़ रहे आदिवासियों ने अपने को राम का सैनिक कहा। पूना और अहमदनगर जिलों में वर्ष 1875 में 33 स्थानों पर साहूकारों के विरुद्ध गांववासियों के विद्रोह हुए।

उन्होंने कर्ज के कागजों को कई जगह पर जला दिया। 1873 में पाबना (बंगाल) में अधिक लगान जैसे मुद्दों पर किसानों के विद्रोह हुए। 1872 से 1876 में पूर्वी बंगाल में कई स्थानों पर जमींदार विरुद्ध किसानों के संघर्ष हुए। कई जगह किसानों ने लगान देने से इनकार किया। उन्हें बुद्धिजीवियों का समर्थन भी मिला। शिक्षित वर्ग द्वारा देश की हालत में सुधार व महत्त्वपूर्ण प्रश्नों पर विचार के लिए अनेक संस्थायें आरंभ की जाने लगी। दादा भाई नौरोजी ने 1866 में लंदन में ईस्ट इंडिया एसोसियेन की स्थापना की। साथ ही ब्रिटिश साम्राज्यवाद की अर्थशास्त्रीय आलोचना तैयार की, जिसमें दादा भाई नौरोजी की विशेष भूमिका रही। इन्ही दिनों स्वामी विवेकानंद (1863-1902) ने भारतवासियों का आत्मसम्मान जगाने में और उन्होंने सार्थक बदलाव की राह दिखाने में अति प्रेरणादायक कार्य किया। हिन्दुओं में धार्मिक सुधार के कार्य को अपनी-अपनी तरह से आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द ने और ब्रrा समाज के देवेन्द्र नाथ ठाकुर ने आगे बढ़ाया। मुस्लिमों में आधुनिक शिक्षा के प्रसार के लिए सैयद अहमद खान ने महत्त्वपूर्ण कार्य किया। गुरुद्वारों से भ्रष्टाचार मिटाने के लिए सिख अकालियों ने बड़ी बहादुरी से संघर्ष चलाया, जिसमें सैकड़ों व्यक्तियों ने अपना बलिदान दिया, तब जाकर सफलता मिली। महिलाओं की स्थिति सुधारने के प्रयास अनेक समाज सुधारको ने किए व 1927 में आल इंडिया वूमेन्स कांफ्रेंस की स्थापना की गई। केरल में नारायण गुरु ने जाति-प्रथा के खिलाफ जीवन-भर संघर्ष चलाया। राम मोहन राय ने महिलाओं के हक के लिए सती प्रथा के उन्मूलन के लिए व शिक्षा के प्रसार के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण कार्य किया। साथ ही उन्होंने प्रेस की आजादी और न्यायिक सुधारों के लिए भी प्रयास किया। ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने विवाह के लिए और नारी-शिक्षा के लिए उल्लेखनीय काम किया। महाराष्ट्र में जाति की कट्टरता, रूढ़िवाद व अंधविश्वास को तोड़ने के लिए बाल शास्त्री जांबेकर, परमहंस मंडली, प्रार्थना समाज, जस्टिस रानाडे, गोपाल हरि देशमुख और ज्योतिबा फुले ने महत्त्वपूर्ण कार्य किया।
दादा भाई नौरोजी ने पारसियों में सामाजिक सुधार के लिए उल्लेखनीय कार्य किया। हेनरी विवियन डेरोजिओ व उनके द्वारा स्थापित यंग बंगाल ने देशभक्ति, जन-जागृति और समाज-सुधार के क्षेत्र में युवा वर्ग को बहुत प्रभावित किया। एंग्लो इंडियन समुदाय में भारतीयता की पहचान दृढ़ करवाने के लिए भी डेरोजिओ को याद किया जाएगा। रांची और सिंहभूमि के क्षेत्र में बिरसा मुंड़ा के नेतृत्व में बहुचर्चित आदिवासी विद्रोह हुआ। ये आदिवासी भूमि छिनने, वन-अधिकार कम होने व बेगार-प्रथा के कारण बुरी तरह त्रस्त थे। इस विद्रोह  ने रांची के अंग्रेजों में दहात फैलाई थी पर कुछ समय बाद इसे निर्ममता से कुचल दिया गया। बिरसा मुंड़ा की मृत्यु जेल में हो गई, पर बाद में सरकार आदिवासियों के असंतोष को कम करने के लिए कुछ कानून बनाने को विवश हुई।

भारत डोगरा


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment