भूमि पूजन : शुभ घड़ी आई

Last Updated 05 Aug 2020 12:41:53 AM IST

जिस शुभ घड़ी का इंतजार देश ही नहीं दुनिया को था, आखिर वह आ ही गई। राम मंदिर के लिए देश ने जो सपना देखा था, वह पूरा हो रहा है।


भूमि पूजन : शुभ घड़ी आई

देखने वाले राम मंदिर को भले ही धार्मिंक नजरिए से देखें, लेकिन वह इससे कहीं अलग भारत की सद्भावना और शान का मुद्दा बनता गया और अंतत: एक पहचान भी। राम अपने जन्म स्थान में रहेंगे यही तो सब चाहते थे यहां तक कि वो  पक्षकार भी जिनका इससे सीधा सरोकार था। राम मंदिर को लेकर देश भर में चाहे जैसे मुद्दे बनते रहे हों और राजनीति वक्त की चाशनी के साथ अलग-अलग पर्तों में जमती रही, पर सच यह है कि जन्म भूमि के मूल निवासी यही चाहते थे कि मंदिर अयोध्या में ही बने और रामलला जहां थे वहीं विराजें।

अब तो राम मंदिर देश की आस्था और अस्मिता से भी जुड़ गया। तभी तो 130 करोड़ की आबादी में 150 लोगों को भेजा गया निमंत्रण पूरे देश को भेजे निमंतण्रजैसा लग रहा है। इसमें सबसे खास निमंतण्रजो पूरे देश को सच में अच्छा लगा वह है बाबरी मंदिर के पक्षकार हाजी महबूब इकबाल अंसारी को बुलाया जाना। उनकी खुशी और भावना इसी से समझी जा सकती है कि वह प्रधानमंत्री को रामचरित मानस और रामनामी गमछा भेंट करेंगे। सैकड़ों वर्षो के विवाद के घटनाक्रम में इससे सुंदर दूसरा पल शायद और कभी हो भी नहीं हो सकता। यही तो भारत की खासियत है।

यूं तो इस पूरे विवाद में हाजी इकबाल से पहले उनके पिता हाशिम अंसारी राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद के सबसे पुराने पक्षकार थे, जिनके 2016 में निधन के बाद इकबाल अंसारी बने, लेकिन इस पूरे मामले में देश में जहां-तहां भले ही कई बार तनाव की स्थितियां बनीं परन्तु बाबरी मस्जिद के दोनों पक्षकारों की मित्रता हमेशा चर्चा में रही, लेकिन यह सच है कि परस्पर विरोधी पक्षकार होकर भी अभिन्न मित्र अंत तक बने रहे। मंदिर हर भारतीय का है यह बात इससे भी साबित होती है कि डेढ़ सौ आमंत्रितों में एक दूसरे मुस्लिम भी हैं, जिन्हें लावारिश लाशों के अंतिम संस्कार के लिए पद्मश्री भी मिल चुका है।

वह हैं मोहम्मद शरीफ। यही तो भारत की रवायत है। वाकई मंदिर सबका है। कुछ भी हो जो सर्वमान्य हल सर्वोच्च न्यायालय ने दिया निश्चित रूप से एक नजीर भी है और समाधान भी। 5 अगस्त बुधवार को उसी नजीर पर देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, राम मंदिर की आधारशिला रख लंबे समय से विवादित मसले के समाधान की बुनियाद पर नई इमारत की आधारशिला रख एक नई इबारत लिखेंगे।

राम सबके हैं, देश राम का है। यही भावना इस कार्यक्रम में भी साफ झलक रही है। महज 150 आमंत्रितों को इतने बड़े देश से चुनना बेहद मुश्किल भरा काम था, जिसे आयोजकों ने बखूबी निभाया। इन चुनिंदा लोगों को भेजे गए आमंतण्रभी अपने आप में देश का एक ऐतिहासिक दस्तावेज होने जा रहा  है। जो भारत का एक यादगार व हमेशा संजोकर रखा जाने वाला आमंतण्रहोगा। जिसको देखने के लिए भी लोग उमड़ेंगे। यह भी एक ऐतिहासिक सत्य है कि भगवान राम की जन्मभूमि अयोध्या, सरयू के तट पर स्थित देश के सुंदर नगरों में शुमार है, जिसकी भव्यता पहले भी कम न थी और अब देखते ही बनेगी। वैसे भी अयोध्या का इतिहास बेहद संपन्न रहा है।

यह देश के धर्मनिरपेक्ष ढांचे के लिए भी एक मिसाल जैसे है क्योंकि जहां बौद्ध धर्मावलंबी इस जगह को साकेत कहते हैं वहीं सिख और जैन भी अपने-अपने रिश्ते बताते हैं। जबकि साढ़े 400 सालों से ज्यादा वक्त तक बाबरी मस्जिद भी यहीं रही।

कुल मिलाकर अयोध्या भारत की सर्वधर्म समभाव की पावन स्थली बन चुकी है और कहा जा सकता है कि भगवान राम की ही महिमा थी जो सभी धर्मो की आस्था यहां जुड़ती चली गई और अंत में वापस भगवान अपने धाम में भव्यता से खुली हवा में विराजमान होकर अलग संदेश देकर देश के लिए एक नये युग का सूत्रपात करेंगे। निश्चित रूप से  राम मंदिर का भूमिपूजन देश की आस्था, विश्वास और पहचान का प्रतीक चुका है। तभी तो पक्ष के साथ पक्षकार और विपक्ष का भी खुला समर्थन मिलने लगा है।

मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनाए जाने का स्वागत करते हुए खुद को रामभक्त बताकर अपने घर पर हनुमान चालीसा का पाठ किए जाने का आह्वान कर अच्छा संदेश दिया है। भारत में 5 अगस्त 2020 की नई सुबह उस कसम या संकल्प को पूरा होते देखने वाला ऐतिहासिक दिन होगा, जो देश ही नहीं दुनिया के इतिहास का अजर, अमिट व रत्न जड़ित पन्नों पर स्थाई रूप से दर्ज दिन होगा और जिस पर कुछ यूं लिखा होगा कि, ‘कसम राम की ऐसी खाई जो मंदिर बनाने की शुभ घड़ी आई’।

ऋतुपर्ण दवे


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