वैश्विकी : संकेत ग्रहण करे भारत

Last Updated 02 Aug 2020 12:09:39 AM IST

नेपाल और चीन के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना की 65वीं वषर्गांठ पर दोनों देशों के नेताओं ने शुभकामनाओं का आदान-प्रदान किया।


वैश्विकी : संकेत ग्रहण करे भारत

सामान्य परिस्थितियों में इसे कूटनीतिक शिष्टाचार का एक उदाहरण समझा जाता, लेकिन भारत चीन सीमा पर मौजूदा तनाव की स्थिति के मद्देनजर शुभकामना संदेशों के एक-एक शब्द पर गौर किया जा रहा है तथा उसका विश्लेषण हो रहा है। यह वर्ष भारत और चीन के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना का 70वां वर्ष है। यह विडंबना है कि जहां चीन और नेपाल के संबंध बुलंदियों को छू रहे हैं वहीं भारत और चीन के संबंध वर्ष 1962 की तरह निचले स्तर पर आ गए हैं। राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने नेपाल की राष्ट्रपति विद्या भंडारी को भेजे संदेश में कहा कि कूटनीतिक संबंधों की स्थापना के बाद से ही दोनों देश एक-दूसरे के साथ बराबरी के स्तर पर व्यवहार कर रहे हैं। दोनों देशों के बीच आपसी विश्वास में वृद्धि हुई है और एक-दूसरे के प्रति सम्मान का भाव है। द्विपक्षीय संबंध एक-दूसरे को लाभ प्रदान करने पर आधारित है।

चीनी राष्ट्रपति के संदेश में गौर करने वाली बात यह है कि वह यह दावा कर रहे हैं कि उनका देश नेपाल जैसे छोटे पड़ोसी के साथ भी बराबरी का व्यवहार करता है। उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष राष्ट्रपति शी की काठमांडू यात्रा के दौरान दोनों देशों ने अपने संबंधों का स्तर बढ़ाकर रणनीतिक साझेदारी में बदल दिया था। नेपाल की राष्ट्रपति विद्या भंडारी ने अपने उत्तर में नेपाल के विकास कार्यों में चीन के योगदान की चर्चा की। उन्होंने इस संबंध में चीन की महत्त्वाकांक्षी परियोजना बीआरआई का विशेष रूप से उल्लेख किया। इस परियोजना में नेपाल भी भागीदार है। भारत इस परियोजना से नहीं जुड़ा है तथा वह इस परियोजना के तहत चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा परियोजना का विरोधी है। यह परियोजना पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर के भूभाग से गुजरती है।
भारत-चीन सीमा विवाद के बीच नेपाल ने कालापानी क्षेत्र पर अपना दावा जताकर मामले को और पेचीदा बना दिया। आमतौर पर माना जाता है कि भारत-चीन सीमा का मध्य सेक्टर (उत्तराखंड) विवाद से मुक्त है। पूर्वी सेक्टर (अरुणाचल प्रदेश) और पश्चिमी सेक्टर (लद्दाख) के बारे में चीन के बड़े दावे हैं। मध्य सेक्टर में तनाव की खास स्थिति नहीं रही है। रक्षा सूत्रों के अनुसार पूर्वी लद्दाख में सैन्य संघर्ष और तनाव के बीच अब मध्य सेक्टर में भी चीनी सैनिकों की हलचल दिखाई दे रही है। ऐसी रिपोर्ट है कि लिपूलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा सीमा क्षेत्र में चीन ने एक बटालियन (एक हजार सैनिक) की तैनाती की है। जवाब में भारत ने भी उचित कदम उठाए हैं। वास्तव में मध्य क्षेत्र में उत्पन्न स्थिति के लिए नेपाल पूरी तरह जिम्मेदार है। नेपाल ने कूटनीतिक नासमझी का परिचय देते हुए कालापानी को लेकर बखेड़ा खड़ा किया। प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली ने घरेलू राजनीति में उन्हें पेश चुनौतियों से निजात पाने के लिए यह विवाद खड़ा किया। वह इस मुद्दे को संसद तक लेकर गए तथा इन क्षेत्रों को नेपाल के मानचित्र का हिस्सा बनाने के लिए कानून तक पारित करा दिया। नेपाल की इस कवायद से जमीनी स्तर पर कोई बदलाव नहीं होने वाला है, लेकिन इससे चीन को भारत के विरुद्ध एक मुद्दा अवश्य मिल गया। इस क्षेत्र में अपने सैनिकों की तैनाती बढ़ाकर चीन भारत को धमका रहा है। वहीं नेपाल को प्रकारांतर से यह संदेश दे रहा है कि कालापानी सीमा विवाद में वह इसके साथ है।
चीन कालापानी सीमा विवाद की तुलना भूटान के डोकलाम प्रकरण से कर चुका है। डोकलाम में भारतीय सेना ने भूटान की ओर से कार्रवाई की थी और चीनी सेना की गतिविधियों को रोक दिया था। उसी समय चीन के प्रचार माध्यमों ने भारत को धमकाया था कि कालापानी विवाद में चीन नेपाल की ओर से ऐसी ही कार्रवाई कर सकता है।
नेपाल अपने दो पड़ोसी देशों भारत और चीन के साथ संतुलन पर आधारित विदेश नीति पर अमल करता है। उसके राष्ट्रीय हितों का भी तकाजा है कि वह इन दोनों देशों के सहयोग के साथ अपने देश के विकास को आगे बढ़ाए। नेपाल के नेता कालापानी विवाद में चीन की इसी प्रकार की सहायता हासिल करने का जोखिम नहीं उठा सकते। अधिक-से-अधिक वह भारत पर जोर दे सकते हैं कि वह सीमा विवाद को हल करने के लिए बातचीत की प्रक्रिया शुरू करे।

डॉ. दिलीप चौबे


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