शिक्षा : नियुक्ति प्रक्रिया को पारदर्शी बनाएं

Last Updated 26 Jun 2020 04:55:13 AM IST

उत्तर प्रदेश में हुए हालिया फर्जीवाड़े ने शिक्षा के मूल तत्व को क्षत-विक्षत किया है। अनामिका शुक्ला फर्जीवाड़ा मामले ने मध्य प्रदेश में हुए ‘व्यापम घोटाले’ की याद ताजा करा दी हैं।


शिक्षा : नियुक्ति प्रक्रिया को पारदर्शी बनाएं

उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों के 25 कस्तूरबा गांधी स्कूलों में एक ही टीचर की नौकरी किए जाने और 13 महीने के अंदर लगभग 1 करोड़ वेतन हासिल करने का मामला सकते में डालने वाला है। हालांकि राज्यों के लिए यह कोई अलहदा मामला नहीं। अतीत में भी इस तरह की घटनाएं होती रही हैं, जिसे शिक्षा माफियाओं द्वारा सुनियोजित तरीके से अंजाम दिया जाता रहा है। देश का कोई भी प्रांत हो, शिक्षा के स्वरूप को मटियायामेट करने और उसे उसके मूल उद्देश्य से भटकाने की कोशिशें लगातार होती रही हैं।
भारतीय शिक्षा पद्धति जो किसी समय वैश्विक स्वीकार्यता के साथ सर्वकालिक और समीचीन मानी जाती थी; आज अपनी सर्वव्यापकता को लेकर संदेह के घेरे में  है। तात्कालिक तौर पर इसकी स्तिथि संदेहास्पद हुई है। सन्निहित मूल्यों में गिरावट के चलते इस पर लोगों का भरोसा कम हुआ है। बावजूद इसके समय के साथ शिक्षा ने खुद को  पेशेवर अंदाज में ढाला है। हालांकि शिक्षा माफियाओं के मकड़जाल में पड़कर शिक्षा ने अपना असल रूप  खो दिया है। क्षणिक लोभ के चलते शिक्षा के माध्यम  परिमार्जित और परिष्कृत कर दिए गए हैं। फर्जीवाड़े और घोटाले राज में शिक्षा का मूल उद्देश्य कहीं गायब हो गया है। स्वर्गीय इंदिरा गांधी ने कहा था-‘शिक्षा मानव को बंधनों से मुक्त करती है और आज के युग में तो यह लोकतंत्र की भावना का आधार भी है तथा अन्य कारणों से उत्पन्न जाति एवं वर्ग विषमताओं को दूर करते हुए मनुष्य को इन सबसे ऊपर उठाती है।’ 

शिक्षा के क्षेत्र में हो रहे फर्जीवाड़े ने इस धारणा को बदला है और इसमें विचलन पैदा कर इसे खांटी व्यावसायिक रूप दे दिया है। इसके तय पैमाने ध्वस्त हुए हैं। अलग-अलग समय में हुए शैक्षिक फर्जीवाड़े इस बात की तस्दीक करते हैं कि बेसिक या व्यावसायिक शिक्षा कभी भी सरकार की प्राथमिकता सूची में नहीं रही। क्रमिक रूप से सामने आ रही घटनाएं इस बात की परिचायक हैं कि तमाम घपले-घोटालों के भंडाफोड़ होने के बावजूद ऐसे मामलों पर नकेल कसने की कभी ईमानदार कोशिश नहीं की गई। सरकारें आती-जाती रहीं, लेकिन हमारी  मूलभूत आवश्यकता शिक्षा, सतत हाशिए पर बनी रही। राष्ट्रीय स्तर पर बहुचर्चित-बिहार का रंजीत डॉन मेडिकल घोटाला हो या यूपी का हालिया अनामिका शुक्ला मामला या फिर मध्य प्रदेश का व्यापम घोटाला-तमाम फर्जीवाड़े में कहीं-न-कहीं संबंधित अमले की कोताही दिखी। जाहिर है शिक्षा के बंदरबांट का ये सिलसिला बिना आंतरिक मिलीभगत के संभव नहीं रहा होगा। गनीमत इस बात की रही कि बाहरी तत्वों की सक्रियता और तत्परता के चलते एक-एक कर मामले सामने आते रहे और षड्यंत्र का पर्दाफाश होता रहा। एक आंकड़े के अनुसार वर्ष 2007 से 2014 के बीच करीब 2000 छात्रों ने फर्जीवाड़ा करके मेडिकल-इंजीनियरिंग समेत अन्य कोर्स  में दाखिला लिया था। वर्ष 2013 में व्यापम में 580 सीटें दूसरे राज्यों के छात्रों के लिए रखी गई थी इनमें 460 सीटें पहले ही बुक हो चुकी थीं। यानी इन पर पहले ही दलालों या सेंटरों ने कब्जा जमा लिया था। इसके लिए प्रति छात्र 25 लाख रुपये लिये जाते थे। पसंदीदा कॉलेज और रैंक के आधार पर रेट बढ़ाये जाते थे। देश भर की इंजीनियरिंग-मेडिकल और मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट के लिए होने वाली परीक्षाओं में दूसरों के नाम पर परीक्षा दिए जाते हैं और प्रॉक्सी कैंडिडेट के जरिए फर्जीवाड़े का ये धंधा लगातार चलता रहता है। अनामिका शुक्लाकी तरह  का एक मामला अभी हाल में ही राजस्थान में के श्रीगंगानगर शिक्षा विभाग में देखने को मिला, जहां फर्जी शिक्षकों के नाम से करीब 35 करोड़ रुपये के बड़े घोटाले का खुलासा हुआ। 
एक के बाद एक ये बड़े घोटाले शिक्षा तंत्र के खोखलेपन की पोल खोलते हैं। देश की अदालतों में विचाराधीन हजारों फर्जीवाड़े मामले ऐसे हैं, जिन्हें  ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है या फिर उन्हें येन-केन-प्रकारेण लम्बा खींचा जा रहा है। स्पीडी ट्रायल के नाम पर बस खानापूर्ति की जा रही है। ऐसे में शिक्षा के वैतरणी को कैसे पार लगाया जाए; यह चिंतनीय है। सरकारी अमले और संबंधित प्राधिकरणों को इस पर संज्ञान लेते हुए तत्काल कदम उठाने चाहिए। ऐसे में निगरानी तंत्र को मजबूत किया जाए और दोषियों के लिए सख्त सजा का प्रावधान किया जाए। तभी शिक्षा प्रणाली में लगे घुन को साफ किया जा सकेगा।

डॉ. दर्शनी प्रिय


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